बीती 13 दिसम्बर को मशहूर रामकथा वाचक मोरारी बापू हैरतअंगेज तरीके से देश और दुनियाभर में देह व्यापार के लिए बदनाम इलाके कमाठीपुरा पहुंचे तो वहां की वेश्याएं हैरान हो उठीं क्योंकि उनमें से अधिकांश उनके नाम और प्रसिद्धि से वाकिफ हैं. हालांकि उनके पहुंचने से पहले ही मोरारी बापू के शिष्य ढिंढोरा पीट चुके थे कि भगवान का एक दूत आ रहा है.

वेश्याओं के घर घर जाकर मोरारी बापू उनसे मिले और उन्हें 22 दिसम्बर से शुरू हो रहे रामकथा समागम में आने का न्यौता दिया. कोई अन्यथा न ले और उल्टा सीधा न सोचे इसलिए उनहोंने बहुत जल्द ही अपनी मंशा जाहिर कर दी कि उनके यहां आने का राम मंदिर निर्माण से कोई संबंध नहीं है. वे तो सिर्फ अयोध्या में तुलसीदास की मानस गणिका का वाचन करेंगे जो तुलसीदास और एक गणिका यानि वेश्या और आज की भाषा में सेक्स वर्कर वासंती की बातचीत पर आधारित है.

गौरतलब है कि गणिका वासंती की व्यथा और पीड़ा आज की सेक्स वर्कर्स से भिन्न नहीं है जिसने तुलसीदास को अपने घर आकर रामकथा सुनाने का आग्रह किया था जिसे तुलसीदास टाल नहीं पाये थे. वासंती ने उनके सामने दुखड़ा यह रोया था कि समाज ने उसे अलग थलग कर दिया है.

कमाठीपुरा की वेश्याओं का दुखड़ा वासंती जैसा ही बल्कि उससे भी बदतर है जिसे उन्होंने मोरारी बापू के सामने रोया भी कि पुलिस आए दिन उन्हें प्रताड़ित करती है और उनके पास न तो रहने के लिए अच्छा घर है और न ही साफ सफाई के इंतजाम हैं. इस पर मोरारी बापू तुलसीदास की ही तरह खामोश रहे तो इसके अपने अलग माने भी हैं कि समाज और धर्म की नजर में वेश्याएं पापिन हैं और समाज को दूषित करती हैं इसलिए उन्हें दूर रख उनके साथ शूद्रों सरीखा बरताव किया जाता है.

मोरारी बापू जाने क्यों वेश्याओं को रामकथा का रसस्वादन अयोध्या में ही करवाना चाहते हैं इसलिए कोई 60 वेश्याओं के मुंबई से अयोध्या आने जाने बाबत इंतजाम करने का उन्होंने अपनी मंडली को आदेश दिया कि उनके आने जाने का किराया और अयोध्या में ठहरने और खाने पीने का खर्च वे ही उठाएंगे.

कौन हैं मोरारी बापू

धर्म के धंधे में मोरारी बापू का अपना एक अलग नाम और मुकाम है. देश भर में उनके करोड़ों शिष्य और अनुयायी हैं जो उन्हें राम का दूत मानते हैं. करोड़ों घरों में ही उनका नियमित विधि विधान से देवताओं की तरह पूजा पाठ होता है और उनके प्रवचनों व रोज हर कहीं होने वाली रामकथा को सुना जाता है .

मोरारी बापू अक्सर अपनी कथा में पुराने हिट सूफिया गानों की पेरोडी बनाकर रामकथा का श्रवण भक्तों को करवाते हैं. गानों में पिरोई रामकथा सुनकर भक्त पागलों की तरह पांडाल में ही नाचने गाने लगते हैं और एवज में अपना सब कुछ लुटाने तैयार हो जाते हैं.

मोरारी बापू के दादा त्रिभुवनदास उनके गुरु थे जो उन्हें रामायण रटाया करते थे. धीरे धीरे उन्हें यह ग्रंथ कंठस्थ हो गया और उन्होने रामकथा वांचने को ही धंधा यानि आजीविका का साधन बना लिया जो स्कूल की मास्टरी की पगार के मुक़ाबले ज्यादा पैसा बरसाने वाला साबित हुआ.

