सत्य कथा या सत्य घटनाक्रम पर फिल्म बनाना हमेशा ही लेखक व निर्देशक के लिए दोधारी तलवार पर चलने जैसा होता है. क्योंकि उसे वास्तविकता को बरकरार रखते हुए फिल्म को मनोरंजक भी बनाना होता है. दूसरी बात खेल पर फिल्में बनाना आसान नहीं रहा है. अब तक खेल पर जितनी भी फिल्में बनी हैं, उनमे से ज्यादातर फिल्में बाक्स आफिस पर असफल ही रही हैं. पर मशहूर धावक मिल्खा सिंह की बायोपिक फिल्म ‘‘भाग मिल्खा भाग’’ ने सफलता के रिकार्ड बनाए थे. अब पहली बार निर्देशन में उतरे लेखक व निर्देशक सौमेंद्र पाधी ने अपनी फिल्म ‘‘बुधिया सिंहः बॉर्न टू रन’’ में 2006 में उड़ीसा के चर्चित बाल धावक बुधिया सिंह की जिंदगी से जुड़े सत्य घटनाक्रम को पेश किया है. इसके लिए सौमेंद्र पाधी साधुवाद के पात्र हैं. फिल्म ‘‘बुधिया सिंहः बॉर्न टू रन’’ देखते समय अहसास ही नहीं होता कि यह लेखक व निर्देशक की पहली फिल्म है. सौमेंद्र पाधी ने बालक बुधिया की कहानी को जितनी सरलता से परदे पर साकार किया है, वह काबिले तारीफ है.
फिल्म ‘‘बुधिया सिंहः बॉर्न टू रन’’ वास्तव में एक कठिन फिल्म है. क्योंकि यह ऐसे बालक की कथा है जो कि मुश्किल से एक साल तक सुर्खियों में रहा और फिर ऐसी राजनीति गहराई थी कि उसका दौड़ना बंद होने के साथ ही वह एकदम गायब हो गया. आज दस साल बाद तो लोग भूल चुके हैं कि बुधिया सिंह कौन था. ऐसे में उसकी याद लोगों के दिलों में ताजा करने के साथ साथ बहुत कम कथा के आधार पर ऐसी मनोरंजक फिल्म को गढ़ना जिसे देखकर लोग प्रेरित भी हों, आसान तो नहीं था.