‘लाठी गोली खाएंगे फिर भी आगे जाएंगे’, ‘मोदी सरकार होश में आओ…’ जैसे सरकार विरोधी नारे लगाते हुए देश की राजधानी दिल्ली में देशभर से आए किसान आंदोलन कर रहे हैं.
इस रैली को ‘किसान मुक्ति मार्च’ का नाम दिया गया है जिस का आयोजन ‘आल इंडिया किसान संघर्ष समिति’ की ओर से किया जा रहा है, जिस में 200 से अधिक किसान संगठन शामिल हैं.
क्या है मांग
किसानों की मांग है कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाए और वहां किसानों के कर्ज और उपज की लागत को ले कर पेश किए गए 2 प्राइवेट बिल पारित करवाए.
किसान मुक्ति मार्च में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से आए किसानों का मानना है कि देश के किसान इस वक्त बदहाली में जी रहे हैं और उन्हें फसल की लागत का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता.
विपक्षी दलों का समर्थन
सभी विपक्षी दल किसान मुक्ति मार्च का समर्थन कर रही हैं और मोदी सरकार की आलोचना करते हुए देश के किसानों की मांगों को मानने का दबाव डाल रही हैं. विपक्षी दलों का मानना है कि मोदी सरकार किसान विरोधी है.
क्यों हताश हैं किसान
पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार देशभर के किसान सरकार को जगाने के लिए दिल्ली का रूख कर रहे हैं तो जाहिर है किसान केंद्र सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं और उन में घोर निराशा है.
मालूम हो कि इस से पहले भी किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए दिल्ली की ओर रूख किया था पर उन्हें दिल्ली बौर्डर पर रोक दिया गया था और उन पर पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले, पानी की बौछारें और लाठियां तक बरसाई गई थीं.
किसानों का यह मानना कि सरकार अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा उठा कर देश को भटका रही है और किसानों को नजरअंदाज कर रही है, कई मायनों में यह सही भी है.
क्योंकि एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि 1995 से ले कर 2015 के बीच लगभग 3 लाख किसान सरकारी उदासीनता की वजह से कर्ज में डूब कर आत्महत्या तक कर चुके हैं, यह सरकारों के खोखले वादों की परतों को खोलता है कि सरकारें किसानों के प्रति कितनी संवेदनशील रही हैं.
सोशल मीडिया पर अपील
किसान मुक्ति मार्च में सोशल मीडिया के द्वारा भी लोग किसानों का साथ देने की अपील कर रहे हैं कि वे घरों से निकल कर किसानों का साथ दें. डीयू के शिक्षक भी किसानों के समर्थन में हैं.
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक विकास योगी ने एक ट्वीट कर सरकार को आड़े हाथों लिया है. राज ने ट्वीट किया है, “हम हर चीज महंगी खरीदते हैं और सस्ती बेचते हैं. हमारी जान भी सस्ती है. देश के 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.”
दिल्ली के सीएम भी किसानों के पक्ष में
किसानों के इस मार्च में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी शामिल हो सकते हैं, जो शुरू से ही मोदी सरकार पर हमलावर रहे हैं. जेडीयू से अलग हुए शरद पवार ने एक बयान में कहा है कि मोदी सरकार किसान विरोधी है.
केंद्र को चेतावनी
उधर, किसानों ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार ने हमारी मांगें नहीं मानी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में सरकार को इस की कीमत चुकानी पड़ेगी.
पर शुरू से ही जातिधर्म में बंटी भाजपा सरकार जो कुंभ मेले में करोड़ों खर्च कर रही है, अयोध्या में लाखों दीप जला कर राम नाम और मंदिर का जाप कर रही है, यह देखने वाली बात होगी कि देश की अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाने वाले किसानों की वह कितनी सुनती है?
विश्लेषक मानते हैं कि यह चुनावी समय है, इसलिए सरकार फूंकफूंक कर कदम रखेगी पर पिछले साढ़े 4 साल में सरकार को किसानों की याद अगर नहीं आई तो यह खतरे की घंटी भी है. फिलहाल तो सरकार पर यह कहावत सटीक बैठती है, ‘का वर्षा जब कृषि सुखाने?’