एक के बाद एक बाबाओं की पोल खुल कर लोगों की आंखों के सामने आ रही हैं, उसके बाद भी शासन-प्रशासन, राजनीतिक दल और आम जनता से जुड़े लोगों का मोह ऐसे बाबाओं से टूट नहीं रहा है. मथुरा के जवाहर बाग पर कब्जा करने वाला रामवृक्ष यादव भी बाबा ही था. मथुरा जैसी ही घटना हरियाणा में रामपाल बाबा के साथ हुई थी. शासन-प्रशासन, राजनीतिक दल और आम जनता की शह पर ही यह बाबा इतने ताकतवर हो जाते हैं कि इनमें सामने पुलिस तक बौनी नजर आने लगती है.

मथुरा में एसपी और दरोगा की हत्या करने वाले लोगों को पूरे 2 साल तक उत्तर प्रदेश की सरकार से शह मिलती रही. मथुरा के जिला उद्यान विभाग के लोग थाने में मुकदमा पर मुकदमा करते रहे, पर मथुरा का जवाहर बाग खाली नहीं हो सका. जब अदालत ने कठोर रूख अपनाया, तब पुलिस को कड़े कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. इसके बाद भी राजधानी लखनऊ से स्पष्ट संदेश नहीं मिला. आधी अधूरी तैयारी के साथ मथुरा के जवाहर बाग खाली कराने गये पुलिस को अपने अफसरो को खोना पड़ा. किसी भी तरह की सरकारी मदद देकर इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है.

रामवृक्ष यादव बाबा जयगुरू देव का चेला था. बाबा जयगुरू देव की मृत्यु के बाद वह जयगुरूदेव आश्रम पर ही कब्जा करना चाहता था. जयगुरूदेव आश्रम पर कब्जा करने वालों में रामवृक्ष यादव अकेला नहीं था. जयगुरूदेव के दो अन्य शिष्य पंकज यादव और उमाकांत तिवारी भी इस कोशिश में थे. इसमें पंकज यादव को सफलता मिली. इससे परेशान रामवृक्ष यादव खुद की नई सरकार बनाने की कोशिश शुरू कर दी.

2014 में वह सत्याग्रह करने के लिये मध्य प्रदेश से दिल्ली के लिये 5 हजार लोगों के साथ चला. मथुरा पहुंच कर उसने 2 दिन रूकने के लिये जवाहर बाग में अनुमित मांगी. इसके बाद उसने 270 एकड के जवाहर बाग पर अपना कब्जा कर लिया. मथुरा पुलिस नेताओं के दबाव में थी, जिसकी वजह से वह रामवृक्ष यादव पर कड़ी कार्रवाई नहीं कर सकी. जब भी मथुरा पुलिस ने कोई योजना बनाई, उसे रोक दिया गया, जिसके बाद रामवृक्ष यादव ने अपनी ताकत इतना बड़ी कर ली कि वह पुलिस से टकराने में लग गया. अदालत के आदेश पर जवाहर बाग खाली कराने गई पुलिस पर जब रामवृक्ष यादव के समर्थकों ने हमला किया, तो लगा कि अंदर कितनी तैयारी हो चुकी थी.

मथुरा में रहते पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे ऐसा काम इसीलिये संभव हो सका, क्योंकि रामवृक्ष यादव को नेताओं का संरक्षण हासिल था. जब भी किसी बाबा की ऐसी करतूतें सामने आती हैं, तो उनके सत्ता से गठजोड़ का गणित साफ दिखता है. एक के बाद एक बाबाओं की करतूतें सामने आने के बाद भी जनता और सरकार का ऐसे बाबाओं से मोह भंग नहीं हो रहा है. सत्ता, सरकार और प्रशासन के लोग जिस तरह से बाबाओं के सामने नतमस्तक होते है उससे जनता गुमराह होती है. सत्ता, सरकार और प्रशासन के लोग ऐसे बाबाओं के ब्रांड एम्बेसडर बन जाते हैं, जिसका लाभ उठाकर बाबा जनता को गुमराह करने में सफल हो जाते हैं.

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