‘फैन’ के साथ इतनी बुरी बीतेगी, यह न तो शाहरुख खान ने सोचा होगा और न ही इसे बनाने वाले यशराज जैसे बड़े बैनर ने, जिन की कमोबेश हर फिल्म बौक्स औफिस पर कामयाबी पा लेती है. यशराज और शाहरुख का मेल तो ऐसा है जिस की सफलता पर संदेह किया ही नहीं जा सकता. फिर इस फिल्म को समीक्षकों की तरफ से तारीफें भी भरपूर मिली थीं और यहां तक कहा गया कि अब तक की अपनी तमाम फिल्मों में से शाहरुख दूसरी बार ऐसे किरदार में दिखाई दिए जिस में लोगों ने परदे पर शाहरुख को नहीं, बल्कि उस किरदार को देखा. पहली बार ऐसा ‘चकदे इंडिया’ के कबीर खान के साथ हुआ था और दूसरी बार अब ‘फैन’ के गौरव चांदना के साथ. संयोग से ये दोनों ही फिल्में यशराज बैनर से आईं. तो फिर चूक कहां हो गई? खतरे की घंटी तो पिछले साल दीवाली पर आई शाहरुख की फिल्म ‘दिलवाले’ से ही बज चुकी थी. शाहरुखकाजोल की सर्वप्रिय जोड़ी की मौजूदगी वाली और शाहरुख के साथ ‘चैन्नई ऐक्सप्रैस’ जैसी सुपरहिट फिल्म दे चुके निर्देशक रोहित शैट्टी की इस फिल्म ने दीवाली जैसे हौट कारोबारी मौके पर आने के चलते कमाई तो की लेकिन वह कमाई इतनी नहीं थी कि उसे किंग खान के स्तर की कमाई कहा जाता. ‘दिलवाले’ के बाद फिल्म जानकारों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि बादशाह की बादशाहत अब फीकी पड़ने लगी है. और अब रहीसही कसर ‘फैन’ को मिले ठंडे रैस्पौंस ने पूरी कर दी. आखिर वजह क्या है?
फिल्म ट्रेड विश्लेषक विनोद मिरानी कहते हैं, ‘‘शाहरुख अब अपने कैरियर के उस दौर से गुजर रहे हैं जहां से हर बड़ा स्टार हो कर गुजरा है. दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार तक इस दौर से अछूते नहीं रहे.’’ यह बात सही भी लगती है. याद कीजिए, बरसों पहले अमिताभ बच्चन के साथ भी ठीक यही हो रहा था. 1991 में आई फिल्म ‘हम’ की कामयाबी के बाद एक लंबे समय तक अमिताभ बच्चन भी ऐसे ही दौर से गुजर रहे थे जिस में उन की बड़ीबड़ी फिल्में टिकट खिड़की पर औंधेमुंह गिर रही थीं. ‘अजूबा’, ‘इंद्रजीत’, ‘अकेले’, ‘इंसानियत’ जैसी इन फिल्मों में अमिताभ के किरदार भी काफी कमजोर थे और उन के आभामंडल की वह कलई उतरने लगी थी जिस के बूते उन की कमजोर फिल्में भी हिट हो जाया करती थीं. यहां तक कि उस जमाने की हिट जोड़ी अमिताभश्रीदेवी वाली ‘खुदागवाह’ को भी अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल सकी थी.
अमिताभ की उम्र का वह 50वां बरस था और पारंपरिक नायक के किरदारों के लिए वे बुढ़ाने भी लगे थे. ऐसे में अमिताभ ने समझदारी दिखाते हुए स्वनिर्वासन की राह पकड़ी और इंतजार किया कि उम्र उन के चेहरे पर पूरी तरह से आ जाए ताकि वे खुद के लिए कोई और रास्ता तलाश सकें. यह बात अलग है कि 4-5 साल बाद उन्होंने जिन फिल्मों ‘मृत्युदाता’, ‘मेजर साहब’, ‘कोहराम’, ‘लाल बादशाह’, ‘सूर्यवंशम’, ‘हिंदुस्तान की कसम’ से अपनी वापसी की, वे भी काफी खराब बनी थीं. लेकिन इन में से भी ‘मेजर साहब’ और फिर 1999 में दीवाली पर आई डेविड धवन की कौमेडी फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की कामयाबी ने उन की राह आसान कर दी और आखिरकार वर्ष 2000 यानी 58 बरस की उम्र में आई उन की फिल्म ‘मोहब्बतें’ से उन्होंने अपने कैरियर की एक नई और न रुक सकने वाली ऐसी पारी शुरू की जिस की कोई मिसाल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नहीं मिलती. संयोग से साल 2000 में 30 जून को उन के बेटे अभिषेक की पहली फिल्म ‘रिफ्यूजी’ आई थी जिस के 3 दिन बाद अमिताभ ने छोटे परदे पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से एक नई और अनोखी शुरुआत भी की थी.
शाहरुख भी अपनी उम्र के 50 साल पूरे कर चुके हैं. तो क्या यह मान लिया जाए कि वह वक्त आ चुका है जब उन्हें अपनी राह बदल लेनी चाहिए? कुछ अरसे के लिए उन्हें खुद को फिल्मी परदे से दूर कर लेना चाहिए? यों देखा जाए तो खुद को बदलने की कवायद तो शाहरुख ने शुरू कर ही दी है. उन की हालिया फिल्मों को देखें तो 2014 में आई ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बाद से वे बदलेबदले से और अपनी असली उम्र को परदे पर जीते हुए से भी नजर आ रहे हैं. ‘दिलवाले’ में वे लगभग वैसे ही किरदार में थे जैसा अमिताभ ने ‘हम’ में निभाया था. और अब ‘फैन’ में तो वे खुद की ही छवि को जी रहे थे. अब वे राहुल ढोलकिया की ‘रईस’ में एक गुजराती माफिया की भूमिका में दिखेंगे. यह किरदार 80 के दशक में गुजरात में शराब का नाजायज कारोबार करने वाले अब्दुल लतीफ के जीवन से प्रेरित बताया जा रहा है. यानी शाहरुख ने खुद में बदलाव लाने की दिशा में कदम तो उठा दिए हैं पर बड़ा सवाल अभी भी बाकी है कि क्या वे खुद को परदे से दूर ले जाएंगे या ले जा पाएंगे?
गौर करें तो इस बात की नौबत शायद ही आए. अमिताभ ने जब कुछ वक्त के लिए परदे से दूरी बनाई थी, उस समय वे साल में कईकई फिल्में कर रहे थे जबकि शाहरुख लंबे समय से सालभर में बमुश्किल एक फिल्म कर रहे हैं और साथ ही साथ, खुद को धीरेधीरे बदल भी रहे हैं. यानी अगर वे यों ही चलते रहे तो भी बिना नजरों से ओझल हुए अगली पीढ़ी में छलांग लगा सकते हैं जहां उन के लिए ज्यादा सशक्त, ज्यादा गहरी भूमिकाएं इंतजार करती हुई मिल सकती हैं. वक्त बताएगा, शाहरुख में यह बदलाव कब और किस तरह आएगा.