दिशा और मयूर की लाइफस्टाइल वैसी ही है जैसी आजकल ज्यादातर वर्किंग कपल्स की होती है. सुबह से जो भागदौड़ शुरू होती है वह रात ढलने तक चलती रहती है. फिर बिस्तर पर ढेर. अगली सुबह फिर वही रूटीन. ज्यादातर कपल्स को आजकल औफिस के काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं. जिन के बच्चे हैं वे बच्चों को भी इसी दौड़भाग का हिस्सा बना कर रखना चाहते हैं – कभी ट्यूशन तो कभी डांस क्लास तो कभी कराटे या फुटबौल प्रैक्टिस. एक के बाद एक क्लास में जाते बच्चों के पास अपने मातापिता से समय की मांग करने का समय ही नहीं बचता.

दिशा कहती है, ‘‘अब पहले की तरह एक सैलरी में तो घर चलने से रहा. अच्छी लाइफस्टाइल मेंटेन करने के लिए पतिपत्नी दोनों का वर्किंग यानी कमाऊ होना जरूरी है.’’

आज की बिजी लाइफ में जहां केवल काम ही जिंदगी की प्राथमिकता बन गया है, वहां पतिपत्नी के आपसी रिश्ते भी एक फाइल में बंद हो कर रह गए हैं जो शायद रिटायरमैंट के बाद ही निकलेगी. लेकिन कैरियर की ऐसी सक्सैस का क्या फायदा जो पूरी जवानी निगल जाए? बुढ़ापे में जब न स्वास्थ्य रहेगा और न उमंग, तब एकदूसरे की दवाइयों का खयाल रखने में क्या खुशी मिलेगी भला.

माना कि प्रोफैशनल सक्सैस चाहिए, कैरियर बनाने का भी यही समय है परंतु काम का असर आपसी रिश्ते पर पड़ने लगे, इस से पहले सचेतने में ही समझदारी है. प्रोफैशनल लाइफ के कारण पर्सनल लाइफ खराब न हो, इसलिए ‘वर्कलाइफ बैलेंस’ जैसे टर्म तेजी से उभर रहे हैं. औफिस कहीं आप के घर पर हावी न हो जाए, इस से पहले इन अलार्म बैल्स को सुनिए :

औफिस में ऐक्सट्रा घंटे

आजकल 9 से 5 का जमाना नहीं रहा. 10 से 12 घंटे की नौकरी आमबात हो गई है. लेकिन कई बार बौस की नजरों में चमकने के लिए लोग दफ्तर से घर आने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करते. औपरेशंस डिपार्टमैंट में काम करने वाली मानसी जब तक घर पहुंचती है तो उस के बच्चे सो चुके होते हैं. मां के उस के साथ रहने के कारण मानसी को अपने बच्चों की चिंता नहीं होती पर उस के बच्चे अपना बचपन बिना मां के बिताने को मजबूर हैं. ऐसे ही सुधीर के घर पहुंचने तक लगभग सभी सो चुके होते हैं. वह अकेले ही खाना खाता है.

उलझन : ऐसे कैरियर का क्या फायदा जिस के लिए आप का भरापूरा परिवार आप की जिंदगी से गायब रहे. परिवार हमारी थकान मिटाता है, उदासीनता हटा कर जीवन में खुशहाली के रंग भरता है.

टिप : किसी मीटिंग या किसी इवैंट के कारण, लेट केवल कभीकभी हों. नियम बना लें और अपने परिवार के साथ रात का खाना जरूर खाएं.

औफिस का काम घर पर लाना

लैपटौप और स्मार्टफोन आने की वजह से काम के घंटे फैल कर 24 घंटों में परिवर्तित हो गए हैं. जब ईमेल आई तभी चैक कर के उस का तुरंत रिप्लाई भेजना एक ट्रैंड बन गया है. वैसे तो यह अलगअलग कंपनी के कल्चर पर निर्भर करता है परंतु यदि संभव हो तो औफिस का काम घर लाने से बचें.

प्रियंका बताती है, ‘‘जब तक बहुत जरूरी न हो, वह घर पर औफिस का काम या कोई मेल चैक नहीं करती है. घर में केवल फिजिकल ही नहीं, मैंटल उपस्थिति भी उतनी ही जरूरी होती है.’’

