बेहतरीन ‘स्लिप फिल्डर’ और आक्रामक बल्लेबाज के बाद शानदार कप्तान और एक सफल कोच बनकर भारतीय क्रिकेट में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व कप्तान अजीत वाडेकर के क्रिकेट करियर की शुरुआत एक बस के सफर से हुई थी.
वाडेकर को इस बात का इल्म भी नहीं था कि यहां से उनका एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी बनने का सफर शुरू होने जा रहा है, क्योंकि वह इंजीनियर बनने की राह पर थे.
एक इंटरव्यू में वाडेकर ने अपने जीवन की कई अनछुए पहलुओं पर चर्चा की थी. आपको बता दें कि मुंबई के एक अस्पताल में पिछले साल अगस्त माह के दौरान वाडेकर का लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया था. वह 77 साल के थे.
क्रिकेट करियर की शुरुआत के बारे में पूछे जाने पर रोमांचक कहानी सुनाते हुए वाडेकर ने कहा था कि वह भारत के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी बालू गुप्ते के साथ बस में एलिफिंस्टोन कौलेज जा रहे थे.
उन्होंने कहा, “हम दोनों एक ही कौलेज में थे. वह मुझे दो साल सीनियर थे और आर्ट्स में थे और मैं साइंस में था. मैंने क्रिकेट भी नहीं खेला था. मुझे तो इंजीनियर बनना था.”
वाडेकर ने कहा, “बालू मेरे पड़ोसी थे और इसीलिए, हम एक ही बस से कौलेज जाते थे. एक दिन उन्होंने मुझे कहा ‘अजीत क्या तुम हमारी कौलेज क्रिकेट टीम के 12वें खिलाड़ी बनोगे?’ उनकी प्लेइंग इलेवन बेहतरीन थी, लेकिन उनके पास मैदान पर पानी ले जाने वाला खिलाड़ी नहीं था. उन्होंने कहा कि मुझे इसके लिए एक दिन के तीन रुपये भी मिलेंगे. 1957 में तीन रुपयों की कीमत बहुत होती थी. यहीं से मैंने क्रिकेट में कदम रखा.”
पूर्व भारतीय खिलाड़ी वाडेकर ने इसके बाद कौलेज में क्रिकेट खेलना शुरू किया और वहां उनकी मुलाकात सुनील गावस्कर के अंकल माधव मंत्री से हुई. अपनी पढ़ाई के बाद वह काफी देरी से अभ्यास के लिए मैदान पर पहुंचते थे. माधव ने वाडेकर को नेट पर बल्लेबाजी करने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने कौलेज टीम के कप्तान को कहा कि वाडेकर टीम में नियमित रूप से खेलते रहेंगे. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
वाडेकर ने 1958-59 में मुंबई में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया था. इसके बाद, सन 1966 में वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी. उन्होंने एक क्रिकेट खिलाड़ी के तौर पर भारतीय टीम के लिए खेले गए 37 टेस्ट मैचों में 2,113 रन बनाए. इसमें 14 अर्द्धशतक और एक शतकीय पारी शामिल है. इसके अलावा, वाडेकर ने भारतीय टीम के लिए दो वनडे मैच भी खेले.
आक्रामक बल्लेबाज के रूप में पहचाने जाने वाले वाडेकर की कप्तानी में भारत ने 1971 में पहली बार इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज जीती थी. उनके ही नेतृत्व में 24 अगस्त 1971 को भारतीय टीम ने इंग्लैंड को 4 विकेट से हराया था. यह इंग्लैंड की धरती पर भारत की पहली टेस्ट जीत थी.
इससे पहले 1968 में न्यूजीलैंड दौरे पर भारतीय टीम के लिए पहले टेस्ट मैच में वाडेकर ने दोनों पारियों में (80 और 71) सबसे अधिक रन बनाए थे. इस मैच में भारत ने पांच विकेट से जीत हासिल की थी. इसके बाद वेलिंग्टन में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में वाडेकर की ओर से खेली गई शानदार 143 रनों की पारी के दम पर भारत ने टेस्ट सीरीज में दूसरा मैच जीता था.
वाडेकर की बदौलत भारत ने चौथे टेस्ट मैच में बाजी मारते हुए न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज 3-1 से अपने नाम की.
भारत सरकार ने वाडेकर को 1967 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा था. इसके बाद 1972 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. बीसीसीआई ने उन्हें 2011 में सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा.