विश्व बार-बार मंदी की मार खा रहा है. कच्चे तेल का बाजार मंदा है. विश्व अर्थव्यवस्था ही डगमगायी हुई है. लेकिन हमारी सरकार बार-बार यही कहती रही है कि मंदी का असर भारत पर नहीं है. पर अब धीरे-धीरे जो स्थिति उभर कर सामने आ रही है, उसमें कहा जा सकता है कि सरकार माने या न माने; इन दिनों देश की अर्थव्यवस्था में बहुत कुछ ठीक नहीं है. रिजर्व बैंक के गवर्नर भी अर्थव्यवस्था को लेकर बार-बार चिंता जता चुके हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के हो या निजी – बैंकों पर संकट गहराया हुआ है. बैंकों के बैड लोन से लेकर नौन परफोर्मिंग एसेट की चर्चा बड़े जोरशोर से है. बहुत सारे बैंक लिक्यूडिटी के संकट से गुजर रहे हैं. वहीं एक तरफ मुद्रास्फिति समेत महंगाई सूचकांक कुछ भी कहें – आम जनता को राहत देने में नाकाम है तो दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डौलर की तुलना में रुपए का अवमूल्यन को भी रोका नहीं जा सका है. ऐसे बहुत सारे संकट हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था घिरी हुई है.
विजय माल्या के देश छोड़ कर जाने के बाद बैंकों की माली हालत का हर रोज खुलासा हो रहा है. लेकिन इससे पहले ही रिजर्व बैंक ने बैंकों की नब्ज की पहचान रिजर्व बैंक को हो चुकी थी. तभी बकाया कर्ज के मामले में रिजर्व बैंक ने दिशानिर्देश जारी किए तो विभिन्न बैंकों में कर्ज लेकर जानबूझ न चुकाने वाले डिफौल्टर कर्जदारों की संख्या और बैंकों के नौन परफोर्मिंग एसेट्स की विस्तृत जानकारी का खुलासा हुआ. देश में डिफौल्ट कर्जदारों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. देश के विभिन्न बैंकों में बकाया कर्ज की रकम 13 लाख करोड़ रु. से अधिक हो गयी है. इस साल के शुरूआत में क्रेडिट स्वीस की एक रिपोर्ट के अनुसार 58 अरब डौलर के ऋण में से 29 अरब डौलर लंबे समय संकट में है, लेकिन बैंकों ने महज 6 अरब डौलर को भी बैड लोन के रूप में मान्यता दी है. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है.
बहरहाल, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने जानबुझ कर कर्ज न चुकानेवाले 1624 के खिलाफ मामला दर्ज किया है. हालांकि पिछले साल के अंत में दिसंबर से इस साल के मार्च महीने में चौथी तिमाही तक रिजर्व बैंक ने संकट की स्थिति से उबरने के लिए इन बैंकों को बहुत सारी सुविधा प्रदान की थी. वहीं बैंकौं की डावांडोल स्थिति को दुरुस्त करने और बैंकों के मूलधन में इजाफा के लिहाज से इस वित्त वर्ष में 25 हजार करोड़ रु. का बजट में प्रावधान किया गया है. लेकिन वह काफी नहीं था. दरअसल, 2014-15 की चौथी तिमाही में जहां विभिन्न बैंकों में बकाया कर्ज 6.55 प्रतिशत था, वहीं 2015-16 की चौथी तिमाही में यह प्रतिशत 12.9 तक पहुंच गया. इसके बाद तो पूरे देश में हडकंप मच गया.
बैंकिंग सेक्टर में खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने पहले ही स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक औफ हैदराबाद, स्टेट बैंक औफ मैसूर, बैंक औफ त्र्वांकोर, स्टेट बैंक औफ पटियाला आदि अपने पांच सहयोगी बैंक के अधिग्रहण का प्रस्ताव सरकार को दे चुकी है. और अब यूको बैंक, बैंक औफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक तीन सहयोगी बैंकों के भी विलय की राह पर कदम बढ़ा चुका है. स्टेट बैंक का यह प्रस्ताव पर केंद्र के पास विचाराधीन है.
