‘‘शुक्रवार को फिल्म रिलीज होती है तो उस की ओपनिंग फिल्म के बड़े स्टार्स, पीआर ऐक्टिविटीज, स्टेट्स टूअर्स और अखबार, टीवी के इंटरव्यू के आधार पर तय होती है. उस के बाद सोमवार से फिल्म चलती है चरित्र किरदारों की बेहतरीन परफौर्मेंस की बदौलत. यानी मंडे से फिल्म की सर्वाधिक कमाई अच्छी कहानी और अच्छे किरदारों के बलबूते होती है.’’ यह कहना है अभिनेता पंकज त्रिपाठी का, जो फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ सीरीज में सुलतान खान, ‘फुकरे’ सीरीज में पंडितजी के किरदार से चर्चित हैं. इस के अलावा वे फिल्म ‘गुड़गांव’, ‘मसान’, ‘निल बटे सन्नाटा’ और कुछ अंगरेजी फिल्मों समेत टीवी पर भी नजर आ चुके हैं. बहरहाल, पंकज त्रिपाठी का यह बयान, दरअसल, उस तरह की फिल्मों की ओर इशारा कर रहा है जो किसी बड़े स्टार के बजाय चरित्र अभिनेताओं की अभिनय क्षमता या किरदारों से याद की जाती हैं. अब वह समय नहीं रहा जब फिल्म में हीरोहीरोइन के अलावा बाकी के भाईबहन, सासससुर, दोस्त आदि किरदार खानापूर्ति करते से लगते थे. अब तो इन के किरदार कई बार मुख्य अभिनेता पर भारी पड़ते हैं.
फिल्म ‘जौली एलएलबी’ सीरीज में मुख्य अभिनेता भले ही अक्षय कुमार रहे हों या अरशद वारसी, लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार और दर्शकों की तालियां जज के किरदार में रहे सौरभ शुक्ला को ही मिलीं. सौरभ शुक्ला अपने पूरे कैरियर के दौरान चारित्रिक भूमिका ही निभाते आए हैं. फिल्म ‘सत्या’ के कल्लू मामा से ले कर ‘जौली एलएलबी’ के जस्टिस सुंदर लाल त्रिपाठी तक के सफर में उन का कद लीड ऐक्टर सरीखा हो गया है यानी अब वे चरित्र अभिनेता होते हुए भी स्क्रिप्ट में पूरी तवज्जुह पा रहे हैं. यह बदलाव सकारात्मक माना जा सकता है.
न्यूज कंटैंट वाला सिनेमा
इस बदलाव यानी कैरेक्टर आर्टिस्ट को मिलती तवज्जुह के पीछे का सब से बड़ा कारण है आज की फिल्मों का कथानक, जो अब परंपरागत कहानी से हट कर न्यूज कंटैंट पर आधारित होने लगा है. पिछले कुछ सालों की रिलीज ज्यादातर फिल्में देखेंगे तो वे या तो किसी चर्चित हस्ती की बायोपिक होंगी या सत्य घटना व विवाद पर आधारित होंगी या फिर किसी न्यूज सोर्स पर आधारित होंगी. जैसे विमान अपहरण कांड पर बनी फिल्म ‘नीरजा’, रेप की घटनाओं पर ‘पिंक’, धार्मिक अंधविश्वास व बाबागीरी पर ‘ओह माई गौड’, ‘पीके’ व ‘ग्लोबल बाबा’, स्वच्छ भारत समस्या पर ‘टौयलेट: एक प्रेम कथा’, ‘पैडमेन’ आतंकवाद के मसले पर ‘बेबी’, ‘नाम शबाना’, ‘टाइगर जिंदा है’, ठगी पर ‘स्पैशल छब्बीस’, रियल एस्टेट के धंधे पर ‘औरंगजेब’, पुलिसिया अपराध व अपहरण पर ‘अगली’, सामाजिक भेदभाव पर ‘दंगल,’ हिंदी बनाम अंगरेजी की समस्या पर ‘हाफ गर्लफ्रैंड’, ‘हिंदी मीडियम’, नक्सलवाद पर ‘न्यूज’, नपुंसकता पर ‘शुभ मंगल सावधान’, विजातीय संबंधों की शादी पर ‘सैराट’, भारतचीन विवाद पर ‘ट्यूबलाइट’ और ऐतिहासिक घटनाओं पर ‘पद्मावत’, ‘रुस्तम’, ‘बाजीराव मस्तानी’, भ्रष्टाचार पर ‘वंस अपौन अ टाइम’, ‘सारे जहां से महंगा’, महिला स्वतंत्रता पर ‘पौर्च्ड’ जैसी फिल्में किसी बड़े स्टार्स से ज्यादा इसीलिए अहम हैं क्योंकि इन सब में मौजूदा दौर के ज्वलंत मुद्दे, सुर्खियां या सफल व्यक्तित्व को केंद्र में रख कर कहानी लिखी गई थी.
