गैर फिल्मी माहौल से बौलीवुड में प्रवेश करने वाली लड़कियों को यदि स्क्रीन टेस्ट फोबिया हो, तो बात समझ में आती है. मगर फिल्मी माहौल में परवरिश पायी अभिनेत्रियों को भी ‘‘स्क्रीन टेस्ट’या ‘ऑडीशन’ का फोबिया हो सकता है, बात सुनने में अजीब सी लगती है. पर यह कटु सत्य है. राइमा सेन बौलीवुड के साथ साथ बंगला फिल्मों की अतिव्यस्ततम और चर्चित अदाकारा हैं. मगर उन्हे स्क्रीन टेस्ट का फोबिया शुरू से ही रहा है. इसी के चलते उन्हे कई बड़े बजट की फिल्मों से हाथ भी धोना पड़ा. राइमा सेन जितनी बंगला फिल्में करती हैं, उससे बहुत कम हिंदी फिल्में करती हैं.
हिंदी फिल्में कम मिलने और अपने फोबिया की चर्चा करते हुए राइमा सेन कहती हैं-‘‘वास्तव में शुरुआत में मुझे स्क्रीन टेस्ट का फोबिया था. जब कोई फिल्मकार मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाता था, तो मैं स्क्रीन टेस्ट देने नहीं जाती थी. स्क्रीन टेस्ट के नाम से मुझे इतना डर लगता था कि मैं जाती ही नहीं थी. जिसके चलते मेरे हाथ से कई बड़ी फिल्में चली गयीं. मेरे इस कदम की वजह से लोगो ने मेरे बारे में अनप्रोफेशनल कलाकार होने की अफवाह फैला दी. लेकिन स्क्रीन टेस्ट न देने के कारण मैंने कई बड़ी फिल्में खोयी. पर आज मुझे इस बात का ‘रिग्रेट’ है. आज मुझे लगता है कि मुझे स्क्रीन टेस्ट देने के लिए जाना चाहिए था. पर मैं गयी ही नहीं, इसलिए स्वीकृत या रिजेक्शन का मसला ही नहीं आया. तो आज मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए मना करने को लेकर अफसोस है.’’
स्क्रीन टेस्ट देने से इंकार करने की वजह से राइमा सेन के हाथ से कई बेहतरीन हिंदी फिल्में चली गयी थी. जिनके लिए अब राइमा सेन को बहुत अफसोस है. वह खुद कहती हैं-‘‘मुझे ‘दिल्ली बेले’ में आडीशन देने के लिए बुलाया था. मणि रत्नम ने एक फिल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट देने के लिए बुलाया था. ‘मोहब्बते’ के लिए भी बुलाया गया था. अनुराग कश्यप के आफिस में आडीशन देने गयी थी, पर कुछ देर बाद मैं भाग आयी थी. इसी तरह से कई बड़ी बड़ी फिल्मों के लिए मैने स्क्रीन टेस्ट महज डर की वजह से नहीं दिया.’’
इस साल राइमा सेन की चार फिल्में रिलीज होने वाली हैं. और यह सभी फिल्में राइमा सेन को बिना स्क्रीन टेस्ट दिए ही मिली हैं. इस बात को स्वीकार करते हुए राइमा सेन कहती हैं-‘‘2015 में मैने चार हिंदी फिल्मों की शूटिंग पूरी की. जो कि अब 2016 में रिलीज होंगी. इनमें से किसी भी फिल्म के लिए मैंने स्क्रीन टेस्ट नहीं दिया. यह चारों फिल्में मुझे ‘लक’ से मिली. प्रतीक बब्बर वाली फिल्म के निर्देशक मेरे पास आए, वह कम उम्र की अभिनेत्री चाहते थे. मुझसे मिले और मेरा चयन हो गया.‘ ‘बालीवुड डायरीज’’ के लिए कोलकाता में ऑडीशन हो रहे थे. उस वक्त मैं मुंबई में थी, तो मैं आडीशन देने नहीं गयी. कुछ दिन बाद फिल्म के निर्देशक के डी सत्यम मुंई में मेरे घर पर आए. उन्होने कहा कि वह मुझे अपनी फिल्म का हिस्सा बनाना चाहते हैं. उसके बाद उन्होने मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट सुनायी,मुझे स्क्रिप्ट व मेरा किरदार पसंद आया.’’
