राजस्थान के डूंगरपुर जिले में कुआं तहसील है और इस तहसील के एक गांव के 10 वर्षीय बालक प्रशांत को महंत बना दिया गया. खेलनेकूदने की उम्र में 7वीं कक्षा के छात्र प्रशांत को इसलिए महंत बनाया गया क्योंकि यादव जाति के महंत ईश्वरदास के समाधि लेने के बाद महंत की गद्दी खाली हो गई थी और पुत्र होने के कारण प्रशांत को इस गद्दी का हकदार माना जाने लगा और नए महंत के रूप में उसे गद्दी सौंप दी गई. इस गद्दी को सौंपने के लिए सूरत के महंत आए थे जिन्होंने मंत्रोच्चार कर और दीक्षा दे कर प्रशांत को यह गद्दी सौंप दी.इस तरह धर्म और जाति की जंजीर से बांध कर एक बचपन का गला घोंट देना कोई पहली या नई बात नहीं बल्कि राजस्थान सहित देश के अलगअलग राज्यों में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और देशभर में आज लाखों बच्चों को धर्म के शिकंजों में बांध कर धर्म के वीभत्स स्वरूप को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसे रोकने के लिए न तो देश में कोई कानून है और न ही इस का विरोध करने की किसी में हिम्मत. राजस्थान के 28 और गुजरात के 45 गावों के लोग महंत बनाए गए इस मासूम को अब अपना गुरु मानेंगे और इस बच्चे द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलेंगे. गांव के लोगों का कहना है कि यह बालक समाज की उन्नति और विकास के लिए काम करेगा और उन की जाति में होने वाली किसी भी तरह की कुरीतियों और बुराइयों का विरोध कर उसे खत्म करने का प्रयास करेगा. सवाल उठता है कि वह बच्चा जिस की खुद की शिक्षा ही न पूरी हो पाई हो, जो अभी दूसरों से ज्ञान पाने का जरूरतमंद हो और भलेबुरे में भेद न जानता हो वह दूसरों को क्या शिक्षा देगा या कौन सी सही दिशा दिखाएगा.
दरअसल, इस तरह बालक को महंत की पदवी दे कर जाति विशेष का गुरु बना देना कोई समाज सुधार का काम नहीं बल्कि यह तो धर्म के ठेकेदारों की एक साजिश है जिस में इस मासूम बच्चे को देवता या महंत का स्वरूप बता कर इस के माध्यम से लोगों को ठगने का निशाना आसानी से साधा जा सकता है.
सस्ते मजदूर बच्चे
धर्म के ठेकेदारों द्वारा बच्चों को बड़ी संख्या में शिष्य बना कर अपने साथ रखने, धर्म की शिक्षा देने या बाल महंत बनाने का सब से बड़ा कारण यह है कि धर्म की शिक्षा प्राप्त ये बच्चे इन सब से वफादार होने के साथसाथ सस्ते मजदूर के रूप में काम करते हैं. इन धार्मिक बाल मजदूरों को दो वक्त की रोटी और पहनने के लिए कपड़े के अलावा किसी चीज से मतलब नहीं होता क्योंकि ये बड़े साधु, महंत या धर्म के ठेकेदार इन बच्चों को अपने अनुसार ढाल लेते हैं. वहीं इन के भोलेपन के कारण लोगों का इन पर भरोसा भी ज्यादा होता है और चढ़ावा भी ज्यादा चढ़ता है. लेकिन चढ़ावे की राशि में से बड़ा हिस्सा इन बड़े महंतों की झोली में ही चला जाता है तो आखिर क्यों न ये बड़े महंत शिक्षा के नाम पर इन धार्मिक बाल मजदूरों को अपने यहां पालें.