ऐसी फिल्मों में फौर्मूला फिल्मों की कास्टिंग नहीं चलती क्योंकि इन का कथानक संजीदा होता है. ऐसे में निर्मातानिर्देशक थिएटर जगत के मंझे हुए वरिष्ठ चारित्रिक अभिनेताओं को कास्ट करने को मजबूर होते हैं. इसी मौके का फायदा उठाते हुए ये कैरेक्टर आर्टिस्ट अपनी प्रतिभा को जनता के बड़े वर्ग तक पहुंचा देते हैं. नतीजतन, अब कई फिल्में तो इन्हीं को लीड किरदार बना कर बनाई जा रही हैं. आइए, कुछ ऐसे ही चरित्र अभिनेताओं की बात करते हैं जो आज अपने अभिनय, कथानक व संजीदा विषय के चलते नाम व दाम दोनों हासिल कर रहे हैं.
संजय मिश्रा
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता इस चरित्र अभिनेता को आज से कई वर्षों पहले दोचार मिनट के किरदारों में देखा जाता था. उन्हें पहली बार साल 2001 में टैलीकास्ट टीवी सीरीज ‘औफिस औफिस’ से ठीकठाक नोटिस किया गया. उन का संघर्ष दशकों चला. फिल्म ‘जमीन’, ‘बौंबे टू गोवा’ और ‘गोलमाल सीरीज’ में छोटीमोटी भूमिकाएं कर रोजीरोटी चला रहे संजय मिश्रा को फिल्म ‘सारे जहां से महंगा’, ‘आंखों देखी’ से गंभीर अभिनेता के रूप में पहचान और पुरस्कार मिले. फिल्म ‘जोर लगा के हईशा’, ‘मसान’, ‘जौली एलएलबी’ से होते हुए उन की हालिया रिलीज फिल्म ‘कड़वी हवा’, जो ग्लोबल वार्मिंग व बुंदेलखंड के सूखे के मुद्दे को उठाती है, में उन के बतौर अभिनेता बढ़ते कद को देखा जा सकता है. आज उन्हें इतनी लिबर्टी मिल गई है कि वे स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए मांग सकते हैं और फीस भी. यहां तक कि उन के किरदारों की अब फिल्मों में काफी प्रशंसा होती है.
‘औफिस औफिस’ टीवी सीरियल के पान चबाते शुक्लाजी के रोल से ले कर ‘अपना सपना मनी मनी’ के असली सरजू महाराज बनारस वाले, ‘धमाल’ फिल्म के बाबूभाई, ‘फंस गए रे ओबामा’ के भाईसाब, ‘बिन बुलाए बराती’ के हजारी, ‘दम लगा के हईशा’ में आयुष्मान खुराना के पिता और ‘दिलवाले’ के औस्कर भाई जैसे रोल्स आज उन की पहचान बन चुके हैं. ‘आल द बेस्ट’ फिल्म में उन का डायलौग ‘धोंधू जस्ट चिल’ बहुत मशहूर है. इस के अलावा फिल्म ‘मसान’ के संजीदा पिता, ‘बांके की क्रेजी बरात’ के चाचाजी, ‘कड़वी हवा’ के बुजुर्ग किसान जैसी भूमिकाएं आज उन की पहचान हैं.
मशहूर किरदार
बाबूजी (आंखों देखी): ‘आंखों देखी’ में संजय ने एक ऐसे अधेड़ उम्र के आदमी की भूमिका निभाई जो सिर्फ उसी बात पर यकीन करता है जिसे वह देखता है. पागलपन की हद तक समाज व परिवार से लड़ता यह किरदार बाजार, झूठ, रूढि़यों और जीवन की एकरसता, अकर्मण्यता के खिलाफ खड़ा होता है. संजय मिश्रा की तारीफ फिल्म समीक्षकों ने खुले दिल से की. गुरुजी (जौली एलएलबी 2) : फिल्म ‘जौली एलएलबी 2’ में सिर्फ एक सीन में छा जाने वाले गुरुजी का किरदार बड़ा अनोखा है. यह किरदार इतना मशहूर हुआ कि संजय मिश्रा फिल्म के सीक्वल में भी नजर आए.