लेकिन राइमा सेन ने फिल्म ‘‘एकलव्य’’ के लिए आडीशन दिया था. यह बात याद दिलाए जाने पर राइमा सेन कहती हैं-‘‘मशहूर फिल्म निर्देशक प्रदीप सरकार के निर्देशन में मैं फिल्म ‘परिणीता’ कर चुकी थी. तो प्रदीप सरकार को पता था कि मुझे स्क्रीन टेस्ट का फोबिया है. इसलिए जब विधू विनोद चोपड़ा ने मुझे फिल्म ‘एकलव्य’ के लिए स्क्रीन टेस्ट देने बुलाया, तो मैंने मना कर दिया. मैने कहा कि मैं तो ‘परिणीता’ कर चुकी हूं, तो आप लोगों को नहीं पता कि मैं कैसा काम करती हूं. मैं आडीशन नहीं दूंगी. दो दिन बाद मुझे बुलाया गया कि फिल्म ‘एकलव्य’ की शूटिंग कल से शुरू हो रही है और कल पहला सीन फिल्माया जाएगा. इसके लिए मुझे स्टूडियो पहुंचना है. मैं स्टूडियो पहुंच गयी. सेट लगा हुआ था. मुझे पूरा घाघरा पहनने के लिए कहा गया. शूटिंग पूरी करके जब में वैनिटी वैन के अंदर पहुंची, तो वहां पर दो तीन दूसरी अभिनेत्रियां वैसा ही घाघरा पहने हुए मौजूद थी. मैने उनसे पूछा कि वह क्या कर रही हैं? तो पता चला कि वह आडीशन/स्क्रीन टेस्ट देने आयी थी. मैने प्रदीप सरकार दा से पूछा कि यह क्या है? तो उन्होने कहा कि,‘तुम स्क्रीन टेस्ट के नाम से डरती हो, इसलिए हमने तुमसे कहा कि सीन फिल्माया जाना है और मुझे फिल्म ‘एकलव्य’ मिल गयी थी.’’
राइमा सेन के मन में ‘‘स्क्रीन टेस्ट’’ का फोबिया कब पैदा हुआ? इस सवाल पर राइमा सेन ने कहा-‘‘यह उस वक्त की बात है,जब मैं बहुत छोटी थी. तब एक नाटक के आडीशन में गयी थी और मैं कर नहीं पायी थी. बीच में ही स्टेज छोड़कर भाग आयी थी. तभी से मेरे अंदर एक डर समा गया. मैं सभी के सामने चलते नाटक में भाग गयी थी. उसके बाद मैने सोच लिया था कि मैं ऑडीशन या स्क्रीन टेस्ट देने नहीं जाउंगी. मैंने उसके बाद कभी भी स्टेज नहीं किया. मेरे पास कई नाटकों में अभिनय करने के आफर आए, पर मैंने मना कर दिया. अब तो सिनेमा और फिल्म इंडस्ट्री की कार्यपद्धति काफी बदल चुकी है. अब कोई मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाए, तो मैं निश्चित रूप से जाउंगी. अब मुझे अहसास हो चुका है कि स्क्रीन टेस्ट का अर्थ फिल्म की स्क्रिप्ट के अनुसार किरदार के लुक, उसके मैनेरिज्म, सह कलाकार के साथ केमिट्री वगैरह को जज करना जरुरी होता है. लेकिन मेरे अंदर स्क्रीन टेस्ट का फोबिया खत्म हुआ या नहीं, इसका अहसास मुझे नहीं है. मै अभी सोच रही हूं कि अब मैं स्क्रीन टेस्ट के लिए जाउंगी. पर अभी तक गयी नहीं.’’