लगातार दुर्दिनों से जूझ रहे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और गुजरे कल के दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह लगता है अपनी अनदेखी से व्यथित होकर अब आर पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया इंदौर उज्जैन दौरों से नदारद रहे दिग्विजय कथित तौर पर केरल चले गए थे. हालांकि राहुल गांधी मुद्दत से उनकी अनदेखी जानबूझ कर करते रहे हैं क्योंकि वे हर हाल में मध्यप्रदेश का चुनाव जीतना चाहते हैं यह जीत ही उनका दिल्ली का रास्ता प्रशस्त करेगी.

अपनी अनदेखी को हाजमे के चूरन की तरह तो दिग्विजय ने फांक लिया था लेकिन इसके ओवर डोज़ से उनके पेट में मरोड़ें उठ रही है. जो वे टिकट वितरण मीटिंग में ज्योतिरादित्य सिंधिया से उलझ बैठे. दिल्ली में राहुल गांधी के सामने जब सिंधिया–दिग्विजय झगड़े तो मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई कि अब आएगा मजा. राजा महाराजा खुलकर आमने सामने आ गए हैं और ये हालत आज नहीं तो कल बनना ही थे. दरअसल में दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि उनके समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट मिलें जिससे अगर कांग्रेस सत्ता में आए तो उनकी भूमिका मेकर की रहे.

उलट इसके ज्योतिरादित्य सिंधिया जानते हैं कि दिग्विजय सिंह भले ही कहीं सीधे पिक्चर में न हों लेकिन वे अपनी खुराफात से बाज नहीं आएंगे इसलिए उनकी मंशा यह है कि ज्यादा से ज्यादा टिकिट उनके समर्थकों को मिलें जिससे उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी और मजबूत हो. इस खेल में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ किसके साथ हैं यह सस्पेंस कांग्रेसी खेमे और राजनीति में दिलचस्पी रखने बालों को मथे डाल रहा है.एक वर्ग का सोचना यह है कि कमलनाथ अंदरूनी तौर पर  दिग्विजय के साथ हैं जबकि दूसरे वर्ग की राय जुदा है कि अब वे राहुल सोनिया के कहने पर सिर्फ कांग्रेस को जिताने जी जान से जुटे हैं जिसमें अगर दिग्विजय सिंह आड़े आते हैं तो वे उनसे न तो याराना निभाएगे और न ही किसी तरह की सहानुभूति रखेंगे.

अर्जुन सिंह की सियासी विरासत संभाल रहे दिग्विजय की सिंधियाओ से पुरानी दुश्मनी है एक वक्त में जब ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव का मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनना तय था तब अर्जुन – दिग्विजय की जोड़ी ने ही टँगड़ी मारी थी.ज्योतिरादित्य भी राहुल के कहने पर ही सक्रिय हुये हैं उनका मकसद भी कमलनाथ की तरह अपने सखा राहुल का दिल्ली मिशन पूरा करना है.

पर इस जोड़ तोड़ में दिग्विजय कहीं नहीं हैं जो चुनावी राजनीति से दूर रहने की बात अक्सर कहते रहते हैं यहां यह तथ्य काबिलेगौर है कि दिग्विजय सिंह यह तो कहते रहते हैं कि वे भी  प्रदेश में कांग्रेस की जीत चाहते हैं लेकिन वे कहीं भी यह नहीं कहते कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने भी वे कृतसंकल्प हैं. दिग्विजय सिंह की इमेज प्रदेश में कतई अच्छी नहीं है वे वोटर द्वारा नकारे जा चुके हैं और खुद भी एक बयान में मान चुके हैं कि उनके भाषण देने से कांग्रेस के वोट कटते हैं इसलिए वे चुनाव प्रचार नहीं करेंगे. इस बयान के बाद उन्होने केरल का रुख किया था तो कांग्रेसियों ने राहत की सांस ली थी कि चलो अब वो कलह और भितरघात तो नहीं होगी जिसके चलते मुन्नी की तरह बदनाम हुई कांग्रेस 2003 के बाद से सत्ता की मुंह दिखाई के लिए तरस रही है.