एप्पल सिंह (क्रिकेट ऐड सीरीज): संजय मिश्रा की पहचान सिर्फ फिल्म ‘आंखों देखी’ के बाबूजी के तौर पर ही नहीं है. उन की पहली पहचान तो एप्पल सिंह से बनी. इंगलैंड में 1999 में हुए क्रिकेट विश्वकप के दौरान एप्पल सिंह मैच के बीचबीच में दर्शकों को अपनी अजीबोगरीब अंगरेजी से हंसाहंसा कर लोटपोट कर देता है.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी
करीब 18 वर्षों पहले नक्सल व आतंकवाद को पिरोती फिल्म ‘सरफरोश’ आई थी, जिस में आधे मिनट के एक टौर्चर सीन में पुलिस वाले से पिटते किरदार से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने वाले ऐक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी उन्हीं चरित्र अभिनेताओं में से एक हैं जिन की डिमांड आज स्टार्स जैसी है. एक तरफ वे सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान व वरुण धवन के साथ ‘बजरंगी भाईजान’, ‘किक’, ‘रईस’, ‘तलाश’, ‘बदलापुर’ जैसी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं निभा कर वाहवाही बटोरते हैं वहीं दूसरी तरफ ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘बाबू मोशाय बंदूकबाज’, ‘मांझी-द माउंटेन मैन’, ‘शूट आउट -मौनसून’, ‘लतीफ’ में प्रमुख चरित्र निभा रहे हैं. जल्द रिलीज होने वाली अपनी फिल्म ‘ठाकरे’ में वे शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का मुख्य किरदार निभा रहे हैं. वहीं चर्चित लेखक सआदत हसन मंटो की बायोपिक ‘मंटो’ में लीड रोल में हैं. करीब 20 वर्षों तक गुमनामी, संघर्ष व तिरस्कार झेलने के बाद आज उन के चरित्र किरदार उन की सफलता और हिंदी सिनेमा के बदलते दौर को रेखांकित करते हैं.
मशहूर किरदार
आईबी औफिसर ए खान (कहानी) : फिल्म ‘कहानी’ में खान का तेजतर्रार किरदार जब जांच के लिए आता है और विद्या बागची को उस के पति के रौ एजेंट होने के बाबत टौर्चर कम पूछताछ करता है, उस सीन में नवाज का पहली बार आत्मविश्वास परदे पर दिखा.
फैजल खान (गैंग्स औफ वासेपुर): 2 पार्ट की इस फिल्मी सीरीज में फैजल खान का किरदार उम्र के हर पड़ाव से गुजरता है. किशोर अवस्था से रोमांटिक मोड़ तक, फिर अपने बाप का बदला लेने से ले कर एक मैच्योर नेता होने तक नवाज का किरदार फैजल खान उन के कैरियर का पहला लीड रोल था. इसी रोल ने उन्हें चरित्र किरदारों के साथसाथ लीड रोल दिलवाने शुरू किए.
तैमूर (तलाश) : वेश्यावृत्ति और मर्डर मिस्ट्री के इर्दगिर्द बनी फिल्म ‘तलाश’ में उन का किरदार तैमूर, रैड लाइट एरिया में रहता है और एक वेश्या से शादी कर घर बसाने के चक्कर में एक डील में फंस जाता है. लंगड़ाकर चलने वाले इस किरदार को आमिर खान की मौजूदगी के बाद भी नोटिस किया गया.
शेख (द लंच बौक्स) : फिल्म ‘द लंच बौक्स’ में इरफान खान का किरदार अवसाद में डूबा है, मुसकराहट की औक्सीजन ले कर शेख की एंट्री होती है जब वे इरफान के पास काम सीखने के लिए भेजे जाते हैं. शेख सादा आदमी है जो हर हाल में मुसकराना जानता है. लायक (बदलापुर) : लायक अपराधी स्वभाव का है और लूट की एक जघन्य वारदात में उसे सजा हो जाती है. जेल में बंद लायक को कैंसर है और वह आखिरी दिनों में अपने किए गए एक अपराध के लिए किस तरह से पश्चात्ताप की आग में जलता है, यह लायक के किरदार को हीरो से आगे खड़ा कर देता है.