उलझन : जब आप की फैमिली काम के घंटों के बीच आप को डिस्टर्ब नहीं करती तो आप के औफिस को भी यह सीखना होगा.

टिप : घर पर सहकर्मियों से गप लगाने से परहेज करें. फोन और लैपटौप को दूर रख कर, अपना समय परिवार के साथ ईमानदारी से बिताएं. यदि कोई खास दफ्तरी काम आन पड़े तो किसी अलग कमरे में बैठ कर पूरे ध्यान से उसे जल्दी पूरा करें और फिर खुद को मैंटली लौगऔफ कर लें.

औफिस कलीग से नजदीकी

कामकाजी लोग घर की अपेक्षा औफिस में ज्यादा समय बिताते हैं. ऐसे में कई बार वे अपने स्पाउस के बजाय कलीग के अधिक करीब आने लगते हैं.

उलझन : अभय के टूरिंग जौब के कारण वह अकसर अपनी कलीग मधु के साथ ट्रैवल करता था. मधु से कब उस की नजदीकियां बढ़ गईं, उसे पता ही न चला.

टिप : ऐसी स्थिति पैदा हो जाए तो अपने स्पाउस को पता लगने से पहले ही चेत जाएं वरना नौकरी के कारण आप की गृहस्थी बिखरने में देर नहीं लगेगी.

इवैंट्स पर गायब रहना

नीरज अपने, अपनी पत्नी और अपनी बेटी के जन्मदिनों पर औफिस से छुट्टी जरूर लेता है. वह समझता है कि नौकरी चलती रहेगी पर जिंदगी में ये खुशियों के पल लौट कर वापस नहीं आएंगे. वह कहता है, ‘‘बच्चों को बड़े होते देर नहीं लगती. जब तक वे हमारे साथ हैं, हमें भी उन के साथ ढेर सारी अच्छी यादें बटोर लेनी चाहिए.’’ ठीक ही तो है. हर बार ‘टाइम नहीं है’ कि रट अच्छी नहीं लगती.

उलझन : दीपा के बेटे का ऐनुअल डे प्रोग्राम था और उसी दिन औफिस में जरूरी इंटरव्यू भी थे जिन में उस की उपस्थिति जरूरी थी. वह कहती हैं, ‘‘वैसे, मैं कभी भी ऐसे इवैंट मिस नहीं करती हूं पर मजबूरी हो, तो क्या करूं.’’

 टिप : यदि आप की मैनेजमैंट समझ सकती है तो ऐसे दिन औफिस से थोड़ा जल्दी घर चली जाएं. लेकिन यदि संभव ही न हो तो तकनीकी सहारा लें और वीडियोकौल की सहायता से एकसाथ

2 जगह उपस्थिति लगाएं. यदि आप की मंशा अपने पारिवारिक इवैंट मिस करने की नहीं है तो अकसर आप खास मौकों पर खुद को अपने परिवार के साथ पाएंगे.

वर्कलाइफ बैलेंस

यदि आप का परिवार बारबार आप से समय न देने की शिकायत करता है तो आप को इस बात की तरफ विचार करना चाहिए. आप को ध्यान से सोचना चाहिए कि क्या वाकई आप अपनी नौकरी को अपने परिवार से ज्यादा प्रायोरिटी दे रहे हैं? माना कि आप नौकरी में मेहनत परिवार को सुखसुविधाएं देने के लिए करते हैं पर कहीं ऐसा न हो कि आप का परिवार आप के बिना ही जीना सीख जाए.

उलझन : आशीष ने कैरियर में आगे बढ़ने को ही सर्वोच्च माना. परिवार के साथ समय बिताना उसे हमेशा टाइमवैस्ट लगा. आज उस का परिवार उसी के कमाए पैसों से मूवी के टिकट बुक करने से पहले उस की उपस्थिति के बारे में उस से पूछता भी नहीं है.

टिप : अच्छी आमदनी भोगने के लिए सभी को पारिवारिक साथ चाहिए. इस से पहले कि आप का परिवार आप को गिनना छोड़ दे, उन के बनाए कार्यक्रमों में साथ रहें.

दरअसल, औफिस और घर, दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. न घरपरिवार के बिना जिया जा सकता है और न औफिस कैरियर के बिना घर पनप सकता है. जैसे औफिस की टाइमिंग होती हैं, वैसे ही घर को भी समय देना जरूरी है.

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