केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने एक बार फिर देश की जनता को अपना ज्ञान दिया है. पिछली बार सत्यपाल सिंह ने डार्विन के सिद्धांत को नकारते हुए कहा था कि हमारे पूर्वज बंदर नहीं थे, इंसान थे. इस बयान को ले कर मीडिया में उन की खूब छीछालेदर हुई.
अब फिर उन्होंने एक विवादित बयान दिया है.मंत्रीजी ने फरमाया है कि अगर हम चाहते हैं कि देश से आतंकवाद और अपराध का खात्मा हो जाए तो हमें वैदिक सभ्यता की ओर लौटना होगा.
दिल्ली में आर्य समाज द्वारा आयोजित 4 दिवसीय आर्य महासम्मेलन में सत्यपाल सिंह ने जनता को वैदिक युग में लौटने की सलाह देते हुए कहा कि आतंकवाद और अपराधों को वैदिक सभ्यता के मुताबिक चलने से मिटाया जा सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति शपथग्रहण करते हैं तो उन के हाथों में बाइबिल होती है. उसी तर्ज पर मैं यह उम्मीद रखता हूं कि आने वाले समय में जब हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शपथ लेंगे तो उन के हाथों में वेद हों.
लगता है मंत्रीजी ने वेद पढ़ना तो दूर, देखे भी नहीं होंगे. वेद हिंदुओं के सब से पुराने धार्मिक ग्रंथ माने गए हैं. वेद पढ़ने वालों को पता है कि इन में हिंसा भरी पड़ी है. फिर भी कहा गया है कि वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति:.
यज्ञों में पशु हिंसा, शत्रुओं को मारने के लिए हिंसा करते हुए कहा गया है कि यह हिंसा वेदोक्त है, इसलिए इस में कोई दोष नहीं है.
अथर्ववेद में कहा गया है,
‘‘दह दर्भ सपत्नान् मे दम पृतनायत.
दह मे सर्वान् दुर्हार्दों दह मे द्विषतो मणे.’’
‘‘अर्थात हे दर्भ, मेरे शत्रुओं को जला डाल. मुझ पर सेना सहित आक्रमण करने वालों को जला डाल. मेरे सब अशुभ चिंतकों को जला डाल. हे मणि, मेरे सब दुश्मनों को जला डाल.’’
वेदों में हिंसा की वकालत
वेदों में लाखों मलेच्छों, कालों को मारने की बात कही गई है. इंसानों को ही नहीं, वेदों में पशुओं को मारने का वर्णन बाकायदा विधान सहित बताया गया है. इन में मांसाहार का वर्णन है, गायों को काटने का विवरण दिया गया है. यज्ञों में पशुबलि अनिवार्य थी.
वेदों में सिर्फ ब्राह्मण पर हिंसा को निषेध बताया गया है. लाखोंकरोड़ों विधर्मियों और कालों की हत्या के बेशुमार श्लोक रचे हुए हैं.
अथर्ववेद में लिखा है,
‘‘उग्रो राजा मन्यमानो ब्राह्मणं यो जिघत्सति,
परा तत् सिच्यते राष्ट्रं ब्राह्मणो यत्र जीयते.’’
‘‘अर्थात जो राजा अपनेआप को उग्र मानता हुआ ब्राह्मण की हत्या करता है और ब्राह्मण जिस राज्य में दुखी रहता है, वह राजा और राष्ट्र दोनों समाप्त हो जाते हैं.’’
‘‘तद् वै राष्ट्रमा स्त्रवति नावं भिन्नामिवोदकम्,
ब्रह्माणं यत्र हिंसतिं तद् राष्ट्रं हंति दुच्छुना.’’
अथर्ववेद-सूक्त 19,8
‘‘अर्थात जिस राष्ट्र में ब्राह्मण पर हिंसा होती है, उस राष्ट्र का ब्रह्मरूपी पाप उसे छेद वाली नौका के साथ डुबो देता है. ब्राह्मण पर डाली गई विपत्ति ही उस राष्ट्र को डुबो देती है.’’ ऋग्वेद में हिंसा की बातें भरी हुई हैं. एक जगह कहा गया है,
‘‘हे इंद्र, तुम ऐश्वर्यवान, शत्रुविजयी और शत्रुभयंकर हो. तुम ने अकेले ही वृत्र आदि राक्षसों का नाश किया है. तुम्हारा अश्वयुक्त रथ शत्रुओं की ओर बढ़े और वज्र शत्रुओं की ओर बढ़े और उन्हें मारे.’’
‘‘हे इंद्र, हम समीपवर्ती शत्रुओं का भयंकर शब्द सुन रहे हैं. तुम अपने संतापकारी वज्र का इन पर प्रयोग कर के इन्हें मारो. इन शत्रुओं को जड़ से समाप्त करो. इन्हें विशेषरूप से बाधा पहुंचाओ तथा पराजित करो. हे इंद्र, पहले राक्षसों को मारो. इस के बाद इस यज्ञ को पूरा करो.’’
आगे लिखा है, ‘‘हे अग्नि, जैसे शिकारी जाल फैलाता है, वैसे ही तुम भी अपना भयनाशक तेज फैलाओ. अपने तेज से तुम राक्षसों का नाश करो. हे अग्नि, तुम अपनी ज्वालाओं, चिनगारियों और उल्काओं को सब ओर फैलाओ और शत्रुओं को जलाओ.’’
कहने का अर्थ यह है कि दलितों, किसानों, वंचितों पर हिंसा होती है तो उसे हिंसा नहीं माना जाए क्योंकि यह शास्त्रोक्त है यानी सही है, नैतिक है, कानूनी है.
वेदों में तो हिंसा की वकालत है. वेदों के रास्ते पर चलने से अपराध और हिंसा कैसे रुक सकती है. ये बातें बेतुकी और तर्कविहीन हैं. यह सत्यपाल सिंह ही बता सकते हैं कि हिंसा को रोकने के लिए उन की क्या थ्योरी है.
देश के 3-4 प्रतिशत लोगों के अलावा सब वेदों, पुराणों, स्मृतियों के अनुसार पापी हैं और पिछले जन्मों के कर्मों का फल भुगत रहे हैं. इन्हें राष्ट्रपति के हाथ में दे कर सूई उलटी घुमाने की चेष्टा है.