देखते ही देखते वे इतने रईस हो गए कि उन्होने दक्षिणा लेना बंद कर दिया. बढ़ती शोहरत उन्हें धीरुभाई अंबानी के नजदीक ले आई और वे एक तरह से अंबानी परिवार के कुलगुरु बन बैठे. धीरुभाई अंबानी कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने से पहले उनसे ही पूजा पाठ करवाते थे उनकी मौत के बाद बेटे अनिल और मुकेश भी इस रिवाज को निभाते रहे हैं. कहा जाता है जब उनके दोनों बेटों में प्रापर्टी को लेकर विवाद और मतभेद हुये थे तो उन्होंने मोरारी बापू को ही सुलह और मध्यस्था के लिए कहा था.

अब मोरारी बापू देश के सबसे बड़े और ब्रांडेड रामकथा वाचक हैं. उनकी महत्ता बढ़ने को यह भी कहा जाता है कि तुलसीदास की तरह हनुमान ने उन्हें भी दर्शन दिये थे और उनके कंधे पर हमेशा लटकता शाल हनुमान ने उन्हें गिफ्ट किया था. वे जहां भी जाते हैं वहां के नेता, अधिकारी, व्यापारी और आम लोग हाथ बांधे उनकी आगवानी के लिए खड़े नजर आते हैं. इससे समझा सकता है कि धर्म की अंधी जनता पर उनका कितना गहरा असर है.

दान या उद्धार

अपनी पत्नी और चारों बच्चों के साथ एशोआराम की ज़िंदगी जी रहे मोरारी बापू को वेश्याओं के इलाके में जाकर उन्हे रामकथा सुनाने अयोध्या ले जाने के इंतजाम क्यों करने पड़े? इस सवाल का पहला जवाब सच के बेहद नजदीक है कि उनकी मंशा समाज के इस अनिवार्य और महत्वपूर्ण वर्ग को धर्म का ग्राहक बनाने की है जिससे उनसे भी दान दक्षिणा के नाम पर पैसा झटका जा सके. जाहिर है रामकथा का बाजार भी दूसरे बाज़ारों की तरह मंदी की चपेट में है जिससे उबरने वे इस बदनाम मंडी में जाने मजबूर हुये .
और अगर उनकी मंशा इन पतिताओं के उद्धार की है तो वह कैसे रामकथा से दूर होगी यह वह शायद ही बता पाएं.  कमाठीपुरा के सेक्स वर्कर्स जिस नर्क को रोज भुगतती हैं वह गरुड़ पुराण में वर्णित नरकों से भी ज्यादा वीभत्स और यंत्रणदायक है जिस पर आए दिन बुद्धिजीवी समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता बहसें करते रहते हैं लेकिन आज तक कोई ठोस समाधान नहीं सुझा पाये जिससे लगता है कि कमाठीपुरा जैसे इलाके नर्क थे और नर्क ही रहेंगे.

मोरारी बापू अगर वाकई इनका भला रामकथा में देखते हैं तो वहीं क्यों रामकथा आयोजित नहीं कर डालते इससे वेश्यागामियों को भी इस कथा का रस्सावदन करने मिलेगा और वे भी पाप मुक्त हो जाएंगे और मुमकिन है यह बदनाम इलाका भी अयोध्या की तरह पवित्र हो जाये.

लगता नहीं कि मोरारी बापू जैसे धर्मगुरु इस सच से नावाकिफ होंगे की वेश्याएं आदिकाल से हैं और राजाश्रय भी उन्हें मिलता रहा है. धर्म के नाम पर देवदासियां बनाई जाने वाली कमसिन युवतियां वेश्याएं नहीं तो क्या होती हैं .

मोरारी बापू पहले भी दलितों यानि हरिजनों के लिए रामकथा का आयोजन कर विवादों में रह चुके हैं. लेकिन यह नहीं कह सकते कि शूद्रों के लिए आयोजित रामकथा से समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान मिल गया है और ऊंची जाति वाले उन्हें रामभक्त कहते गले से लगाने लगे हैं.

रामकथा से दलितों का दलितपन दूर होने का दावा वे कर सकें तो बात खुशी की ही होगी. लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि रामकथा जैसे दूसरे कई धार्मिक आयोजनों के नाम पर दलितों की जेब भी काटी जाती है.

28 दिसम्बर के बाद अयोध्या में रामकथा सुनकर कमाठीपुरा वापस आने वाली सेक्स वर्कर्स की नारकीय ज़िंदगी में कौन सा बदलाव या क्रांति आ जाएगी यह मोरारी बापू नहीं बता पाएंगे. हां इतना जरूर उन्हें मालूम है कि वे देह बेचकर कमाए पैसे मंदिरों में चढ़ायेंगी ताकि धर्म के ढोंगियों की दुकान चल सके.

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