इधर पंजाब नेशनल बैंक भी नुकसान के सागर में गोते लगा रहा है. बैंक को अब तक रिकौर्ड नुकसान हुआ है. बताया जा रहा है कि नुकसान उठानेवाले भारतीय बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक शीर्ष पर पहुंच चुका है. इस साल मार्च महीने के अंत में चौथी तिमाही में इस बैंक को 5,367.14 करोड़ का नुकसान हुआ है. और इस नुकसान को बड़ा हिस्सा ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने के बाद रकम न लौटाए जाने से हुआ है. जबकि पंजाब नेशनल बैंक को पिछले साल की चौथी तिमाह में कुल 306.56 करोड़ रु. का लाभ हुआ था. इस एक साल के दौरान बैंक का लाभ 13,455.65 करोड़ रु. से घटकर 13,276.19 करोड़ रु. हो गया. यानि सीधे तौर पर पिछले वित्त वर्ष के अंत में बैंक को 1.33 प्रतिशत का नुकसान हुआ है.
पंजाब नेशनल बैंक में देश के पहुंचे हुए उद्योगपतियों के पास लगभग 10,869 करोड़ रु. की रकम बकाया है, जिन्होंने जानबुझ पर कर्ज की रकम नहीं लौटाया है. सितंबर 2015 तक 764 कंपनियों ने कर्ज नहीं लौटाया था. लेकिन दिसंबर 2015 तक पंजाब नेशनल बैंक ने जानबुझ कर कर्ज न लौटानेवाली 904 कंपिनयों की पहचान की, जिनके पास 9,204 करोड़ रु. कर्ज का बकाया है.
गौरतलब है कि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यूको बैंक को 1,715.16 करोड़ का नुकसान हुआ था. मौजूदा समय में उल्लेखनीय तौर पर बैंक का कर्ज लेकर वापस न लौटाए जाने वाली राशि का प्रतिशत 15.43 हो चुका है. वहीं बैंक औफ इंडिया को 1,506 करोड़ रु. का और ओवरसीज बैंक का 1,425 करोड़ रु. का नुकसान झेल रहा है. कुल मिला कर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परिसंपत्ति (75 प्रतिशत) की तुलना में नौन परफौर्मिंग एसेट्स 86 प्रतिशत आंकी गयी है. यही चिंता की सबसे बड़ी वजह है.
इससे जाहिर है इन बैंकों की सेहत बहुत खराब है. सार्वजनिक क्षेत्र के फिलहाल आठ कमजोर बैंकों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए स्टेट बैंक ने वित्त मंत्रालय को विलय का प्रस्ताव भेजा है. इन बैंकौं के कर्मचारी स्टेट ब;ंक औफ इंडिया के इस कदम का विरोध कर रहे हैं. इन बैंकों के लगभग 50 हजार कर्मचारियों ने 20 मई को एक दिन का सांकेतिक हड़ताल भी किया. बहरहाल, इस समय बौल सरकार के पाले में है. हालांकि स्टेट बैंक औफ इंडिया का यह प्रस्ताव अभी शुरूआती चरण में है. स्टेट बैंक के इस प्रस्ताव पर केंद्रीय वित्त मंत्रालय बैंक्स बोर्ड ब्यूरो से सलाह-मश्विरा कर सकता है. लेकिन माना जा रहा है कि देर-सवेर संभवतया स्टेट बैंक औफ इंडिया को केंद्र की मंजूरी मिल जाएगी.
वैसे अगर यह हो गया तो इस बात में शक की कोई गुंजाइश नहीं कि इससे स्टेट बैंक औफ इंडिया को बहुत मजबूती मिलेगी और विश्व के बैंकिंग सूचकांक में स्टेट बैंक औफ इंडिया की स्थिति मजबूत होगी. इसकी वजह यह है कि अकेले पांच बैंकों के विलय से स्टेट बैंक को लगभग 50 हजार करोड़ की अचल पूंजी हासिल होगी. इससे स्टेट बैंक इंडिया का कुल जमा राशि 21 लाख करोड़ रु. और दी गयी कर्ज राशि 17.5 लाख करोड़ रु. हो जाएगी. स्टेट बैंक को उम्मीद यह विश्व बैंकिंग सूचकांक में स्टेट बैंक औफ इंडिया का क्रमांक 55 से 59 तक हो जाएगा. गौरतलब है कि 2015 में फोब्स की विश्व बैंकिंग सूची में स्टेट बैंक औफ इंडिया का स्थान 152 वां है. जाहिर है अगर कमजोर सेहत वाले बैंकों का विलय हो जाता है तो विश्व बैंकिंग की सूची में स्टेट बैंक औफ इंडिया की यह बहुत बड़ी छलांग होगी.
अब अगर निजी बैंकों की बात करें तो अभी पिछले महीने एक्सिस बैंक और आईसीआईसीआई बैंक ने कर्ज डिफौल्टर राशि का खुलासा करते हुए इसे बैंकिंग सेक्टर के लिए चिंताजनक बताया है. एक्सिस बैंक की डिफौल्टर रकम भारतीय मुद्रा में 226 मिलियन है तो आईसीआईसीआई बैंक का 525 मिलियन. अभी हाल ही में रिजर्व बैंक ने इन दोनों बैंकों पर बैलेंश शीट क्लियर करने के लिए दबाव बनाया तो इनक डिफौल्टर राशि का खुलासा हुआ.