बच्चों का शोषण
देश भर में सैकड़ों नहीं हजारों ऐसे आश्रम हैं जहां बच्चों को धर्म की शिक्षा दी जा रही है. इन बच्चों को धर्म की शिक्षा सिर्फ इसलिए दी जाती है कि ये कम उम्र से ही धर्म के प्रति इतने कट्टर हो जाएं कि धार्मिक आतंकवादी का रूप ले लें और धार्मिक गतिविधियों के अलावा कुछ दूसरा सोच भी न सकें. यही नहीं इन आश्रमों में शिक्षा के लिए आए इन बच्चों के शारीरिक शोषण से भी इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन ये बच्चे खुल कर विरोध भी नहीं कर सकते और करते भी हैं तो इन की आवाज को बहुत आसानी से दबा दिया जाता है. पिछले दिनों एक बाबा के छिंदवाड़ा स्थित आश्रम के कुछ बच्चों की मौत आश्रम के परिसर में हो गई थी. इन बच्चों की मौत कोई स्वाभाविक मौत नहीं बल्कि यह किसी न किसी तरह के शोषण का ही नतीजा था. कहा जाता है कि इस तरह के आश्रमों के बच्चों से उलटेसीधे काम करवाने के साथसाथ उन का यौन शोषण भी किया जाता है. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस तरह की दुर्घटनाओं के बाद भी जल्दी कोई जांच नहीं होती और होती भी है तो आखिरकार मामले की लीपापोती कर दी जाती है.
गेरुआ या सफेद वस्त्र पहन अपने को धन के लोभ या माया से दूर बताने वाले धर्म के ठेकेदार देखने में तो साधारण लगते हैं. इन के नाम से कोई संपत्ति भी नहीं होती है लेकिन अपनी संस्थाओं के नाम से दुनिया भर में ये अरबों की संपत्ति रखते हैं. अलगअलग धर्म के ठेकेदार आए- दिन एकदूसरे पर तरहतरह के आरोप लगाते रहते हैं. कभी ईसाइयों पर धर्म परिवर्तन की तोहमत हिंदू धर्म के ठेकेदार लगाते हैं तो कभी मुसलिम धर्म के ठेकेदार इसलाम को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में लगे हैं. ये सभी धर्म के ठेकेदार एकदूसरे पर आरोप सिर्फ इसलिए लगाते हैं ताकि ये खुद को एकदूसरे से बेहतर बता कर अपना बचाव कर सकें. पर इन सभी धर्मों के ठेकेदारों का मकसद एक ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ज्यादा से ज्यादा चंदा उगाही की जा सके और होता भी यही है. दुनिया भर में लाखों लोग अपनी मेहनत की कमाई में से हर साल धर्म के ठेकेदारों को अरबों का दान दे देते हैं और इस तरह इन पंडेपुजारियों और धर्म के ठेकेदारों की दुकानदारी चलती रहती है.
देश भर में तमाम ऐसे गैर सरकारी संगठन भी बने हैं, जो बच्चों के कल्याण एवं विकास के लिए काम करते रहें. ये गैर सरकारी संगठन फैक्टरियों, दुकानों व घरों में काम करने वाले बाल मजदूरों को पकड़वा कर उन्हें शोषण से मुक्त करवाते हैं. लेकिन देश भर के इन तमाम धार्मिक संस्थाओं के बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रहे लाखों बच्चों को छुड़वाना तो दूर इन के खिलाफ आवाज उठाने की भी इन में हिम्मत नहीं होती. इस का एकमात्र कारण है कि धर्म के इन ठेकेदारों को बड़ी संख्या में जनता का समर्थन हासिल है और इस जन समर्थन के चलते ही राजनेता या प्रशासन इन का विरोध करने से डरते हैं ताकि जनता का विरोध न झेलना पड़े. छिंदवाड़ा के आश्रम में बच्चों की मौत के बाद देश भर में लोगों ने जिस तरह ऐसे बाबाओं या सफेदपोशों का विरोध किया एवं उन के पुतले फूंके उस से यह तो लगा है कि लोगों में जागरुकता आ रही है.
यदि लोग इसी तरह जागरूक बनें और इन धर्म के अंधविश्वासी पचड़ों से बाहर निकल अपने जीवन में वैज्ञानिक सोच को विकसित करें तो वह दिन दूर नहीं जब किसी 10 साल के बच्चे को अपना महंत बना कर उस की पूजा करने के बजाय मांबाप अपने बच्चे को शिक्षित कर उस का आने वाला कल संवारेंगे ताकि पढ़लिख कर उन का बच्चा भी अपनी सोच से देश, समाज, घरपरिवार की सेवा कर सके.