26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुई आतंकवादी घटना को टीवी पर लाइव दिखाया गया था. 3 दिन तक चली कमांडो कार्यवाही के बाद एक आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब जिंदा पकड़ा गया, बाकी 9 आतंकवादी मारे गए थे.
रामगोपाल वर्मा ने परदे पर जो कुछ दिखाया है, वह आधाअधूरा है. उस ने ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस आदि पर हुआ हमला तो दिखा दिया, मगर ताज होटल में आतंकवादियों द्वारा विस्फोट कर आग लगाने वाली घटना के साथसाथ वहां हैलिकौप्टर से उतरे कमांडो द्वारा की गई कार्यवाही को नहीं दिखाया.

फिल्म की कहानी तत्कालीन जौइंट कमिश्नर राकेश मारिया (नाना पाटेकर) के मुंह से कहलवाई गई है. वह इनक्वायरी कमीशन के अधिकारियों को इस घटना के बारे में सिलसिलेवार बताता है.
इस कहानी में बदलाव सिर्फ यह किया गया है कि राकेश मारिया पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब (संजीव जायसवाल) से रिमांड के दौरान पूछताछ करता है और उसे शवगृह में ले जा कर गोलियों से छलनी हुए उस के साथियों के शव दिखाता है. यह सीन काफी लंबा हो गया है और इस सीन में नाना पाटेकर की भाषणबाजी भी लंबी हो गई है.

फिल्म का निर्देशन बचकाना है. बिना कहानी वाली इस फिल्म में नाना पाटेकर का रोल दमदार नहीं है. अजमल कसाब की?भूमिका में संजीव जायसवाल के चेहरे पर क्रूरता नजर नहीं आती. इस फिल्म में संगीत की गुंजाइश नहीं थी, फिर भी बैकग्राउंड में 2 गाने डाले गए हैं. छायांकन साधारण है.

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