भागती दौड़ती जिंदगी में मानव शरीर को अनेक तरह की तकलीफों व विकारों से गुजरना पड़ता है. ऐसी ही एक तकलीफ या विकार कमरदर्द है जिस का सामना हर इंसान अपने जीवनकाल में कभी न कभी करता ही है. कमरदर्द किसी को भी हो सकता है. आम लोगों में यह दर्द उठनेबैठने, चलने का सही तरीका न अपनाने के कारण होता है. ऐसा करने से रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है. वहीं वे लोग जिन्हें दिनभर कुरसी पर बैठ कर काम करना होता है या फिर जिन का काम सारे दिन खड़े हो कर करने वाला है वे भी कमरदर्द से ग्रस्त हो सकते हैं. दूसरी तरफ महिलाओं में न केवल गर्भावस्था के दौरान बल्कि आम दिनों में भी यह दर्द अकसर होता है. 30-35 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं में कमरदर्द होने की संभावना बढ़ जाती है.
गर्भावस्था में कमरदर्द :
गर्भावस्था बदलाव की वह अवस्था होती है जब महिलाओं को शारीरिक व मानसिकतौर पर अनेक तरह के बदलावों से गुजरना पड़ता है. इन्हीं शारीरिक बदलावों के चलते गर्भवती महिलाओं को जिस एक आम परेशानी का सामना करना पड़ता है वह है कमरदर्द. गर्भावस्था के दौरान चलतेफिरते, उठतेबैठते, करवट लेते समय उन्हें इस दर्द से गुजरना पड़ता है.
फरीदाबाद स्थित एशियन अस्पताल की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अनीता कांत के अनुसार, ‘‘गर्भावस्था के दौरान शुरुआती 3 महीनों में कमरदर्द की समस्या कम होती है, लेकिन उस के बाद बच्चे के विकास के साथ आने वाले बदलावों, जैसे पेट के बढ़ने व हार्मोनल बदलाव आदि के कारण स्पाइन पर दबाव बढ़ता जाता है जिस से शरीर की बनावट आसामान्य हो जाती है. और जोड़ों व मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता जाता है जिस की वजह से कमरदर्द बढ़ने लगता है. गर्भावस्था के छठे माह के बाद गर्भवती महिला के शरीर की हड्डियों के जोड़ ढीले होने लगते हैं. वहीं, 8वें व 9वें महीने में थकान महसूस होने व वजन बढ़ने से शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं, इस के कारण मांसपेशियों पर दबाव बढ़ जाता है. नतीजतन, रीढ़ की हड्डी में झुकाव आने लगता है और फिर कमरदर्द बढ़ जाता है.’’ डा. अनीता कांत के अनुसार, ‘‘गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को डाक्टरी सलाह से व्यायाम करना चाहिए ताकि कमरदर्द की समस्या से बचा जा सके. खानपान की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक और संतुलित आहार लेना चाहिए. इस दौरान शरीर के पोश्चर पर विशेष ध्यान देना चाहिए. नीचे झुकते समय सीधे कमर से झुकने के बजाय घुटने मोड़ कर झुकें. भारी वजन उठाने से बचें. इस दौरान ऊंची एड़ी की सैंडिल न पहनें. वजन को नियंत्रण में रखें क्योंकि अधिक वजन भी कमरदर्द का कारण हो सकता है. सोते समय दोनों ओर करवट बदल कर सोएं. लगातार काम करने से बचें. बीचबीच में बे्रक लेते रहें. इस दौरान आरामदायक व सूती कपड़े पहनें.’’
आम आदमी और कमरदर्द
एशियन अस्पताल, फरीदाबाद के कंसल्टैंट स्पाइन सर्जन डा. नीरज गुप्ता के अनुसार, ‘‘वर्तमान भागदौड़भरी, तनावग्रस्त जीवनशैली, शरीर में कैल्शियम व विटामिन डी की कमी, हार्मोनल बदलाव, 30 वर्ष की उम्र के बाद मांसपेशियों में कमजोरी, मोटापा, पेट निकलना, वजन बढ़ना, उठनेबैठने का सही तरीका न होना, लगातार एक जगह गलत पोश्चर में बैठना आदि अनेक कारण हैं जिन की वजह से लोगों को अकसर कमरदर्द का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा डिस्क की समस्या भी लोगों में कमरदर्द का कारण बनती है. डिस्क स्पाइन कौर्ड की हड्डियों के बीच कुशन जैसी मुलायम चीज होती है. डिस्क का बाहरी हिस्सा जहां एक मजबूत झिल्ली से बना होता है वहीं बीच में तरल जैलीनुमा पदार्थ होता है.