चांद मोहम्मद (बजरंगी भाईजान) : पाकिस्तान का अपरिपक्व रिपोर्टर चांद मोहम्मद पाकिस्तान में बजरंगी की मदद करता है, मुन्नी को उस के घर पहुंचाने तक. महाभारत को टीवी सीरियल बताने वाला और ईद की छुट्टियों को ले कर कैमरे के सामने दी गई पीटूसी वाले सीन फिल्म की जान हैं और उन के किरदार चांद मोहम्मद की सफलता. एसीपी मजमूदार (रईस) : फिल्म ‘रईस’ में एसीपी मजमूदार का चरित्र इतना मजबूत है कि वह रईस पर भी भारी पड़ जाता है. रईस के गैरकानूनी कामों के खिलाफ खड़े मजूमदार को ईमानदार अधिकारी की भूमिका में खूब सराहा गया.
गणेश गायतोंडे (सेक्रेड गेम्स) : इस वैब सीरीज ने नवाज को इंटरनैशनल सितारा की हैसियत दिला दी है. इस किरदार में कई पेचीदगियां, आदतें, भाव और बहुत सी विशेषताएं हैं. काफी क्रूर और बोल्ड किरदार है यह.
पंकज त्रिपाठी
बिहार के एक छोटे से गांव, जहां बिजली भी 2-3 साल पहले पहुंची है, से निकले अभिनेता पंकज त्रिपाठी गांव के नुक्कड़ नाटकों में शौकिया काम करते थे. फिर होटल में नौकरी के बाद दिल्ली में नैशनल स्कूल औफ ड्रामा से पासआउट हो कर जब फिल्मी डगर पर निकले, तो काम मिलना मुश्किल रहा. करीब 12-13 वर्षों तक फिल्मों में छिटपुट किरदार करतेकरते आज उन्हें चारित्रिक अभिनेता के तौर पर स्वीकृति मिली है. आज वे ड्रामा, हौलीवुड, रीजनल हर तरह के सिनेमा में सक्रिय हैं. फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से शुरू हुई उन की सफल यात्रा शाहरुख खान के साथ ‘दिलवाले’ से होते हुए ‘मसान’, ‘गुड़गांव’ तक आ कर उन्हें स्थापित करती है.
मशहूर किरदार
नावेद अंसारी (टीवी सीरीज ‘पावडर’) : यशराज बैनर की इस सीरीज में पंकज त्रिपाठी को नावेद अंसारी के रोल में इंटरनैशनल पहचान मिली. नावेद मुंबई के ड्रग पिन का किंग है लेकिन फैंटम की तरह काम करता है. उस का कोई सिविल रिकौर्ड नहीं है. वह फैमिली वाला बंदा है लेकिन अंदर से उतना ही बड़ा गैंगस्टर है.
सुलतान कुरैशी (गैंग्स औफ वासेपुर) : सुलतान कुरैशी फिल्म का सब से क्रूर पात्र है, जो अकेले अपने कसाईखाने में 12 भैंसे काटता है. अपनी बहन को भी औनर किलिंग में मारते समय एक बार भी नहीं सोचता.
पंडित (फुकरे सीरीज) : कहने को तो पंडितजी दिल्ली के एक कालेज की सिक्योरिटी में हैं लेकिन परचा लीक कराने से ले कर ऐडमिशन से जुड़े सारे उलटेसीधे काम यही करता है.
सत्यजी (मसान) : छोटे लेकिन अहम किरदार में सत्यजी फिल्म ‘मसान’ के गंभीर कथानक में हास्य लाते हैं. ‘हमारे पिताजी कहा करते थे कि जिस आदमी ने अपने जीवन में खीर नहीं खाई, उस ने मनुष्य जाति में पैदा होने का लाभ नहीं उठाया’, ऐसे चटपटे संवादों से लैस सत्यजी बड़े मासूम व मीठे हैं और जनता को भाते हैं.
आत्माराम (न्यूटन) : असिस्टैंट कमांडैंट आत्मा सिंह की ड्यूटी नक्सली इलाके में लगी है. जब न्यूटन वहां टी वाहन से चुनाव करने के लिए आता है, तब न्यूटन और आत्माराम का सैद्धांतिक टकराव दिखता है. एक सीन में आत्माराम का एक डायलौग है, इलैक्शन कराने के लिए वो लोग जंगल में जाते हैं तो वह न्यूटन से पूछता है, ‘क्रिकेट खेलते थे?’ जवाब मिलता है, ‘हां’. ‘बौलिंग या बैटिंग?’ तो जवाब मिलता है, ‘नहीं, अंपायर..’ आत्माराम कहता है, ‘हां, ऐसा ही लगा मुझे.’ उस का यह कहने का अंदाज उन लोगो पर व्यंग्य था जो वाकई देश में भी दूर खड़े रह कर अंपायर की भूमिका निभाते हैं.
