2018 की शुरुआत से ही बौलीवुड से अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं. आज सुबह पांच बजे बौलीवुड व टीवी अभिनेता नरेंद्र झा का मुंबई से 100 किलोमीटर दूर वाड़ा स्थित उनके अपने फार्म हाउस में हार्ट अटैक से निधन हो गया. अफसोस यह वही फार्म हाउस है, जिसे नरेंद्र झा ने सुकून की जिंदगी जीने के लिए बनाया था.

खुद नरेंद्र झा ने गत वर्ष हमसे बात करते हुए अपने इस फार्म हाउस के बारे में कहा था – ‘‘मैंने मुंबई से सौ किलोमीटर दूर अपना छोटा सा होलीडे होम बना रखा है. जब शूटिंग नहीं होती हैं. तो मैं वहीं रहने के लिए चला जाता हूं, यहां से वहां पहुंचने में डेढ़ घंटे लगते हैं. वहां शांत मन से कुछ लेखन करता रहता हूं. ईश्वर की अनुकंपा से मेरी जिंदगी ठीकठाक चल रही है. मुझे इस बात की फिक्र नहीं है कि किसने कितने करोड़ कमा लिए हैं.’’

मधुबनी बिहार में जन्में और जेएनयू के छात्र रहे नरेंद्र झा ने से हमारी पहली मुलाकात सीरियल ‘‘कैप्टन हाउस’’ के सेट पर हुई थी. यह उनका शायद पहला या दूसरा सीरियल था. इसके बाद हमने उन्हें लगातार अभिनय के क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित करते तथा आगे बढ़ते हुए देखा. नरेंद्र झा ने सिर्फ बौलीवुड व भारतीय टीवी पर ही नहीं, मास्को टीवी और इंडोनेशियन टीवी पर भी काफी काम किया. नरेंद्र झा की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वह टीवी और फिल्म दोनों माध्यमों में काम करते रहें. नरेद्र झा सिर्फ बौलीवुड तक ही सीमित नही थे. उन्होंने फिल्मकार जी वी अय्यर के साथ दो कन्नड़ फिल्में भी की थी.

उन्होंने हमेशा अच्छा काम करने की कोशिश की, खुद नरेंद्र झा ने हमसे कहा था – ‘‘यह सच है कि जिन फिल्मों में दो या तीन दृश्यों का किरदार होता है, उनसे बचने की कोशिश जरूर कर रहा हूं. क्योंकि मैं सिर्फ पैसे के लिए काम नहीं करता. मैं अपने आपको मनोरंजन देने के लिए भी काम करता हूं. मैं काम इंज्वाय करने के लिए करता हूं. मैं समझता हूं कि 2 या 3 दृश्यों का जो औफर लेकर आते हैं, उन्हें खुद यकीन नहीं होता है कि अंततः वह दृश्य फिल्म में रहेंगे भी या नहीं. मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे दैनिक रूप से पैसा बटोरने की मजबूरी नहीं दी है. फिल्म ‘काबिल’ और ‘रईस’ में मैं हीरो नहीं था, पर इन दोनों फिल्मों में लोगों ने मेरे किरदारों और मेरी प्रतिभा को पहचाना. दोनों फिल्मों के किरदार महत्वपूर्ण हैं. मैं कभी यह नही सोचता कि मेरा करियर किस तरफ जा रहा है. मैं यह नही कहता कि ‘बेगर्स आर नौट चूजर्स’, पर कलाकार रूपी बेगर्स ऐसा है, जिनके पास अच्छा मकान व गाड़ी है. जिंदगी अच्छी चल रही हैं.’’

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नरेंद्र झा ने टीवी से फिल्मों तक का लंबा सफर अपनी अभिनय प्रतिभा, मेहनत, लगन के बलबूते पर तय करते हुए सफलता के नए आयाम स्थापित किए थे. वह ‘हैदर’, ‘हमारी अधूरी कहानी’, ‘घायल वंस अगेन’,  ‘मोहनजो दाड़ो’, ‘रईस’, ‘‘काबिल’’ सहित कई फिल्मों में स्टार कलाकारों के साथ महत्वपूर्ण किरदारों में नजर आए थें. 2017 में वह सोलो हीरो के रूप में फिल्म ‘‘विराम’’ में नजर आए थें, जिसका 2017 के ‘‘कौन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ. जबकि इससे पहले 2005 में सुधांशु झा की फिल्म ‘एक दस्तक’ में और ‘माइ फादर इकबाल’ में भी वह हीरो थें.

