पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में सबसे बडा संकेत यह आया कि जनता नाम को नहीं काम को देखती है. जो लोग यह मानकर चलते है कि चुनावों में सत्ता विरोधी हवा चलती है वह गलत सोचते हैं. अगर नेता का काम अच्छा होगा, तो उसको वोट जरूर मिलेगा. ऐसे दलों को सबक है, जो सोचते है कि 5 साल मिली सत्ता की मलाई खा लो. आगे चुनाव का क्या पता?

अगर सही तरह से सरकार की योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचे, सरकार बिना किसी भेदभाव के काम करे, तो जनता उसको जरूर वोट देगी. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में जयललिता की वापसी से यह बात साबित हो चुकी है. मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी और जयललिता बहुत ही सफल मुख्यमंत्री रही हैं.

यह सच है कि असम में केन्द्र में सरकार चला रही भाजपा को सरकार बनाने में सफलता हासिल हुई है. यह उसके लिये इतिहास की बात हो सकती है. असम में भाजपा के हिन्दुत्व का जो कार्ड खेला, उसकी कोई काट कांग्रेस के पास नहीं थी. कांग्रेस को लग रहा था कि उसे असम में काम करने का लाभ मिलेगा.

भाजपा नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोडी को इस जीत का पूरा श्रेय दे रही है. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोडी मतदाताओं को इतना पंसद आई, तो असम के बाहर वह सरकार बनाने में सफल क्यों नहीं रही? पहले मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव लडने का काम दिल्ली में भाजपा देख चुकी है. ऐसे में असम चुनावों का भाजपा की खूभियों की वजह से नहीं, कांग्रेस की खमियों की वजह से देखा जाना चाहिये.

असम के अलावा भाजपा का प्रदर्शन किसी और प्रदेश में अच्छा नहीं रहा है. यह बात सही है कि आलोचनाओं के घेरे में चल रही भाजपा के लिये असम की जीत नया राग अलापने का जरीया बन गया है. अगर भाजपा को अपनी जीत के फार्मूले पर इतना ही यकीन है, तो क्यो नहीं उत्तर प्रदेश में वह मुख्यमंत्री के नाम को सामने लाकर चुनाव की तैयारी शुरू करती है.

असल में भाजपा इस सच को जानती है कि वह अपनी रणनीति से नहीं, कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से जीती है. जिन जिन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार रही है, वहां भाजपा को सीधी लडाई का लाभ मिला है. जहां भाजपा का मुकाबला काम करने वाले मुख्यमंत्री से रहा है, वहां वह चुनाव हार गई है. दिल्ली से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु इसके सबसे बडे उदाहरण है.

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