यह एक इंस्पैक्टर की कमजोरी या छिछोरापन नहीं, बल्कि डांस की खूबी और डांसर की अदाएं थीं, जो उस ने मजबूर व मदहोश हो कर डांसर पर रुपए न्योछावर करते हुए लुटा दिए. यह वाकिआ 10 अप्रैल, 2016 को भिंड, मध्य प्रदेश में हुआ, जहां शहर में व्यापार मेला लगा हुआ था. मेले में फिल्मी गानों की धुनों पर डांसर जब थिरकने लगीं, तो लड़कों ने जम कर डांस का लुत्फ उठाया. जिन की जेब में नोट थे, उन्होंने दांतों में दबा कर खूब नोट उड़ाए. इन में से एक था इंस्पैक्टर कुशल सिंह भदौरिया, जिस की ड्यूटी इस मेले में लगी थी. दूसरे लोगों की तरह वह इंस्पैक्टर भी नाच में ऐसे डूबा कि जेब से निकाल कर नोट उड़ाने लगा और मंच पर जा कर गाना भी गाया. एक इंस्पैक्टर के नाचने वालियों पर नोट उड़ाने की बात आम हुई, तो दूसरे दिन उसे लाइन हाजिर कर दिया गया.

क्या यह कोई गुनाह था  

इस सवाल का जवाब शायद ही कोई हां में दे. वजह, यह एक शौक है. फर्क इतना है कि इसे ड्यूटी के दौरान पूरा किया गया, जिसे पुलिस महकमे की साख पर बट्टा लगा माना गया. यही इंस्पैक्टर ड्यूटी के दौरान कहीं सत्यनारायण की कथा या सुंदरकांड के पाठ में जा कर पंडित को न्योछावर के रुपए देता, तो लोग उस की तारीफ करते नहीं थकते.

यह दोहरापन क्यों

न्योछावर का रिवाज बहुत पुराना है और यह धार्मिक जलसों से ही पैदा हुआ है. हर मांगलिक यानी शुभ काम में लोग पैसे न्योछारते हैं. शादी हो रही हो, तो दूल्हादुलहन के सिर पर दोनों पक्षों के घर वाले पैसे न्योछावर करते हैं और पंडित समेत छोटी जाति वाले को देते हैं. ऐसा माना जाता है कि जिस किसी को आप चाहते हैं, अगर उस के सिर पर से 3 बार कुछ रुपए घुमा कर पंडित या किसी गरीब को दे दो, तो उस शख्स का बुरा नहीं होता. शादीब्याह में लंबे रीतिरिवाजों की एक वजह यह भी है कि इस की हर रस्म में पैसे न्योछारे जाते हैं, जिस का एक बड़ा हिस्सा पंडितजी की जेब में जाता है. बच्चे का जन्मदिन हो तो न्योछावर, दूसरा कोई धार्मिक जलसा हो तो न्योछावर, घर में किन्नर आएं तो न्योछावर. गृह प्रवेश हो तो भी न्योछावर का रिवाज है. लकिन यही न्योछावर अगर नाचने वाली लड़कियों को दे दी जाए, तो देखने वालों को डांस में बेहूदगी नजर आने लगती है. ये डांसर देखने वालों का तो भरपूर मनोरंजन करती हैं और उन्हें डांस सीखने में मेहनत भी खूब लगती है, पर पूजापाठ में पंडित रटेरटाए मंत्र पढ़ता है और यजमान की सलामती के नाम पर खूब न्योछावर बटोरता रहता है. इस पर किसी को कोई एतराज नहीं होता.

डांस और पूजा में फर्क हो सकता है, पर इन दोनों में ही पैसों के नजरिए से कोई फर्क नहीं होता. डांस देख कर लोग अपने गम और परेशानियां भूलते हुए खुश हो कर न्योछावर करते हैं और पूजापाठ और खुशी के दूसरे मौकों पर कोई अनहोनी न हो, इस के एवज में न्योछावर करते हैं. लेकिन पैसा डांसर की जेब में जाता है, तो कइयों के पेट में मरोड़ उठने लगती है. उन्हें समाज, संस्कृति और धर्म की चिंता सताने लगती है, इसलिए वे तरहतरह की दुहाई देते हुए इस में बेहूदगी ढूंढ़ने और साबित करने लगते हैं. जाहिर है, खोट लोगों की नजर में है, जिस के जिम्मेदार वे लोग हैं, जो चाहते हैं कि न्योछावर का पैसा सिर्फ पंडों की जेब में जाए.

