उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव अगले साल 2017 में है. मोदी सरकार इन प्रदेशों के सांसदों को केन्द्र में मंत्री बनाकर चुनावी चाल चलने जा रही है. मोदी सरकार का कैबिनेट विस्तार होने जा रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश और पंजाब के सबसे अधिक मंत्री बनाये जा सकते हैं. मोदी सरकार में इस समय 66 मंत्री हैं. नियम पूर्वक 83 मंत्री रखे जा सकते हैं. ऐसे में मोदी सरकार के पास 17 और मंत्री बनाने की अच्छी खासी गुंजाइश बची हुई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किफायत में काम चलाने के लिये जाने जाते हैं, ऐसे में वह 17 मंत्री नहीं बनाने जा रहे. यह बात है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब के कुछ सांसदों को मंत्री बनाकर और कुछ मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करके नया दिखाने का प्रयास जरूर करेंगे. मोदी कैबिनेट में उत्तर प्रदेश से 12 मंत्री शामिल हैं. इनके पदों में भी फेरबदल हो सकता है.

दरअसल उत्तर प्रदेश भाजपा के लिये सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है. भाजपा यहां पर साम दाम दंड भेद की रणनीति से चुनाव जीतना चाहती है. ऐसे में चुनाव करीब आता देख मोदी सरकार उत्तर प्रदेश को निशाने पर ले रही है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिये सबसे सरल दलित और अति पिछडा वोट बैंक दिख रहा है. परेशानी वाली बात यह है कि इस वोटबैंक को महत्व देने से भाजपा का अगडा वोट बैंक टूट सकता है. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी में मची टूट की बहती गंगा में भाजपा हाथ धोना चाह रही है. वह बसपा से टूटे नेताओं को भले ही पार्टी में शामिल न करे, पर चुनाव बाद वह उनको साथ ले सकती है. भाजपा बसपा से टूटे नेताओं को शह देकर बसपा को कमजोर करना चाह रही है. जिससे दलित और अतिपिछडा वर्ग उनको वोट देने के लिये मजबूर हो जाये.

उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण और वोट बैंक में पिछडों और दलितों के बीच बनी खाई बहुत चौडी हो चुकी है. दलितऔर पिछडे एक पार्टी के साथ खडे नहीं हो सकते. ऐसे में एक तरफ पिछडों की अगुवाई करने वाली समाजवादी पार्टी है तो दूसरी ओर दलितों की अगुवाई करने वाली बसपा है. दलित और पिछडों के बीच एक वर्ग अति पिछडी जातियों का है, जो पिछडों से अर्थिक और सामाजिक रूप से पीछे और दलितो से आगे है. भाजपा इस वर्ग को अपने साथ लेने का प्रयास कर रही है. ऐसे में इस जाति में प्रभाव रखने वाले नेताओं को केन्द्र में मंत्री बनाया जा सकता है. उत्तर प्रदेश में दलित-अगडा और पिछडा समीकरण ठीक करने के लिये केन्द्र में मंत्री बना कर प्रदेश के पावर सेटंर को संतुलित किया जायेगा, जिससे प्रदेश में पिछडे नेताओ बढते प्रभाव के अगडी जातियां नाराज न हो.

उत्तर प्रदेश की ही तरह पंजाब भी भाजपा के लिये अगला बिहार न बन जाये, इससे बचने के लिये केन्द्र में पंजाब के मंत्रियों की संख्या बढ सकती है. पंजाब में कांग्रेस के अलावा आप पार्टी भाजपा-अकाली गठबंधन के लिये कडी चुनौती बन रही है. भाजपा कांग्रेस से ज्यादा आप पार्टी से भयभीत हो रही है. उत्तर प्रदेश और पंजाब से ज्यादा से ज्यादा मंत्री बनाकर केवल जनता को ही खुश नहीं रखना है. यहां के भाजपा नेताओं को भी मजबूत करना है. इस मंत्रिमंडल विस्तार से भाजपा इन राज्यों में फैली गुटबाजी को खत्म करना चाहती है. भाजपा जानती है कि गुटबाजी का घुन पार्टी अंदर अंदर खोखला कर देगा. पार्टी का इसके नुकसान का अंदाजा तब होगा जब वोटिंग मशीन से परिणाम निकलेगे. ऐसे में भाजपा पहले ही अपने को मतबूत करना चाहती है. मंत्रीमंडल विस्तार इसका सबसे बडा अस्त्र बनेगा.       

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