राजकुमार राव
गायिका सोना महापात्रा के अलबम में चंद सैकंड्स के लिए दिखे अभिनेता राजकुमार यादव उर्फ राजकुमार राव आज ‘शाहिद’, ‘न्यूटन’, ‘अलीगढ़’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘मेरी शादी में जरूर आना’, ‘बोस-डेड और अलाइव’, ‘बहन होगी तेरी’ फिल्म से अवार्ड व दर्शकों की तालियां दोनों ही पा रहे हैं. लेकिन इन्होंने भी बतौर चरित्र अभिनेता शुरुआत की और आज भी कर रहे हैं. फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘तलाश’, ‘शैतान’, ‘हमारी अधूरी कहानी’, ‘क्वीन’, ‘रास्ता’ आदि में उन की सहायक भूमिकाएं काफी सराही गईं और आज वे कमर्शियल व पैरेलल दोनों ही बीट्स के सिनेमा में सफल हैं.
मशहूर किरदार
आदर्श (लव सैक्स और धोखा) : आदर्श एक लोकल सुपरमार्केट स्टोर में सुपरवाइजर है. लोन चुकता करने के चक्कर में स्टोर में काम करने वाली लड़की का सैक्स वीडियो बना कर बेचने के इरादे से उसे फंसाता है. बाद में वह तो इस घटना से निकल जाता है लेकिन रश्मि की जिंदगी बरबाद हो जाती है. इस किरदार ने राजकुमार राव को फिल्मों में अहम पहचान दी.
शमशाद खान (गैंग्स औफ वासेपुर) : शमशाद मौकापरस्त किरदार है. कभी वह फैजल खान से दोस्ती करता है तो कभी उस के धुरविरोधी रामधीर से हाथ मिलाता है. वह फैजल के भाई को भी भड़काने में पीछे नहीं रहता. एक गाने ‘इलैक्ट्रिक पिया…’ में शमशाद की एनर्जी देखते ही बनती है.
देवरथ कुलकर्णी (तलाश): इंस्पैक्टर सुर्जन शेखावत का असिस्टैंट कुलकर्णी अपने काम को ले कर सीरियस है और फिल्म ऐक्टर अरमान सिंह के मर्डर केस में शेखावत की मदद करने के साथ उस के कुछ घरेलू मामलों में भी अनचाहे तरीके से शामिल हो जाता है. यह किरदार उस के ईमानदार अभिनय के चलते काफी पसंद किया गया.
विजय (क्वीन) : विजय पहले क्वीन से रोमांस करता है और फिर उसे शादी के लिए राजी करता है, लेकिन बाद में ऐन मौके पर मुकर जाता है. जब क्वीन का आत्मविश्वास देखता है तो फिर से उसे अपनाना चाहता है. गे से लगने वाले इस किरदार में राजकुमार ने जिस संतुलन से विजय के किरदार को संभाला है वह दर्शकों को नैगेटिव नहीं लगने देता.
सौरभ शुक्ला
इन्हें दिल्ली मुंबई की हर थिएटर ऐक्टिविटी में सक्रियता से देखा जा सकता है. फिल्मों में सौरभ सालों से चरित्र भूमिकाएं कर रहे हैं. फिल्म ‘सत्या’ से कल्लू मामा का किरदार लोकप्रिय हुआ. फिर वे डेविड धवन की मसाला फिल्मों में कौमेडीपरक किरदार करते रहे. फिल्म, टीवी, रंगमंच में सालों तक काम करने के बाद उन्हें फिल्म ‘जौली एलएलबी’ के जज सुंदर लाल त्रिपाठी से जो पहचान मिली, वह सब किरदारों पर भारी पड़ी है.
फिल्म के दोनों भागों में उन्हें सराहना मिली. उन के किरदार की लोकप्रियता ही कहेंगे जो सीक्वल में सारी कास्ट बदलने के बावजूद उन के किरदार को दिल्ली से लखनऊ तबादला कर कहानी का अहम हिस्सा बनाया गया. उन के नाटक ‘खामोश, अदालत जारी है’ से ले कर चेतन आनंद के स्पाई सीरियल ‘तहकीकात’ तक के किरदार आज उन्हें नाम, दौलत दे रहे हैं.
मशहूर किरदार
कल्लू मामा (सत्या) कल्लू मामा अंडरवर्ल्ड गैंग का सदस्य है जो सत्या के साथ एक करीबी रिश्ता रखने लगता है. गैंग में गड़बड़ होने पर वह सत्या का साथ देता है. फिल्म का एक गाना ‘गोली मार भेजे में…’ इसी किरदार पर बनाया गया है.
