सवाल
मैं ने प्रेम विवाह किया है और मेरा एक 9 महीने का बेटा है. मैं ने अपने पति को अपने पुराने प्रेमी के बारे में पहले बताया था. पिछले कुछ समय से मेरे पति मुझ पर यकीन नहीं करते हैं. वे छोटीछोटी बातों पर गालीगलौज करते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब
कोई भी शौहर बीवी के प्रेमी को बरदाश्त नहीं कर पाता है. अपने प्रेमी के बारे में बता कर आप भूल कर चुकी हैं. अब इसे प्यार और सब्र से सुधारने की कोशिश करें.

पति को भरोसा दिलाती रहें कि अब आप सिर्फ उन्हीं की हैं और किसी की नहीं. बेवजह उन का विरोध न करें. सवाल बच्चे के भविष्य का भी है इसलिए आप को ही झुक कर काम लेना होगा.

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जब पति पीटे

मध्यवर्गीय परिवार की रेखा और यतिन ने अपने परिवारों की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था. शादी की शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ समय बाद रेखा के प्रति यतिन का व्यवहार बदलने लगा. वह आएदिन छोटीछोटी बातों को ले कर रेखा पर गुस्सा करने लगा और एक दिन ऐसा आया जब उस ने रेखा पर हाथ उठा दिया. पहली बार हाथ क्या उठाया, यह रोज का नियम बन गया. हालांकि यतिन किसी गलत संगत में नहीं था. खानेपीने का शौकीन यतिन अकसर रेखा के बनाए खाने में कोई न कोई कमी निकाल कर उसे पीटता था.

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धीरेधीरे 15 वर्ष गुजर गए. रेखा 3 बच्चों की मां बन गई. बच्चे बड़े हो गए लेकिन यतिन के व्यवहार में बदलाव न आया. वह बच्चों के सामने भी रेखा को पीटता था. वहीं, वह कई बार अपनी गलती के लिए माफी भी मांग लेता था. रेखा चुपचाप पति की मार खा लेती. उन का बड़ा बेटा जब 14 साल का हुआ तो उस ने पिता के इस व्यवहार पर आपत्ति जताते हुए मां को ये सब और न सहने की सलाह दी. रेखा भी पति की रोजरोज की मार से अब तंग आ चुकी थी. एक दिन रेखा का बेटा अपनी मां को महिला आयोग में अपने पिता की शिकायत दर्ज करवाने ले गया. आयोग ने रेखा की परेशानी को ध्यान से सुना और यतिन को बुला कर दोनों को समझाने का प्रयास किया.

स्थिति यहां तक हो गई थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह कर एकदूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. कड़वाहट बढ़ती जा रही थी. कुछ दिनों के बाद रेखा ने घर छोड़ने का फैसला किया. वह बच्चों को ले कर किराए के एक मकान में अलग रहने लगी. अब आएदिन दोनों महिला आयोग में जा कर आमनेसामने खड़े होते थे. दोनों के बीच कहासुनी होती, आरोपप्रत्यारोप होते. बात बनने के बजाय बिगड़ती जा रही थी. यतिन ने घर के मामले को पुलिस में ले जाने को अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया. उसे इस बात को ले कर बच्चों से भी घृणा होने लगी. उसे लगा कि रेखा ने उस के बच्चों को उस के खिलाफ भड़का दिया है.

रेखा घर चलाने के लिए पति से हर माह खर्च देने की मांग कर रही थी. उधर, यतिन खर्च देने को तैयार नहीं था. इस सब के बीच दोनों की रिश्तेदारों व आसपड़ोस में कई लोग ऐसे भी थे जो स्थिति का लुत्फ उठा रहे थे. कुछ महीनों बाद जब यतिन से बच्चों की दूरी नहीं झेली गई तो आखिरकार वह पत्नी और बच्चों को मना कर घर वापस ले आया. इधर रेखा को भी इस दौरान यह समझ आ गया था कि उस के लिए बच्चों को अकेले पालना आसान काम नहीं था. इस तरह एक बिगड़ता हुआ घरौंदा फिर से बस गया. हालांकि इस तरह के हर मामलों में बिगड़ी हुई बात हमेशा बन ही जाए, ऐसा हमेशा संभव नहीं होता. अकसर पतिपत्नी के बीच की बात जब चारदीवारी से निकलती है तो रिश्तों में तल्खियां बढ़ जाती हैं और बनने की संभावना वाला रिश्ता भी टूट जाता है.

हम इस बात की पैरवी बिलकुल नहीं कर रहे हैं कि महिलाओं को चुपचाप घरेलू हिंसा का शिकार होते रहना चाहिए या खुद पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए बल्कि आशय यह है कि जिन रिश्तों में कुछ गर्माहट हो और उन के बचने की थोड़ीबहुत भी उम्मीद हो तो उन्हें टूटने से बचा लेना ही समझदारी है. रिश्तों के टूटने का दंश किसी एक को नहीं बल्कि कई लोगों को जीवनभर झेलना पड़ता है. ऐसे भी अनेक मामले हैं जिन में मामूली बात पर परिवार टूट जाते हैं. पत्नी आवेश में आ कर घरेलू हिंसा कानून का फायदा उठाना चाहती है.

महिलाओं को उन के कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की बात की जाती है तो उन अधिकारों के गलत इस्तेमाल न करने की नसीहत भी देनी जरूरी है.

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