एक ही औफिस में आमने सामने बैठे कई कर्मचारी व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इन्स्टा और स्नैपचैट पर टेक्स्टिंग के जरिये बातचीत कर रहे हैं. कुछ गुड मोर्निंग विद कौफ़ी वाले रेगुलर मैसेज कर रहे हैं तो कुछ जोक्स शेयर करने में मसरूफ हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जो वर्क असाइंमेंट या प्रोजेक्ट की डेडलाइन डिस्कस कर रहे हैं..
यह नजारा न्यूयार्क बेस्ड फर्म सीएफए इंस्टीट्यूट के दफ्तर का है. और इस व्यवहार को कई दिनों से फर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ मार्केटिंग हेड माइकल जे कोलिन्स नोटिस कर रहे थे. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नोटिस करने वाली क्या बात है, ऐसा दृश्य तो हर औफिस में आम है. लेकिन माइकल जे कोलिन्स को ऐसा नहीं लगा. उन्हें लगा कि एक ही डेस्क या छत के नीचे बैठे दो इंसान सिर्फ टेक्निकल फैसिलिटी की वजह से एक दूसरे से न तो बात कर रहे हैं और न ही हाथ या गले मिल रहे हैं. सारी औपचारिकता टेक्स्टिंग के जरिये हो रही है.
एक तरह से ह्यूमन इंटरेक्शन (मानवीय संवाद) खत्म सा हो गया है. ये लोग इंसान या कर्मचारी कम रोबोट ज्यादा लग रहे हैं. बात-बात पर ग्रुप में आ जाओ, मेल कर दो, चेक माय इन्स्टा, ड्राइव पर डालो जैसे टर्म इस्तेमाल करते ये लोग किसी मशीन या कहें रोबोट की तरह बिहैव कर रहे थे. न कोई फिजिकल स्पर्श और न कोई आत्मीय बातचीत. बस मोबाइल या मैक पर झुकी गर्दनें और स्क्रीन पर ताबड़तोड़ चलती उंगलियाँ.
कर्मचारी चाहिए या रोबोट?
पिछले कई दशकों में कार्यस्थलों में टेक्नोलोजी ने अभूतपूर्व दखल दिया है. इसकी बदौलत आसानी से एक शहर में बैठा एमडी दूसरे शहर या देश के ब्रांच हेड से वीडिओ कौन्फ्रेसिंग कर दफ्तर के कामों को अंजाम दे रहा है. ग्लोबल दौर में तकनीक से सबको स्क्रीन से जोड़ दिया है. कौर्पोरेट वातावरण में समय और धन बच रहा है लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं. और सबसे बड़ा नुकसान है लोगों के बीच आपसी संवाद का कम या खत्म होना. माइकल ने अपनी कम्पनी में लाखों खर्च कर एक खुला कार्यक्षेत्र बनवाया है जहां बड़े बड़े मीटिंग रूम्स है क्लासिक फर्नीचर के साथ और रूफटोप कैंटीन है, फिर भी उनके संगठन के हजारों कर्मचारी वार्तालाप, विचार के आदान-प्रदान जीवंत रूप से सामने करने के बजाये टेक्स्टिंग के जरिये कर रहे हैं.
ऐसे सिखाया सबक
जाहिर है माइकल को यह हालात तंग कर रहे थे लेकिन वह एकदम से सबके फोन तो बंद नहीं करवा सकते थे, सो उन्होंने एक नया तरीका निकाला सबको सबक सिखाने के लिए. अगले दिन वे दफ्तर में आये और मोबाइल पर एक ग्रुप बनाकर सारे कर्मचारियों को उसमें जोड़ लिया. फिर लगातार टाइप करते गए. जिसमें औफिस का हर काम, प्रेजेंटेशन, प्रोजेक्ट ग्रुप में ही दिखाने को कहा. कोई उनसे मिलने कैबिन आता तो वे इंकार कर देते और उसे ग्रुप में ही बात करने का सन्देश टेक्स्ट कर देते.
थोड़ी ही देर में उनके स्मार्ट कर्मचारी माइकल का आशय समझ गए और आगे से आमने सामने बैठे कुलीग्स से साक्षात बात करने और टेक्स्टिंग को कम करने का वादा करने लगे. उन्हें अब अहसास हुआ कि औफिस में टेक्नोलॉजी के वश में आकर वे इंसान न होकर कोई मशीन या रोबोट बन गए हैं.
डिजिटल अंधभक्ति से टूटा ह्यूमन इंटरेक्शन
माइकल की तरह भारत में कम्पनी के कई बौसेस इस बात से परेशान रहते हैं कि उन्होंने इतना खर्च औफिस इन्फ्रास्ट्रक्चर कर मीटिंग रूम बनवाया, टीम साथ में खाना खाए इसके लिए डायनिंग रूम बनवाया, ट्रेनिंग और प्रेक्टिस सेशन के लिए प्रेक्टिस रूम और स्ट्रेस आउट करने के लिए स्पोर्ट्स रूम बनवाए, बावजूद इसके ज्यादातर एम्पलाइज आपस में बात ही नहीं करते. खाते या काम करते समय भी मोबाइल पर लगे रहते हैं. आमने सामने होने के बावजूद भी टेक्स्टिंग को तवज्जोह देते हैं.
किसी भी कम्पनी में बेशक तकनीकी आंतरिक संचार सिस्टम मजबूत होता है. लेकिन यह तकनीक इन्सानों के लिए होती है न कि इंसान तकनीक के लिए. इसका इतना ही इस्तेमाल हो जितना जरूरी हो. बातचीत और फिजिकल कन्वर्सेशन ही बंद हो जाएगा तो रचनात्मकता ख़त्म हो जायेगी और फिर रचनात्मक की कमी से कम्पनी की उत्पादकता प्रभावित होगी.
अजनबी पास, अपने दूर
यह हाल सिर्फ दफ्तरों का नहीं बल्कि घरों का भी है. औफिस की यह तकनीकी गुलामी घर पर भी जारी रहती है. फेसबुक, इन्स्टा, व्हाट्सएप, स्नैपचैट, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्कींग साइट्स से अजनबी तो जुड़ रहे हैं लेकिन अपने पराये हो रहे हैं. रिश्तों मे दरार पड़ने लगी है.
इंटरनेट पर्सनलाइज्ड होने से हर हाथ में फोन है लेकिन कोई हाथ नहीं मिलाता. सब इमोजीज में हैंडशेक करते हैं. एक सर्वे के मुताबिक दुनिया भर में एक तिहाई रिश्ते सोशल नेटवर्किंग साइट्स की वजह से टूट रहे हैं. तमिलनाडु में पत्नी सिर्फ इसलिए डिवोर्स मांग रही है क्योंकि पति ने शादी के बाद अपने फेसबुक में मैरिटल स्टेटस चेंज नहीं किया. जबकि पुणे एक महिला ने तलाक के लिए इसलिए अर्जी दी, क्योंकि उसका पति फेसबुक पर महिला मित्रों को फ्रेंड रिवेस्ट भेज रहा था.
कुल मिलाकर तकनीकी घोड़े पर सवार होकर उड़ने से अच्छा है कि अपने पैर धरातल पर रखें. जिस कम्पनी में काम करते हैं उनसे आमना-सामना करें. अपनी बातें शेयर करें. तकनीक का इस्तेमाल वही करें जहां फिजिकल कौन्टेक्ट संभव न हो. वर्ना एक दिन आप इंसान नहीं बल्कि रोबोट सरीखे हो जायेंगे, इसमें कोई शक नहीं है.