पांडुरंग (नायक द रियल हीरो) : मुख्यमंत्री की पूंछ बना पांडुरंग हिंसक भी है और हंसोड़ भी. टीवी के लाइवटैलीकास्ट के दौरान गोबर लगी चप्पल का सीन हो या अस्पताल वाला पांडुरंग का किरदार फिल्म में जान डाल देता है.
बटुक महाराज (लगे रहो मुन्ना भाई) : लोगों का भविष्य बताने वाला बटुक महाराज अपने ऊपर तनी पिस्तौल देख कर भविष्य बताने के बजाय बेहोश हो जाता है. फिल्म के क्लाइमैक्स में बटुक महाराज का रोल फिल्म का टर्निंगपौइंट है. यह एक तरह से फिल्म ‘पीके’ के प्रीक्वल किरदार सा लगता है.
गौड (ओ माई गौड) : फिल्म में भगवान के अवतार में आए सौरभ शुक्ला ने बड़े कूल अंदाज में गौड का किरदार निभाया था.
सुधांशु गुप्ता (बर्फी) : सीनियर इंस्पैक्टर सुधांशु ‘बर्फी’ के साथ चेज सीन में जबरदस्त हास्य पैदा करता है और आगे के हिस्से में अपनी गंभीरता से आकर्षित करता है. जज सुंदर लाल त्रिपाठी (जौली एलएलबी सीरीज) : यह सौरभ शुक्ला का सर्वश्रेष्ठ रोल है जिस ने उन्हें नैशनल अवार्ड भी दिलाया. यह इतना मजबूत किरदार है कि अब चरित्र से निकल कर फिल्म का नायक बन चुका है. दोनों पार्ट्स में जज सुंदर लाल त्रिपाठी जिस तरह से वकीलों को डांटते और समझौता करते हैं, और्डर और कानून का पाठ पढ़ाते हैं, आखिर में न्याय की मजबूरियां बयां करते हैं, यह सब आज तक किसी हिंदी फिल्म में नहीं देखा गया.
तपस्वी महाराज (पीके): तपस्वी महाराज की गलत भविष्यवाणी के चलते जग्गू का प्रेम संबंध खराब होता है. यहां तक कि पीके के रिमोट कंट्रोल को चुरा कर शिवजी का दिया गिफ्ट बता कर लोगों को ठगता है. इस किरदार की धूर्तता ने दर्शकों को काफी आकर्षित किया. ताऊजी (रेड) : इस फिल्म में यों तो इनकम टैक्स औफिसर अजय देवगन की कहानी थी जो ब्लैकमनी के खिलाफ काफी सख्त है लेकिन उन के किरदार अमय पटनायक पर सांसद रामेश्वर सिंह उर्फ ताऊजी का किरदार बेहद भारी पड़ता है.
विजय राज
दिल्ली से ही एनएसडी से पढ़ाई कर रंगमंच में मंझने के बाद अभिनेता विजय राज को फिल्मों में पहली बार साल 2002 में रिलीज फिल्म ‘जंगल’ में चौंकाने वाले किरदार में देखा गया. इसी के साथ एक नाटक के दौरान उन पर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की ऐसी नजर पड़ी कि उन्हें महेश मथई की फिल्म ‘भोपाल एक्सप्रैस’ व मीरा नायर की अंतर्राष्ट्रीय फिल्म ‘मौनसून वैडिंग’ में देशी वैडिंग प्लानर का मनोरंजक किरदार मिल गया.
तब से ले कर अब तक वे ‘डेल्ही बेली’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘बांके की क्रेजी बरात’, ‘वैलकम’ सरीखी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं कर अपनी पहचान बना चुके हैं. उन का मशहूर किरदार फिल्म ‘रन’ का आज कल्ट स्टेटस हासिल कर चुका है जहां वे कौआ बिरियानी खा कर यमुना समझ गंदे नाले में डुबकी लगा कर पेटीकोट वाले बाबा बन जाते हैं. विजय ने बतौर निर्देशक, एक संजीदा फिल्म ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ में निर्देशक/ अभिनेता की भूमिका भी बखूबी निभाई. उन के हर चरित्र किरदार को उन की अदाकारी के चलते दर्शकों में आज भी याद किया जाता है, तो इस का मतलब साफ है कि चरित्र कलाकार मुख्य अभिनेताओं से कहीं भी कम नहीं हैं. मुख्य अभिनेता के रोल में उन्हें ‘रघु रोमियो’ फिल्म मिली, जिस में विजय राज ने एक कन्फ्यूज्ड निम्नवर्गीय व्यक्ति का रोल किया जोकि टीवी सीरियल को हकीकत समझता है.
