इन दिनों बौलीवुड के फिल्मकार कोरियन फिल्मों के दीवाने हो गए हैं. कई फिल्मकार सफलतम कोरियन फिल्मों के अधिकार खरीद कर उनका भारतीयकरण कर हिंदी में बना रहे हैं. पिछले दिनों प्रदर्शित निशिकांत कामत के निर्देशन में जान अब्राहम के अभिनय से सजी एक्शन फिल्म ‘‘राकी हैंडसम’’ भी एक कोरियन फिल्म का हिंदी रूपांतरण थी और अब इस सप्ताह यानी कि दस जून को एक साथ दो ऐसी फिल्में रिलीज हो रही हैं, जो कि कोरियन फिल्मों का भारतीयकरण हैं. इनमें से एक है दीपक तिजोरी की फिल्म ‘‘दो लफ्जों की कहानी’’ और दूसरी है-रिभु दासगुप्ता के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘तीन’’, जो कि कोरियन फिल्म ‘‘मांटाज’’ का भारतीयकरण है. मगर जब विदेशी फिल्मों का भारतीयकरण किया जाता है, तो रुपांतरणा के दौरान फिल्म में कुछ ऐसी गड़बड़ियां हो जाती हैं कि मूल फिल्म के मुकाबले भारतीय फिल्म का स्तर काफी हद तक गिर जाता है. जिसके चलते फिल्म बाक्स आफिस पर धराशाही हो रही हैं. कोरियन फिल्म पर आधारित फिल्म ‘‘राकी हैंडसम’’ के साथ भी यही हुआ था और इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था.

अब दक्षिण कोरिया की सफलतम फिल्म ‘‘मांटाज’’ पर निर्देशक रिभु दासगुप्ता की रहस्य व रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘तीन’’ 10 जून को रिलीज हो रही है. मगर यह फिल्म भी हिंदी में रूपांतरण के दौरान इस कदर गड़बड़ा गयी कि अमिताभ बच्चन, विद्या बालन और नवाजुद्दीन सिद्दिकी की सशक्त अदाकारी भी इस फिल्म को श्रेष्ठ फिल्मों की श्रेणी में नही ला पाती. धीमी गति की फिल्म ‘‘तीन’’ इंटरवल के बाद लड़खड़ा जाती है. जिन्होंने कोरियन फिल्म ‘‘मांटाज’’ देख रखी है, उन्हें भी ‘तीन’ पसंद नहीं आएगी.

फिल्म ‘‘तीन’’ की कहानी के केंद्र में कलकत्ता शहर में रह रहे जान विश्वास (अमिताभ बच्चन), पुलिस अफसर से पादरी बने फादर मार्टिन (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) और पुलिस अफसर सरिता सरकार (विद्या बालन) हैं. फिल्म में दो बच्चों के लापता होने की जांच पड़ताल समानांतर चलती रहती है. एक बच्ची एंजली का अपहरण व हत्या आठ वर्ष पहले हुई थी, तो दूसरे बच्चे रानी का अपहरण हाल ही में हुआ है. एंजली के अपहरणकर्ता का पता लगाने के लिए जान विश्वास अपने हिसाब से काम कर रहे हैं और उधर रानी के अपहरणकर्ता को पकड़ने के लिए पुलिस विभाग लगा हुआ है.

कहानी शुरू होती है पुलिस स्टेशन में जान विश्वास के पहुंचने से, जिसे पुलिस अफसर सरिता सरकार समझाकर भेज देती हैं कि जब उन्हे सच पता चलेगा, तो वह उन्हे बताएंगी. पता चलता है कि पिछले आठ साल से सच जानने के लिए जान विश्वास पुलिस स्टेशन के चक्कर हर दिन लगाते आ रहे हैं. घर पर जान विश्वास की पत्नी नेंसी (पद्मावती राव) व्हील चेअर पर हैं. वास्तव में आठ वर्ष पहले जब जान विश्वास अपने बेटे पीटर के दिए बीस लाख रूपयों से एक जमीन खरीदने का प्रयास कर रहे थे, तभी उनकी पोती एंजेला का अपहरण हो गया था. पुलिस की मदद लेने के बावजूद उन्हें अपहरणकर्ता को बीस लाख रूपए देने पड़े थे, पर उन्हें एंजली जिंदा नहीं मिली थी. उधर उनका बेटा पीटर इसके लिए उन्हें दोषी मानता है.