वहीं एचएसबीसी बैंक भी अपने खर्च को कम के लिए अपनी शाखाओं को समेटने का एलान कर दिया है. फिलहाल 26 शाखाओं को बैंक बंद कर रहा है। गौरतल है कि एचएसबीसी की भारत के 29 शहरों में 50 शाखाएं हैं. लेकिन अब 15 छोटे शहरों से 26 शाखाओं को बैंक ने बंद कर देने का फैसला किया है. कोलकाता में भी बैंक अपनी कम से कम पांच शाखाएं समेट रहा है. इसके अलावा चेन्नई, दिल्ली, पुणे में एक-एक शाखा बंद हो रहे हैं. बैंक के इस फैसले के बाद गुआहाटी, इंदौर, जोधपुर, लखनऊ, लुधियाना, थाणे, मैसूर, नागपुर, नासिक, पटना, रायपुर, सूरत, बडौदा, विशाखापट्टनम और तिरुवानंनतपुरम अब बैंक की एक भी शशखा नहीं होगी. इसके बाद बैंक के लगभग 10-12 प्रतिशत ग्राहक कम हो जाएंगे. वहीं 300 बैंक कमचारियों पर बेरोजगारी की तलवार लटकेगी.
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में चेतावनी देते हुए कहा भी कि कर्ज न चुकाए जाने से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा धक्का लगने वाला है. जल्द ही देश की अर्थव्यवस्था विशस सर्केल यानि दुश्चक्र में चली जाएगी. इसीलिए बड़ी कड़ाई से पेश आने की जरूरत है. उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की ‘डीप सर्जरी’ की जरूरत पर भी बल दिया. वहीं वित्त मंत्री ने यह माना है कि बकाया कर्ज का परिमाण इतना बड़ा है कि बैंकों के मूलधन पर इसका असर पड़ रहा है. फौरी तौर पर वित्त मंत्री ने 25 हजार करोड़ रु. का एक फंड तैयार कर रखा है. लेकिन जहां तक ‘डीप सजरी’ की बात है तो सरकार कई कदम उठा रही है.
बजट में सरकार ने सार्वजनिक बैंकों के प्रबंधन और पूंजी में वृद्धि की योजना के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो गठन का एलान वित्त मंत्री अरुण जेटली कर चुके हैं. हालांकि बैंक बोर्ड ब्यूरो के कामकाज और इसके लागू करने की समय सीमा समेत इससे जुड़ी और भी कई बातें फिलहाल पुख्ता तौर पर साफ नहीं हुई है.
इसके अलावा दिवालिया कानून लाने की भी घोषणा की गयी है, ताकि बैंक अपने बकाया कर्ज की वसूली कर सके. दावा है कि यह कानून बन जाने पर लगभग 8 हजार करोड़ रु. के कर्ज की वसूली आसान हो जाएगी. यह कानून वित्त बिल के तौर पर फिलहाल लोकसभा से पारित हो चुका है. राज्यसभा में दिवालिया कानून 2016 अभी पारित होना बाकी है. लेकिन फिलहाल बैंकिंग क्षेत्र में जो सरफेसी अधिनियम चालू है, उसमें भी संशोधन करके एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों में शेयरहोल्डर को सौ प्रतिशत हिस्सेदारी बढ़ाने के बारे में सरकार सोच रही है. गौरतलब है कि एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी कम कीमत पर बैंक का बकाया कर्ज खरीद लेती है और फिर उस बकाया रकम की वसूली कर लेती है. ये एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां बकाया कर्ज की रकम को बेच कर बैंकों को अपना बैलेंसशीट क्लियर रखने में मदद करता है. मौजूदा समय में एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी खोल कर सौ प्रतिशत विदेशी विनिवेश की अनुमति होने के बावजूद किसी विदेशी व्यक्ति या कंपनी को ऐसी कंपनी में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ही रखने का प्रावधान रहा है. इसीलिए अब इसमें भी सरकार संशोधन करने जा रही है. कुल मिला कर बैंकिंग के क्षेत्र में आए संकट को देखते हुए लगता है कई बैंक दिवालिया होने के कगार पर है. सरकार द्वारा किए गए इंतजाम कितने कारगर साबित होते हैं, यह तो अब समय ही बताएगा.