Bollywood : पिछले कुछ सालों में बौलीवुड कलाकारों और फिल्मकारों की एक एक नई फौज खड़ी हो गई है जो कंटैंट के नाम पर धर्म ही परोस रहा है. यह फिल्में गुणवत्ता के स्तर पर वाहियात फिल्में होती हैं. आखिर कटैंट क्रिएशन में बौलीवुड धंसता क्यों जा रहा है?

बौलीवुड में कलाकार, निर्माता, निर्देशक, लेखक, डांस डायरेक्टर सभी एक ही रट लगाए रहते हैं कि कंटैंट इज किंग यानी कि कंटैंट ही राजा है. कंटैंट का मतलब फिल्म की कहानी. इस के बावजूद फिल्में बौक्स औफिस पर बुरी तरह से असफल हो रही हैं. इस का मतलब यही है कि लोग भले ही ‘कंटैंट इज किंग’ चिल्ला रहे हैं, मगर कंटैंट/ कहानी पर किसी का ध्यान नहीं है.

सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अब बौलीवुड में कंटैंट क्रिएशन बहुत मुश्किल हो गया है. इस का आसान सा जवाब यह है कि बौलीवुड के अंदर कारपोरेट व स्टूडियो सिस्टम के चलते क्रिएटिव काम करने वालों को सही ढंग से काम नहीं करने दिया जा रहा है, काम सिर्फ वही कर पा रहे हैं जो कि कारेपोरेट जगत में एमबीए की पढ़ाई कर आए लोगों के साथ बैठक करते बहुत अच्छी अंगरेजी झाड़ते हों. बातबात में ‘कूल’ शब्द के अलावा भद्दी गाली देना जानते हों.

1937 की बात है. के एल सहगल ने सोहराब मोदी से कमाल अमरोही की मुलाकात कराते हुए बताया था कि कमाल अमरोही हिंदी और उर्दू में बेहतरीन कविताएं व कहानियां लिखते हैं. इस पर सोहराब मोदी ने कमाल अमरोही को दूसरे दिन अपने औफिस में कहानी सुनाने के लिए पूरी स्क्रिप्ट के साथ बुलाया, क्योंकि सोहराब मोदी को अपनी नई फिल्म के लिए एक अच्छी कहानी की तलाश थी. लेकिन कमाल अमरोही के पास लिखी हुई स्क्रिप्ट नहीं थी, तो वह एक खाली डायरी ले कर औफिस पहुंचे, क्योंकि वह जानते थे कि ऐसे ही कहानी सुनाने पर बात नहीं बनेगी.

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