फिल्म की कहानी हड़प्पपा और मोहनजो दाड़ो सभ्यता के काल की है. कहानी की शुरुआत होती है नील की खेती करने वाले आमरी गांव से, जहां सरमन (हृतिक रोशन) अपने चाचा दुर्जन (नितीश भारद्वाज) व चाची के साथ रहता है. एक दिन नील की खेती के व्यापार के लिए सरमन अपने चाचा की इजाजत लेकर गांव के दूसरे व्यापारियों के साथ मोहनजो दाड़ो पहुंचता है. दुर्जन ने चलते समय सरमन को एक पोटली में बांधकर एक ताम्रचिन्ह यह कहकर दिया था कि जब उसके सामने जीवन मरण का सवाल उठेगा, तो यह ताम्रचिन्ह उसकी मदद करेगा. मोहनजो दाड़ो पहुंचते ही सरमन को अहसास होता है, जैसे कि वह इस शहर से पूर्व परिचित है.
मोहनजो दाड़ों में सरमन की मुलाकात विभिन्न लोगों से होती है. उसे वहां पर कई तरह की अजीबो गरीब घटनाएं देखने को मिलती है. धीरे धीरे उसे पता चलता है कि मोहनजो दाड़ो का प्रधान महम (कबीर बेदी) कितना क्रूर है. वह अपनी शक्तियों के बल पर सब पर शासन करना चाहता है. पता चलता है कि महम पहले हड़प्पा शहर में व्यापार प्रमुख था. मगर उसके गलत कारनामे की वजह से देश निकाला दिया गया था. तब वह मोहनजो दाड़ो आया था और सिंधु नदी पर बांध बनवाने, तस्करों से सोने के बदले तांबे के शस्त्र खरीदने लगता है.
मोहनजो दाड़ो में सरमन की पहली मुलाकात मोहनजो दाड़ो के रखवाले प्रमुख धागो से होती है. फिर उसकी मुठभेड़ महम के बेटे मूंजा (अरूणोदय सिंह) से होती है. उसके बाद उसकी मुलाकात वहां के पुजारी की बेटी चानी (पूजा हेगड़े) से होती है, जिन्हे षशहर वासी नवलोकनी के नाम से पुकारते हैं. लोगों का मानना है कि नवलोकनी की ही वजह से शहर में नया सूरज उगेगा. चानी और सरमन पहली मुलाकात में ही एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं. तो दूसरी तरफ प्रधान महम शहर वासियों पर कर बढ़ा देते हैं, जिसका विरोध सरमन करता है और वहां के व्यापारियों का नेता बन जाता है.