एंजली के अपहरणकर्ता को पकड़ने में पुलिस अफसर मार्टिन ने खास दिलचस्पी दिखायी थी. पर एंजली की मौत का उसे ऐसा सदमा लगा कि वह पादरी बन जाता है. पर पिछले आठ वर्ष से जान विश्वास अपनी पोती के अपहरणकर्ता तक पहुंचने के लिए प्रयासरत है. अचानक उसे एक सुराग मिलता है और उस सुराग के आधार पर विना पुलिस को बताए वह अपहरणकर्ता तक पहुंचने में लग जाता है. इधर अब आठ वर्ष बाद मनोहर सिन्हा (सब्यसाची चक्रवर्ती) की बेटी नीता के बेटे रानी का अपहरण हो जाता है. रानी के अहपरण की जांच पुलिस अफसर सरिता सरकार शुरू करती हैं और वह इस काम में मार्टिन की मदद लेती है. पता चलता है कि सारी घटनाएं उसी तरह से घट रही हैं, जिस तरह से  एंजली के अपहरण के समय घटी थी. परदे पर हम देखते हैं कि दूसरी तरफ जान अपने स्तर पर जांच पड़ताल में लगे हुए हैं. अंततः मनोहर सिन्हा को ही रानी के अपहरणकर्ता के रूप में सरिता गिरफ्तार करती है. पर  रानी मिला नही हैं. उधर मार्टिन को लगता है कि मनोहर ने रानी का अपहरण नहीं किया है.

खैर, रानी की तलाश करते हुए मार्टिन वहां पहुंच जाता है, जहां रानी के साथ जान फुटबाल खेल रहे होते हैं. अब राज खुलता है कि मनोहर ने ही एंजली का अहपहरण किया था, क्योंकि उन्हें नीता के दिल का आपरेशन करवाने के लिए पैसे चाहिए थे. उसने एंजली की हत्या नहीं की थी. वह तो एक हादसे में मारी गयी थी.

फिल्म में अमिताभ बच्चन, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, विद्या बालन सहित सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. लेकिन फिल्म के निर्देशक व पटकथा लेखक कई जगहों पर मात खा गए. रिभु दासगुप्ता की बतौर निर्देशक पहली फिल्म ‘‘मिचैल’’ अब तक रिलीज नहीं हुई है. रिभु दासगुप्ता ने ही अमिताभ बच्चन अभिनीत असफल सीरियल ‘युद्ध’ का भी निर्देशन किया था. अब उन्होने रहस्य रोमांच फिल्म ‘‘तीन’’ का निर्देशन किया है. पर यह फिल्म कहीं भी रोमांचित नहीं करती.

फिल्म का अंत अचिश्वसनीय सा लगता है. पटकथा लेखक व निर्देशक इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि क्या रानी अपनी मां को कभी नहीं बताएगा कि उसका अपहरण उसके अपने नाना मनोहर सिन्हा ने नहीं किया था, बल्कि उसे जान विश्वास ने अपने साथ रखा हुआ था. फिल्म में नाटकीयता की भी कमी है. मनोरंजन की चाह रखने वाले दर्शकों को भी यह फिल्म निराश करती है. फिल्म देखते समय लोगों को बार बार सुजाय घोष निर्देशित पिछली फिल्म ‘‘कहानी’ ’याद आती है.

पार्श्व संगीत भी काफी कमजोर है. कैमरामैन तुषार कांति राय ने जरुर कमाल का काम किया है. दो घंटे 17 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘तीन’’ का निर्माण सुजाय घोष, गुलाब सिंह तंवर, हयन्वू थामस किम, सुरेश नायर, समीर राजेंद्रन व गौरी साथे, निर्देशक रिभु दासगुप्ता, संगीतकार क्लिंटन सरेजो, कैमरामैन तुषार कांति राय और कलाकार हैं- अमिताभ बच्चन, विद्या बालन, नवाजुद्दीन सिद्दिकी,प दमावती राव तथा सब्यसाची चक्रवर्ती.

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