हैरत और दिलचस्पी की बात यह भी है कि टिकिट बटबारे को लेकर कमलनाथ और सिंधिया के बीच कोई मनमुटाव नहीं है लेकिन अब दिग्विजय एतराज जता रहे हैं तो घमासान होना तो तय है अब वह कैसा होगा इसके आकार प्रकार का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा. 15 साल में दिग्विजय का गुट उतना तितर बितर नहीं हुआ था जितना कमलनाथ-सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने के बाद से पिछले 6 महीनों में हुआ.अब हालत तो यह है कि खुद उनके समर्थक उनसे कन्नी काटने लगे हैं जिन्हें टिकिट चाहिए या जिन्हें  संभावित जीत के बाद मंत्री बनना है.

कांग्रेस का मतलब ही आजकल राहुल गांधी होता है ऐसे में जिस पर उनकी नजर तिरछी हो जाती है उसकी कोई कीमत कांग्रेस में नहीं रह जाती पर दिग्विजय की अगर थोड़ी बहुत है तो उसकी वजह उनकी पुरानी निष्ठा और अजीत जोगी की तरह नई बगाबत न करना है.चतुर सुजान दिग्विजय सिंह भी जानते समझते हैं कि उनकी बची खुची कीमत कांग्रेस में बने रहने पर ही है.

लेकिन ज्योतिरादित्य का कांग्रेस में बढ़ता कद और दबदबा उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है तो इसके दूरगामी नतीजे तो निकालना तय है जिसमें कांग्रेस से ज्यादा खुद दिग्विजय का नुकसान है.ताजे विवाद पर कांग्रेसी रिवाज के मुताबिक राहुल गांधी ने एक कमेटी बना दी है जिसमें अशोक गहलोत, वीरप्पा मोइली और अहमद पटेल को ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे दिग्विजय–सिंधिया विवाद सुलझाएं. लगता नहीं कि यह कमेटी राहुल गांधी की मंशा के खिलाफ जाएगी खुद दिग्विजय भी जानते हैं कि ऐसी कमेटियां क्यों बनाई जाती हैं.

अब अगर राहुल गांधी अपने सखा ज्योतिरादित्य का ही पक्ष लेंगे तो दिग्विजय सिंह क्या करेंगे इसमें सभी की दिलचस्पी है. दिग्विजय सिंह के पास तब ये तीन रास्ते बचेंगे पहला यह कि वे सर झुकाकर काम करें दूसरा यह कि वे चुनाव में कांग्रेस को हरवाने काम करें हालांकि अब उनकी हैसियत पहले सी जिताऊ या हराऊ नेता की नहीं रही है 2-4 सीटों पर ही वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं वो भी उसी सूरत में जब उनका समर्थित कोई उम्मीदवार राजी हो. तीसरा रास्ता खुली बगावत और दुखी मन से पार्टी छोड़ देने का है जिसका जोखिम भरा फैसला अगर वे लेते हैं तो जरूर कहीं के इस पकी उम्र में नहीं रह जाएंगे.

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के गहमागहमी भरे माहौल में इस प्रतिनिधि ने जब कुछ कार्यकर्तों से बात की तो सभी ने एक सुर में स्वीकारा कि कांग्रेस सालों बाद बढ़त पर है लोग भाजपा शासन से आजिज़ आ चुके हैं और कमलनाथ और सिंधिया के नेतृत्व में अच्छा काम व प्रचार सभी एकजुट होकर कर रहे हैं. ऐसे में जमीनी पकड़ खो चुके दिग्विजय सिंह अगर अड़ंगा डालते हैं तो राहुल गांधी को चाहिए कि उन्हें तुरंत बाहर का रास्ता दिखाएँ.इससे उतना ही मामूली नुकसान इन कार्यकर्ताओं की निगाह में होगा जितना दिग्विजय सिंह के कांग्रेस में रहते हो रहा है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...