मशहूर किरदार
फूल वाले पी के दुबे (मौनसून वैडिंग) : मीरा नायर की इस फिल्म में वैडिंग प्लानर के रोल में विजयराज सारी लाइमलाइट चुरा ले गए. देसी दुबे को जिस घर में वैडिंग प्लानिंग का काम दिया गया वे उसी घर की नौकरानी एलिस के प्यार में दिल दे बैठते हैं. घर की हर अजीबोगरीब हरकत के बीच उन का निश्छल प्रेम और ठेठ अंदाज न सिर्फ उन के संवादों में दिखता है, बल्कि अभिनय में भी.
गणेश (रन) : कौआ बिरियानी, छोटी गंगा, गोबर बाबा ये 3 शब्द सुन कर आप जान जाते हैं कि विजय राज कौन और क्या हैं. फिल्म ‘रन’ का गणेश बड़ा भोला है और अपने दोस्त को तलाशते हुए दिल्ली आ तो जाता है लेकिन हर कदम पर ठगी का शिकार होता है. कोई उसे यमुना के नाम पर गंदे नाले में कुदा कर लूटता है तो कोई चिकन बिरियानी के नाम पर कौआ बिरियानी खिला देता है. यहां तक कि उस की किडनी भी अस्पताल वाले चुरा लेते हैं. आखिर में हार कर वह पेटीकोट वाला बाबा बनता है, तो समाज की विकृति पूरी तरह से उजागर हो जाती है.
जान मोहम्मद (डेढ़ इश्किया) : विजय राज का यह किरदार नैगेटिव है लेकिन परंपरागत तौर पर अलहदा है.
सोमायजुलू (डेल्ही बेली): आमिर खान की इस फिल्म के हिंदी और इंगलिश वर्जन में विजय राज का गैंगस्टर अवतार बड़ा कैची किरदार है. जब उसे अपने हीरों की जगह स्तूप सैंपल मिलता है तो उस का गुस्सा और जबान देखते ही बनती है.
ईनामुल हक
‘जौली एलएलबी 2’ के साधु कम मौलवी का किरदार निभा कर चर्चा में आए ईनामुल हक को फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ में मेजर खलाफ बिन जायद के किरदार में अरबी बोलते, वह भी हिंदी लहजे में, देखना दिलचस्प अनुभव है. ईनामुल भी उसी परंपरा के चरित्र अभिनेता हैं जो बड़े स्टार्स की फिल्मों से भी अपने हिस्से की लोकप्रियता चुरा लेते हैं. ‘फिल्मिस्तान’ के पाकिस्तानी किरदार से ले कर ‘लखनऊ सैंट्रल’ के कैंडी बैंड तक आतेआते उन्हें दर्शक पहचानने लगा है. एक चरित्र अभिनेता के लिए यह बड़ी बात है. कम लोग जानते हैं कि वे अच्छे संवाद लेखक भी हैं. वे अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’ के संवाद लिख चुके हैं.
मशहूर किरदार
आफताब (फिल्मिस्तान) : पाकिस्तान का आफताब फिल्मों की सीडी की पायरेसी करता है. हिंदी फिल्मों से प्रेम के चलते वह एक भारतीय को पाकिस्तान का बौर्डर पार करवाने से भी पीछे नहीं हटता. इस किरदार से ईनामुल हक लाइमलाइट में आए.
मेजर खलाफ बिन जायद (एयरलिफ्ट) : अरबी लहजे में हिंदी बोलने वाला मेजर फिल्म में दहशत का माहौल भर देता है. कद में छोटा लेकिन खास भावभंगिमाएं लाते इस मेजर का किरदार ईनामुल की खास पहचान है.
दिक्कत अंसारी (लखनऊ सैंट्रल): दिक्कत लखनऊ सैंट्रल जेल में कैदी है, जो एक म्यूजिक बैंड में शामिल हो कर जेल से भागने की फिराक में है.
रिचा चड्ढा
साल 2008 में दिल्ली के मशहूर चोर लकी के जीवन पर आधारित फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए’ में लीड किरदार अभय देओल व नीतू चंद्रा के थे लेकिन जनता ने पसंद किया ‘डौली’ के किरदार को. यह किरदार रिचा चड्ढा ने निभाया था.
