कुछ समय पहले अक्षय कुमार की एक फिल्म रिलीज हुई थी-‘स्पैशल 26’, जिस में अक्षय कुमार अपने साथियों के साथ मिल कर नकली सीबीआई इंस्पैक्टर बन कर भ्रष्ट मंत्रियों व अफसरों के यहां रेड डाल कर करोड़ों रुपए लूट कर ले जाता है. ‘बजाते रहो’ इसी ‘स्पैशल 26’ का बैड वर्जन है. इस फिल्म में भी पब्लिक को धोखा दे कर उन से करोड़ों लूटने वाले एक शख्स की खूब बजाई गई है. माफ कीजिए, उसे लूट कर कंगाल बना दिया गया है.

‘बजाते रहो’ को कौमेडी की चाशनी में लपेट कर बनाया गया है. कहींकहीं फिल्म ‘खोसला का घोंसला’ जैसी लगती है, जिस में एक परिवार धोखा खाने के बाद बिल्डर से बदला लेता है. कैसे एक फ्रौड और चालाक आदमी भोलेभाले लोगों को कम समय में अपने रुपए दोगुने करने का लालच दे कर उन की गाढ़ी कमाई हड़प लेता है, यही इस फिल्म का विषय है. फिल्म में इस बात को कौमेडी में जरूर बताया गया है परंतु इस में तीखेपन का अभाव है. लगता है जैसे कोई कौमेडी सर्कस देख रहे हैं.

सभरवाल (रवि किशन) एक भ्रष्ट बिजनैसमैन है. अपने ही बैंक में घोटाला कर के वह अपने बैंक मैनेजर बावेजा पर इलजाम लगा देता है. सदमे में बावेजा मर जाता है. उस की पत्नी जसबीर (डौली आहलूवालिया) और बेटा सुक्खी (तुषार कपूर) अपने दोस्तों बल्लू (रणवीर शौरी) और मिंटू (विनय पाठक) के साथसाथ अपनी प्रेमिका मनप्रीत (विशाखा सिंह) के साथ मिल कर सभरवाल को बेवकूफ बना कर उस से 15 करोड़ रुपए लूटते हैं और उस पैसे को उन लोगों में बांट देते हैं जिन का पैसा डूब गया था.

फिल्म में नया तो कुछ नहीं है लेकिन फिर भी यह कुछ उत्सुकता बनाए रहती है. फिल्म में कुछ ही सीन हैं जिन में कौमेडी ?ालकती है, बाकी फिल्म तो एकदम फिल्मी है, बेवकूफियों से भरी. गनीमत है कि फिल्म की लंबाई कम है. निर्देशक ने फिल्म की गति बनाए रखी है. डौली आहलूवालिया को दर्शक ‘विक्की डोनर’ में देख चुके हैं. इस फिल्म में उस का काम प्रभावशाली है. विनय पाठक का काम भी अच्छा है. रणवीर शौरी भी ठीकठाक है. तुषार के छोेटे भाई की भूमिका में हुसैन साद का अभिनय काफी अच्छा है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है परंतु एक आइटम सौंग ‘मैं नागिननागिन नाचूंगी…’ अच्छा बन पड़ा है.

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