तन्हाई की दीवारो पे घुटन का पर्दा झूल रहा है, बेबसी की छत के नीचे कोई किसी को भूल रहा है.

कल्‍पनाओं की धागों को शब्‍दों के माध्यम से जोड़ने की ऐसी जादूगरी सिर्फ गुलजार ही कर सकते हैं और आज शब्‍दों के इसी जादूगर का जन्‍मदिन है. जानेमाने शायर, निर्देशक, संगीतकार, लेखक, गुलजार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है.

उनका जन्म 18 अगस्त, 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्‍तान में है. गुलजार फिल्मों में आने से पहले एक गैराज मैकेनिक का काम किया करते थे. गुलजार को बचपन से ही लिखने का शौक था, इसलिए वो कम उम्र से ही लिखने लग गए थे. लेकिन उनके पिता को यह पसंद नहीं था,  इन सबके बाद भी गुलजार ने लिखना जारी रखा और एक दिन अपनी मेहनत के दम पर बौलीवुड का एक माना जाना चेहरा बन गए.

वे 20 बार फिल्मफेयर तो पांच राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं. 2010 में उन्हें स्लमडौग मिलेनेयर के गाने 'जय हो' के लिए ग्रैमी अवार्ड से नवाजा गया था. उन्हें 2013 के दादा साहेब फालके सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.

आज हम आपको को उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ बाते बताते हैं.

1. गुलजार अपने कौलेज के दिनों से ही सफेद कपड़े पहन रहे हैं.

2. उन्होंने बिमल राय के साथ असिस्टेंट का काम किया. एस.डी. बर्मन की 'बंदिनी' से बतौर गीतकार शुरुआत की. उनका पहला गाना था, 'मोरा गोरा अंग...'

3. बतौर डायरेक्टर गुलजार की पहली फिल्म 'मेरे अपने' (1971) थी, जो बंगाली फिल्म 'अपनाजन' की रीमेक थी.

4. गुलजार की अधिकतर फिल्मों में फ्लैशबैक देखने को मिलता, उनका मानना है कि अतीत को दिखाए बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती. इसकी झलक, 'किताब', 'आंधी' और 'इजाजत' जैसी फिल्मों में देखने को मिल जाती है.

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