जिस का पैसा उस का हक

पुराने जमाने में मुजरे इफरात से होते थे, जिन में पैसे वाले जमींदार, नवाब वगैरह नाचने वाली औरतों को खूब न्योछावर देते थे, इसलिए उन्हें ऐयाश कहा जाता था. वही लोग सुबह जब नहाधो कर धोतीकुरता पहन कर अपने माथे पर तिलक लगा कर मंदिर मेें पैसा चढ़ाते थे, तो देवता और दानवीर नजर आने लगते थे. वे लोग इस बात की जरा भी परवाह नहीं करते थे कि कौन इन के बारे में क्या कह रहा है. वे अपने पैसे का मरजी से इस्तेमाल करते थे. आजकल हर किसी की जेब में पैसा है, इसलिए यह हक भी उसे है कि वह पैसों को कैसे खर्च करे या लुटाए. जिस मेले में नाच हो रहा होता है, वहां का माहौल देखने के काबिल होता है. जब डांसर ठुमके लगाती हैं, हुस्न के जलवे बिखेरती हैं और नैनों से बाण मारती हैं, तो देखने वालों का हाथ अपनी जेब की तरफ चला ही जाता है. उन की नीयत में खोट नहीं होता, बल्कि दिल में खुशी होती है, जिस के चलते वे न्योछावर करने से कतराते नहीं.

पूजापाठ और धार्मिक जलसों की तरह ही नाचनागाना कोई अपराध नहीं है. भिंड के व्यापार मेले में डांस का प्रोग्राम किसी कानून को नहीं तोड़ रहा था, न ही इंस्पैक्टर समेत दूसरे नौजवानों या बूढ़ों ने अपने पैसे लुटा कर कोई कानून तोड़ा था. यह तो साफ दिख रहा है कि वे अपनी खुशी का इजहार कर रहे थे. फिर एक को ही सजा क्यों  क्या इसलिए कि वह सरकारी मुलाजिम था और ड्यूटी पर था  

शान की बात है न्योछावर

आज भी गांवदेहातों में रईस आदमी वही माना जाता है, जो डांसरों पर ज्यादा पैसे लुटाता है. अब यही डांस शहरों में आ कर हाट बाजारों और मेलों में दिखने लगा है, जहां जातपांत या अमीरीगरीबी नहीं चलती. कोई भी अपनी मरजी से डांसर पर पैसा न्योछावर कर सकता है, तो इसे गुनाह या ओछा काम मानना डांसर के पेशे और हक पर डाका डालने जैसी बात है. डांस एक हुनर है. इस में डांसर को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, तभी तो वे देखने वालों को लुभा पाती हैं. इस पर भी दिक्कत यह कि जब तक जवानी है, तभी तक ही डांस और उस से मिलने वाली न्योछावर है. इसी न्योछावर से कई घरों के चूल्हे जलते हैं, बच्चे स्कूल जा पाते हैं और डांसरों और उन के घर वालों की दूसरी जरूरतें पूरी हो पाती हैं. कई जातियां तो डांस की वजह से ही जानी जाती हैं. इस दोहरेपन का मकसद ही गरीबों और छोटी जाति वाली लड़कियों के पेट पर लात मारना है, इसलिए मेलों, हाट बाजारों और डांस बारों में होने वाले डांस को बेहूदा कहते हुए हल्ला मचाया जाता है. इस के बाद भी लोग इन्हें देखने जाते हैं, तो यह उन की मन बहलाने की जरूरत है, जिस पर कोई लगाम नहीं कसी जा सकती. कला के शौकीन और प्रेमी हर जगह हैं, फर्क उन की माली हैसियत का है. पर इस बिना पर किसी एक को बाजारू नचनिया व दूसरे को बड़ा कलाकार कहना भेदभाव करने जैसी ही बात है. 

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