तेल अपना नहीं होने के बावजूद अमेरिका तेल वाले मुस्लिम देशों पर प्रतिबंध का हथियार चला कर तेल पर नियंत्रण करने की नीति पर चल रहा है. इस में वह कामयाब भी है. परमाणु सौदे से पीछे हटने के बाद अमेरिका ने ईरान पर सब से सख्त प्रतिबंध लागू कर दिए हैं. अमेरिका ने पश्चिम एशियाई और इस्लामी देशों को भी ईरान से व्यापार नहीं करने की चेतावनी दी है.
इस का सीधा सा मतलब है कि इन प्रतिबंधों के तहत कोई भी देश ईरान से अब तेल नहीं खरीद पाएगा. जो खरीदेगा, उसे अमेरिका की मार सहनी होगा. ट्रम्प प्रशासन का कहना है उसे इस बात का भरोसा है कि इन पाबंदियों से ईरान के शासन के बर्ताव में बदलाव आएगा. इन प्रतिबंधों से भारत और चीन को कुछ छूट मिली है. इन देशों से अमेरिका को भरोसा दिलाया है कि वह छह महीने के अंदर तेल खरीद पूरी तरह से बंद कर देंगे.
ट्रम्प ने भारत को यह इजाजत दी है कि वह मई महीने तक तेल खरीद सकता है. अमेरिका की शर्त है कि भारत उस से जो सामान मंगवाता है उस पर उसे आयात शुल्क कम करना होगा. यानी अमेरिका ईरान पर प्रतिबंध से दूसरे देशों से भी व्यापार से पैसे कमाएगा.
प्रतिबंध ईरान के बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र में लागू हुए हैं और वहां से तेल आयात जारी रखने वाले यूरोप, एशिया के देशों और कंपनियों पर जुर्माने का प्रावधान है. पिछली बार 2010 और 2016 तक ये प्रतिबंध लागू रहे थे. तब तेल उत्पादन आधा बचा था.
दरअसल 2015 में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय अमेरिका और ईरान में परमाणु डील हुई थी. इस में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में चीन, फ्रांस, इंग्लैंड और रूस शामिल हैं. तब ईरान को प्रतिबंधों में छूट देते हुए ऊर्जा, तेल आयात, खाद्य और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में व्यापार की अनुमति दी थी. डील टूटने से प्रतिबंध फिर लागू हो गए.
प्रतिबंधों को ले कर एशियाई देश दो धड़ों में बंट गए हैं. इस बार यूरोपीय यूनियन ने दो टूक कह दिया कि ट्रम्प प्रशासन के प्रतिबंध के बाद भी ईरान के साथ कानूनी तरीके से होने वाले व्यावसायिक समझौते आगे भी जारी रखेंगे.
आज अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक लेनदेन के युग में इस तरह के प्रतिबंध ठीक नहीं है. इस से अमेरिका भले ही अपना मतलब साध लें पर इस से दूसरे देशों को नुकसान उठाना पड़ता है. दुनिया वैसे ही मंदी के दौर से गुजर रही है. इस प्रतिबंध का असर विश्व भर की जनता पर पड़ेगा. तेल की कीमतें बढ जाएंगी. यूरोपीय यूनियन की तरह अगर चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया डट जाएं तो अमेरिका ढीला पड़ सकता है.