नरेंद्र झा ने ‘‘कलर्स’’ पर प्रसारित हो चुके सीरियल ‘‘हवन’’ में आध्यात्मिक गुरू बापजी का किरदार निभाया था. जबकि निजी जिंदगी में वह किसी आध्यत्मिक गुरू को नहीं मानते थे. इस संबंध में उन्होंने एक बार हमसे कहा था – ‘‘मैं निजी जीवन में किसी आध्यात्मिक गुरू का नहीं, बल्कि अपने पिता का अनुयायी हूं. मेरे लिए मेरे पिता ही आध्यात्मिक गुरू हैं. मेरे पिता हाईस्कूल में प्रिंसिपल थे. उन्होंने मुझे जीवन में बहुत सी अच्छी शिक्षाएं दी हैं.

मैं मिथिला का ब्राम्हण हूं. दैनिक पूजा का कर्म करता हूं. एक कलाकार होने और शूटिंग की वजहों से मैं कई चीजें ऐसी हैं, जो नहीं कर पा रहा हूं. मसलन, मैं ब्राम्हण हूं और ब्राम्हण होने के नाते मुझे जनेउ धारण करना चाहिए. मगर जनेउ धारण करने और उसे अशुद्ध होने से बचाने के कुछ नियम हैं. पर मैं एक कलाकार होने के नाते उन नियमों का पालन नहीं कर पाता, इसलिए मैं जनेउ नहीं पहनता. ’’

सिनेमा में आए बदलाव के साथ जिस तरह उनका करियर आगे बढ़ना चाहिए था, उस तरह नहीं बढ़ा. उन्हें इस बात का गम भी था. कुछ माह पहले जब उनसे हमारी मुलाकात हुई थी, तो उन्होंने कहा था-‘‘सिनेमा बड़ी तेजी से बदल रहा है. लेकिन हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि सब कुछ कलाकार के हाथ में नहीं रह गया है. सिर्फ फिल्म कलाकार ही क्यों, आम जीवन में भी देखें तो बहुत सी चीजें इंसान के हाथ में नहीं रह गयी हैं. अब हालात ऐसे हैं कि बहुत सी चीजों को आप अपना जामा नही पहना सकते. कुछ चीजें अपने आप होती रहती हैं. कई बार मेरे दिमाग में यह सवाल उठता है कि मेरे करियर में इस तरह के किरदार आ रहे हैं. क्या मुझे स्वीकार करना चाहिए? क्या कम डिग्निटी वाले या छोटे किरदार निभाने चाहिए. यह सारे सवाल ऐसे हैं, जो मायने रखते हैं.’’

अपनी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए नरेंद्र झा ने कहा था – ‘‘मैं ऐसा मानता हूं. मैं मानकर चलता हूं कि निर्देशक के विजन के हिसाब से वह मुझे जिस किरदार के लिए उचित समझता है, उसी किरदार के लिए लेगा. मेरे कहने पर दूसरे किरदार के लिए नहीं लेगा. मैं इस बात पर भी यकीन करता हूं कि फिल्म एक निर्देशक का बच्चा होता है और निर्देशक को अपने विजन, अपनी सोच के अनुसार काम करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. यदि मैं एक वाक्य में कहूं तो हमारे हिस्से जो सम्मानजनक व अच्छा किरदार आता है, मैं उसे स्वीकार कर लेता हूं. फिर उसे परदे पर बेहतर तरीके से पेश करने की पूरी कोशिश करता हूं.’’

नरेंद्र झा ने मन माफिक काम करने के मकसद से ही अपनी प्रोक्डक्शन कंपनी शुरू की थी, जिसके तहत उन्होने कुछ लघु फिल्में बनायीं. पर वह फिल्में अब तक दर्शकों तक नहीं पहुंच पायी. इन फिल्मों का जिक्र करते हुए नरेंद्र झा ने हमसे कहा था – ‘‘मैंने कुछ लघु फिल्में बनायी हैं. मैं कुछ फिल्में बनाना चाहता हूं. मैं जिस जगह से आया हूं, वहां से जुड़ी हुई चीजों को लेकर मैं कुछ काम करना चाहता हूं. आप बहुत जल्द देखेंगे कि मैंने कुछ लघु फिल्मों का निर्माण किया है, जो कि मेरे इलाके से जुड़ी हुई हैं.’’ अफसोस कि नरेंद्र झा के आसामायिक निधन से उनका यह सपना अधूरा ही रह गया.

नरेद्र झा की अधूरी फिल्में

नरेंद्र झा के असामायिक निधन से उनकी कुछ फिल्में अधूरी रह गयी हैं. वह संग्राम सिंह के साथ एक फिल्म कर रहे थें, जो कि अधूरी है. इसके अलावा नरेंद्र झा ने श्रद्धा कपूर व प्रभाष के साथ फिल्म ‘‘साहो’’ कर रहे थे. इतना ही नही सलमान खान के साथ नरेंद्र झा ने फिल्म ‘‘रेस 3’’ भी अनुबंधित की थी, जिसकी वह शूटिंग ही शुरू नहीं कर पाए.

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