इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को सनक वाले खयाल आते हैं और वह अपने इस व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाता, न ही स्थिर रह पाता है. जैसे कि बारबार यह सुनिश्चित करता कि घर से निकलते वक्त दरवाजा ठीक से बंद किया था या नहीं, गैस की नौब कहीं खुली तो नहीं रह गई. कहीं आग लग गई या घर में चोर घुस गए तो, जैसे खयाल उसे परेशान करते रहते हैं. इसी दुविधा के चलते वह एक ही काम को कई बार करता है. किसी चीज को छूने के बाद बारबार हाथ धोना जब तक कि वह लाल न हो जाए. ये ओसीडी के लक्षण हो सकते हैं.

यह औब्सैशन बिना मरीज की  चाहत के होता है. रोगी जानता है कि जो वह कर रहा है, वह गलत है,

फिर भी खुद को ऐसा करने से रोक नहीं पाता. अगर किसी इंसान के साथ ऐसा हो रहा है तो समझें कि मामला गंभीर है.

33 वर्षीय नीलम 2 बच्चों की मां है. पिछले 6-7 सालों से वह ओसीडी की समस्या से जूझ रही है. साफसफाई को ले कर उस की हालत यह है कि बाई के काम करने के बाद भी वह फिर से झाड़ूपोंछा करने लगती है, यह कह कर कि उस ने सही से काम नहीं किया. उस की ही वजह से उस के घर में कोई कामवाली ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाती.

पहले आसपास के लोगों से काफी मेलजोल था, पर धीरेधीरे वह भी कम होने लगा, क्योंकि अब उसे अपने घर में ही रहना ज्यादा पसंद है. अकसर वह अपने घर में कुछ धोतीपोंछती रहती है. उसे लगता है कि उस का घर अभी भी गंदा है. दिसंबरजनवरी की कड़ाके की ठंड के दिनों में भी वह अपने घरआंगन को धोने से बाज नहीं आती. उस के इस व्यवहार से उस के घर वाले काफी परेशान रहते हैं.

स्नेहा बताती है कि उस की जेठानी ओसीडी बीमारी से ग्रस्त है. घंटों नहाना, बाथरूम से आने के बाद या किसी चीज को छूने के बाद साबुन से बारबार हाथ धोना, उस के बाद फिर मिट्टी से तब तक हाथ धोते रहना जब तक कि हाथ लाल न हो जाए, धुले हुए कपड़े बारबार धोना, यह सोच कर कि उन पर कोई चिडि़या बैठ गई होगी और वे गंदे हो गए हैं, हमेशा कुछ न कुछ सोचते रहना, चेहरे पर खिन्नता दिखाई देना, किसी से खुल कर बातें न करना, उन की आदतों में शामिल है. उन के ऐसे व्यवहार से उन के पति, बच्चे और परिवार के दूसरे सभी लोग परेशान रहते हैं. डाक्टर से उन का इलाज चल रहा है, लेकिन कभी अच्छी तो कभी खराब हालत बनी रहती है.

दिल्ली के एक साइकोलौजिस्ट के अनुसार, जब कोई ऐसे विचार जिन्हें आप अपने दिमाग में आने नहीं देना चाहते हैं, पर आने से रोक भी नहीं पाते और न चाहते हुए भी अजीबोगरीब हरकतें दोहराते हैं, तो यह ओसीडी की गिरफ्त में आने का संकेत है.

अकसर ऐसे लोगों का मजाक बनाया जाता है. लोग उन्हें पागल तक करार देते हैं. लेकिन वे अपने दिल के हाथों मजबूर एक ही काम को करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. वे ऐसा करने से खुद को रोकने की भरसक कोशिश करते हैं, पर रोक नहीं पाते. अनचाही सोच की जकड़न ऐसे मरीजों को बेचैन रखती है और उन के मन को एकाग्र नहीं होने देती. आत्मविश्वास की कमी के कारण उन की बोलचाल में भी लड़खड़ाहट दिखने लगती है.

ओसीडी के लक्षण

–    बारबार हाथ धोना, गंदगी से डरना और यह सोचना कि कहीं वह जर्म्स की चपेट में आ कर बीमार न पड़ जाए. ओसीडी के कारण मरीज में साफसफाई और बारबार हाथ धोने का खुद का दबाव होता है.

–    शंकालु होना, डरना कि कहीं उस से कोई गलती न हो जाए और उस गलती की कहीं उसे बड़ी सजा न मिले. घंटों पूजापाठ में लगे रहना और कर्मकांड का हिस्सा बनना.

–    हमेशा इस डर में जीना कि कहीं उस के कारण किसी को कोई नुकसान न हो जाए. अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा, जैसी बातें उस के मन को डराती रहती हैं.

–    बराबर चैक करना कि उस ने दरवाजा, गैस, इंटरनैट घर से निकलते वक्त ठीक से बंद किया था या नहीं.

–    किसी चीज को गिन लेने के बाद भी उसे बारबार गिनते रहना कि कहीं उस से गिनने में गलती तो नहीं हो गई.