जब डिस्क में मौजूद जैली या कुशन जैसा हिस्सा कनैक्टिव टिश्यूज से बाहर की ओर निकल आता है तो आगे बढ़ा हुआ हिस्सा स्पाइन कौर्ड पर दबाव बनाता है. ऐसे में गलत तरीके से काम करने से डिस्क पर जोर पड़ता है और कमरदर्द की शिकायत होने लगती है. स्लिप डिस्क शरीर की मशीनरी में तकनीकी खराबी है, न कि कोई बीमारी.’’
स्लिप्ड डिस्क के कारण
गलत पोश्चर, लेट कर या झुक कर काम करना, लेट कर टीवी देखना, गलत तरीके से उठनाबैठना, अचानक अधिक वजन उठा लेना, दैनिक जीवन में शारीरिक क्रियाशीलता का अभाव, शारीरिक व्यायाम न करना, कई बार अधिक व्यायाम या गलत तरीके से व्यायाम करना, गिर जाना, दुर्घटना में चोट लगना, लगातार ड्राइविंग करना व उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों का कमजोर होना आदि डिस्क पर जोर डालते हैं. कई बार जौइंट्स के डिजैनरेशन, कमर की हड्डियों में जन्मजात विकृति या इन्फैक्शन भी डिस्क पर दबाव डालते हैं. आमतौर पर स्लिप्ड डिस्क की समस्या 30-50 वर्ष की आयु के लोगों में देखने को मिलती है लेकिन आजकल युवाओं में भी यह समस्या देखने में आ रही है. इस का कारण गलत जीवनशैली है. युवाओं में गलत पोश्चर में बैठना व बिना सीटबैल्ट के ड्राइविंग करना भी डिस्क में खराबी का कारण बनता है.
स्लिप्ड डिस्क होने पर मरीजों की नसों पर दबाव के कारण कमरदर्द, पैरों में दर्द, एड़ी या पैर की उंगलियों में सुन्नता, रीढ़ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द और चलने, फिरने व झुकने में दर्द का सामना करना पड़ता है. स्लिप्ड डिस्क के मरीजों को आमतौर पर आराम और फिजियोथैरेपी की सलाह दी जाती है. 2-3 हफ्तों का कंप्लीट बैड रैस्ट स्लिप्ड डिस्क के मरीजों को समस्या से राहत देता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, आकर्षक दिखने वाले अंतर्वस्त्र अगर सही फिटिंग के न हों तो महिलाएं कमरदर्द की समस्या का शिकार हो सकती हैं. तकरीबन 70-80 प्रतिशत महिलाएं गलत फिटिंग व गलत साइज की ब्रा पहनने के कारण कमरदर्द की समस्या से जूझती हैं.
कमरदर्द की समस्या से बचाव के लिए
– बैठने, उठने, चलने के तरीके पर विशेष ध्यान दें.
– देर तक कुरसी पर झुक कर न बैठें.
– हाई हील्स व फ्लैट चप्पलों से बचें.
– हाई हील्स कमर पर दबाव डालती हैं, वहीं फ्लैट फुटवियर पैरों को नुकसान पहुंचाते हैं.
– भारी सामान उठाते समय झुकने के बजाय घुटनों के बल नीचे बैठ कर उठाएं.
– वजन नियंत्रण में रखें. बढ़ते वजन से रीढ़ की हड्डी पर सीधा प्रभाव पड़ता है.
– देर तक ड्राइविंग करते समय गरदन व पीठ को कुशन का सपोर्ट दें.
– आप का काम लगातार बैठे रहने वाला है तो बीचबीच में उठ कर टहलें.
– अगर बैठ कर काम करना ही है तो कमर को कुशन का सपोर्ट दें.
– कमरदर्द की समस्या से बचने के लिए निरंतर व्यायाम या सैर करें.
– 30 की उम्र के बाद महिलाओं को भोजन में कैल्शियम युक्त पदार्थ शामिल करना चाहिए.