पतियों पर अकसर आरोप लगाए जाते हैं कि वे पत्नियों पर गुस्सा करते हैं, उन की परवाह नहीं करते, उन्हें प्रताडि़त करते हैं. पर असलियत में पति अपनी पत्नी के बिना अपनेआप को अधूरा समझते हैं. पति का पत्नी की तरह कोई मायका नहीं होता. विवाह बाद पति न तो अकेला भाईभाभी के घर जा कर रह सकता है न मातापिता के पास. पत्नी के आने के बाद उस का दूसरों से संबंध बेहद औपचारिक हो जाता है. दिल्ली में एक मध्यवर्गीय कालोनी में इसलाम अहमद ने अपनी पत्नी के मायके से न लौटने पर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. आर्थिक संकट से जूझ रहे पति को पत्नी का अभाव इतना खला कि उस ने अपना जीवन ही समाप्त कर डाला.
पतियों पर जोरजबरदस्ती की घटनाएं लाखों में होती हैं पर उसे पतियों का अधिकार जमाने की चेष्टा कह कर कमतर कर दिया जाता है, जबकि असल में यह पति का पत्नी के प्रति प्रेम व निर्भरता का सम्मिलित रूप होता है. पति चाहे प्रेम भरे ड्रामों वाले शब्द न कहे पर रातदिन काम कर के पैसा कमाना और सारा पैसा पत्नी के हवाले कर देना, पत्नी के प्रति प्रेम नहीं तो क्या है? विवाह बाद पतियों के अपनी पूर्व प्रेमिकाओं से संबंध नहीं रहते. मित्रों से मिलनाजुलना कम हो जाता है. भाईबहन से संबंधों में उष्णता गायब हो जाती है. मातापिता के प्रति केवल फर्ज भर रहता है, क्योंकि पति पर तो पत्नी का राज चलता है, उस पर भी उसे उलाहना सुनना पड़ता है कि वह पति के आगे शक्तिहीन है. महिला सशक्तीकरण के नारे के पीछे पतियों के प्रति उन में निरादर की बू आती है.
सब पति अच्छे ही हों, यह जरूरी नहीं पर ज्यादातर पति पत्नी से डरते हैं, उस की चिंता करते हैं, उस के सुखदुख के साथी होते हैं और उस का अभाव उन्हें इसलाम अहमद की तरह इस कदर अवसाद में डाल देता है कि वे आत्महत्या पर उतारू हो जाते हैं. अब जब पत्नियां बराबर सी हैं और घरपरिवार की इकलौती मालकिन हैं, पतिविरोधी आंदोलन को थोड़ा धीमा करना चाहिए. तलाक, परित्याग, दूसरी से प्रेम, शराब आदि की जरूरत ही नहीं होगी अगर पति की तरह पत्नी भी पति का खयाल रखे. पत्नी यह न जताए कि वह पति उस के घर में रह कर एहसान कर रही है. घर तो दोनों से ही बनता है न. अब इसलाम की पत्नी जीवन भर रोएगी कि वह 2 रोज पहले क्यों न मायके से लौट आई पर पति न लौटेगा.