लंबे विवाद के बाद हाईकोर्ट ने सुशील कुमार या नरसिंह यादव में से किसे ओलंपिक के लिए रियो जाने का मौका दिया जाए मामले की सुनवाई शुरू कर दी है. भारत को ओलंपिक में दो बार मेडल दिला चुके पहलवान सुशील कुमार को दिल्ली हाई कोर्ट से कुछ राहत मिली है.
भारतीय कुश्ती संघ और बाद में खेल मंत्रालय की ओर से 74 किग्रा भार वर्ग के लिए फिर से ट्रायल कराए जाने की मांग पर पल्ला झाड़ने के बाद सुशील कुमार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनकी अर्जी के बाद हाई कोर्ट ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) और केंद्र सरकार को नोटिस थमा दिया है. कोर्ट ने कहा है कि डब्ल्यूएफआई इस पूरे मामले में अपना फैसले एफिडेविट जमा करे.
सुशील ने भारतीय कुश्ती महासंघ को चयन ट्रायल करवाने का निर्देश देने की अपील की जिससे यह तय हो सके कि पुरुष वर्ग के 74 किग्रा फ्रीस्टाइल में रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा.
इस मामले में अगली सुनवाई अब 27 मई को होगी. कोर्ट ने साथ ही कुश्ती संघ को निर्देश दिया कि ओलंपिकके लिए शुरू हो रहे कैंप में सुशील को भी शामिल किया जाए. संघ ने सुनवाई के दौरान अपनी सफाई में कहा कि नरसिंह सुशील से बेहतर हैं और इसलिए हमने उनका चयन किया था.
सुशील के पास आखिरी रास्ता बचा था कोर्ट जाना…
सुशील के करीबी सूत्र ने कहा था, 'हमारे पास कोर्ट जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था क्योंकि सुशील ट्रायल में शामिल होने का मौका चाहता है.' रियो के प्रैक्टिस कैंप के लिए भारतीय खिलाड़ियों में सुशील का नाम शामिल नहीं है. इसके अलावा सुशील को एक और झटका तब लगा जब खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने रियो ओलंपिक के चयन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि यह मसला डब्ल्यूएफआई को सुलझाना है.
डब्ल्यूएफआई 74 किग्रा में ट्रायल करवाने के पक्ष में नहीं है जिससे यह तय होगा कि सुशील और नरसिंह पंचम यादव में से कौन रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा. पूर्व वर्ल्ड चैंपियन सुशील ने यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय में भी पहुंचाया लेकिन उन्हें अभी तक जवाब नहीं मिला है.
खेल मंत्री ने हस्तक्षेप से किया था इनकार
उन्होंने इसके साथ ही खेल मंत्री, भारतीय ओलंपिक संघ, डब्ल्यूएफआई और प्रशंसकों से भी अपील की थी. डब्ल्यूएफआई भी इस विवाद को सुलझाने के लिए खेल मंत्रालय का हस्तक्षेप चाहता था लेकिन सोनोवाल ने साफ किया कि सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती और महासंघ जो कि स्वायत्त संस्था है, वहीं अंतिम फैसला करेगा. नियमों के मुताबिक कोटा किसी एक पहलवान को नहीं बल्कि देश को मिलता है और इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि सुशील और नरसिंह में से किसी एक का चयन करने के लिए ट्रायल होगा. वैसे अभी तक का चलन कोटा हासिल करने वाले खिलाड़ी को ही ओलंपिक भेजने का रहा है.
ट्रायल के पक्ष में नहीं डब्ल्यूएफआई
डब्ल्यूएफआई ने संकेत दिए हैं कि वह 74 किग्रा में ट्रायल करवाने के पक्ष में नहीं है. उसे डर है कि भारत ने जिन अन्य सात वजन वर्गों में कोटा हासिल किया है उससे जुड़े अन्य पहलवान भी ट्रायल की मांग कर सकते है. सुशील का पत्र अभी पीएमओ में पड़ा है और डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बज भूषण शरण सिंह ने कहा कि महासंघ इस मामले में सरकार के निर्देशों का इंतजार करेगा.
नरसिंह ने पिछले सल लास वेगास में वर्ल्ड चैंपियनशिप में 74 किग्रा में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर कोटा हासिल किया था और इसलिए वह ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं. सुशील चोटिल होने के कारण उसमें भाग नहीं ले पाए थे.
पहले मुझे मना क्यों नहीं कियाः सुशील
सुशील का कहना है कि सरकार ने उन पर काफी पैसा खर्च किया है और महासंघ ने भी उन्हें अभ्यास जारी रखने के लिए कहा था. उन्होंने कहा, 'अगर पहले ही फैसला कर लिया गया था कि कोटा हासिल करने वाला खिलाड़ी ही रियो खेलों में जाएगा तो डब्ल्यूएफआई को मुझे कह देना चाहिए था और मेरा नाम खेल मंत्रालय के टॉप कार्यक्रम से हटा देना चाहिए था.'