–    ऐसे लोग घर से निकलते वक्त शुभअशुभ के बारे में बहुत सोचते हैं. उन्हें लगता है कहीं उन के साथ कुछ बुरा तो नहीं हो जाएगा. इसी आशंका में बेकार की चीजें, जैसे पुराने अखबार, कपड़े, डब्बे आदि जमा कर घर भरते रहते हैं.

–    सड़क पर चलते हुए बिजली के खंभों और पेड़ों को गिनना और फिर उन्हें छूने की तीव्र इच्छा होना.

–    सैक्स को ले कर हिंसक सोच रखना और फिर खुद ही शर्मिंदा हो कर परेशान हो जाना.

–    खुद की तुलना दूसरों से कर के परेशान होना. किसी भी सामान को उठा कर दूसरी जगह रखना. बैठने के पहले यह सोचना कि यहां बैठे या वहां और उसी में बहुत समय लगा देना.

अगर इस तरह के लक्षण किसी इंसान में 6 महीने से ज्यादा दिखाई देने लगें और इस से उस की दिनचर्या प्रभावित होने लगे, तो समझिए की वह ओसीडी समस्या से ग्रस्त है. ओसीडी होने की कोई उम्र नहीं होती, यह किसी भी इंसान को किसी भी उम्र में हो सकता है.

ओसीडी के कारण

रिसर्च में पाया गया है कि सैरोटिन नामक न्यूरोटौस मीटर के असंतुलन के कारण ओसीडी के लक्षण विकसित होते हैं. कभीकभी यह बीमारी परिवार के कई लोगों में भी हो सकती है. सो, रोग आनुवंशिक भी हो सकता है. अभी तक तो यही माना जाता है कि कुछ मस्तिष्क की बनावट, कुछ जीन और कुछ जीवन की विषमताओं से पैदा तनावों के मिलेजुले कारणों की वजह से ओसीडी होता है.

ओसीडी का इलाज

ओसीडी के मरीजों को साइकोथेरैपी के साथ दवा दी जाती है और काउंसिलिंग भी की जाती है. यह रोग साइकोथेरैपी से भी ठीक हो सकता है, पर बिना डाक्टर की सलाह के दवाई नहीं छोड़नी चाहिए.

साइकोथेरैपी के जरिए रोगी के तर्कहीन विचारों में बदलाव लाया जाता है. रोगी को समझाया जाता है कि एक ही काम को बारबार करने से खुद को रोके. लेकिन यह प्रैक्ट्सि जारी रखनी होगी, तभी वह इस रोग से छुटकारा पा सकता है.

चाहे तो मरीज खुद अपने अजीबोगरीब व्यवहार को महसूस कर उस पर नियंत्रण पा सकता है. लेकिन इस के लिए परिवार के सदस्यों का प्यार और साथ जरूरी है. अगर वही रोगी से घृणा करेंगे, तो वह कभी ठीक नहीं हो पाएगा.

स्नेहा की जेठानी के साथ यही हो रहा है. सब उन से घृणा करते हैं बजाय उन्हें समझने के. परिवार के लोग उसे पागल कह कर हंसते हैं, उन की आलोचना करते हैं. यहां तक कि अब उन के बच्चे भी उन से दूरी बना कर रखते हैं, जोकि सही नहीं है.

मरीज खुद ही समझे कि उसे बारबार हाथ धोने या दरवाजा चैक करने की जरूरत नहीं है, वह फालतू की बातों को अपने दिमाग में नहीं आने देगा. अगर फिर भी ऐसा नहीं हो पाता है, तो अपना ध्यान दूसरी जगह ले जाए. कोई और काम करने लगे, जैसे कि अपना मनपसंद गाना सुनें या फिर किसी से बात करने लगें, तो अपनेआप उस का ध्यान बेकार की बातों से हट जाएगा.

विचारों का गुलाम न बन कर, कोई किताब पढ़ें, व्यायाम करें, वैबसर्फिंग, वीडियो गेम आदि में मन लगाएं. फालतू के विचारों को जितना टालोगे, उन का असर उतना ही कम होता जाएगा. न हो तो मन में चल रही उलझनों को डायरी में लिखें. यह भी लिखें कि दरवाजा, गैस, बिजली का स्विच बंद करने के बाद फिर कितनी बार चैक किया. हाथ धोने के बाद, दोबारा कितनी बार हाथ धोए, वह भी डायरी में लिखें और फिर उसे बाद में पढ़ें. तो पता चलेगा कि आप ने जो किया, वह गलत था और अब उसे नहीं दोहराएंगे. अपने विचारों में दृढ़ता लाएं.

ओसीडी का रोगी खुद को कमजोर और अकेला महसूस करता है, इसलिए ऐसे इंसान को परिवार का पूरा सहयोग मिलना जरूरी है. परिवार के लोग उस की आलोचना या उस का तिरस्कार न कर के उसे सपोर्ट करें, ऐसा रोगी बहुत ही भावुक किस्म का होता है. किसी की कड़वी या व्यंग्यपूर्ण बातें उस के दिल को तोड़ देती हैं और इसी कारण उस में डर, घबराहट, चिंता, व्याकुलता दिखाई देने लगती है. इसलिए परिवार वाले ऐसे लोगों का मानसिक संबल बनें.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...