करीब 24-25 साल की उम्र में जब ज्यादातर संघर्षरत कलाकार मुख्य भूमिकाओं के लिए हाथपैर मारते हैं, तब रिचा चड्ढा ने फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ सीरीज में नगमा खातून की कठिन व सहायक भूमिका की. जो 25 साल से 70 साल तक का जीवन जीते दिखती है. लीक से हट कर चलने की इसी आदत ने रिचा को चरित्र भूमिकाओं में भी उतना ही लोकप्रिय किया जितना लीड ऐक्ट्रैस होती हैं. इस के बाद ‘गलियों की रामलीला’ में भी वे दिखीं. फिल्म ‘फुकरे’ में भोली पंजाबन का किरदार व ‘मसान’ का देवी पाठक व ‘सरबजीत’ में सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर का किरदार उन्हें लोकप्रिय कैरेक्टर आर्टिस्ट बनाता है.
मशहूर किरदार
डौली (ओए लकी लकी ओए) : डौली दिल्ली के लोकल जगरातों में आइटम डांस करती है. स्वभाव से अक्खड़ और मुंहफट डौली को अपनी छोटी बहन के होने वाले पति से भी फ्लर्ट करने में गुरेज नहीं है. क्विर्की नेचर के इस किरदार से रिचा का कैरियर अस्तित्व में आया.
नगमा खातून (गैंग्स औफ वासेपुर): नगमा का किरदार आज की नारी का बोल्ड वर्जन है. सरदार की बीवी नगमा को जब पता चलता है कि सरदार ब्रोथल में किसी वेश्या के साथ है तो उसे चप्पल से पीटते हुए सरेराह दौड़ाती है और अपनी प्रेग्नैंसी के दौरान सरदार खान की सैक्सुअल फ्रस्ट्रेशन को देख उसे दूसरी औरतों के साथ सोने की इजाजत इस शर्त पर देती है कि वह उन औरतों को घर के अंदर नहीं लाएगा. इस जीवंत किरदार का पूरा लाइफस्पैन दोनों पार्ट्स में घूमता है. पत्नी, विधवा, सास जैसे किरदार एक ही नगमा के हिस्से आते हैं.
भोली पंजाबन (फुकरे सीरीज) : भोली पंजाबन लेडी गैंगस्टर है जो बड़े नेताओं और बिजनैसमैन को दिल्ली में लड़कियां सप्लाई भी करती है. फुकरों के चक्कर में पड़ कर वह जेल जाने तक अपनी अकड़ और टशन के साथ पूरी फिल्म में हावी रहती है.
जरीना मलिक (वैब सीरीज ‘इनसाइड एज’) : इस वैब सीरीज में टी 20 टीम की मालकिन जरीना जब सैक्स स्कैंडल, फिक्सिंग और अपराध के जाल में उलझती है तो यह किरदार एपिसोड बढ़ने के साथ और भी जटिल हो जाता है. एक मजबूत और इंडिपैंडैंट जरीना का किरदार सीरीज के दूसरे पार्ट में वापस आएगा.
सीमा पाहवा
फिल्मों में मां की स्टीरियोटाइप भूमिकाओं से इतर अभिनेत्री सीमा पाहवा का चरित्र आज के जमाने की मांओं का प्रतिनिधित्व करता है. इन्हें मैथड ऐएक्टिंग का उस्ताद कहा जाता है. फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में उन का किरदार फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ तक आतेआते बोल्ड हो जाता है, जो अपनी बेटी की शादी को ले कर औब्सैस्ड है. वहीं नपुंसकता व मैरिज सैक्स पर आधारित फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में उन का चरित्र देखते ही बनता है जब वे सांप और गुफा की सांकेतिक भंगिमाओं के जरिए अपनी नवविवाहिता बेटी को सैक्स की जानकारी दे रही हैं.
साल 1984-85 में दूरदर्शन के सदाबहार सीरियल ‘हम लोग’ से चर्चित हुईं सीमा सालों तक दिल्ली के थिएटर ग्रुप ‘संभव’ के साथ नाटक करती रहीं. फिर कुछ सासबहू सरीखे सीरियल्स किए. लेकिन फिल्म ‘आंखों देखी’ ने उन्हें सितारा हैसियत दिलाई. भीष्म साहनी के नाटक ‘साग-मीट’ में उन्हें इस कदर सराहा गया कि नाटक के दौरान उन के द्वारा बनाए गए व्यंजन तक की प्रशंसा हुई. फिल्म ‘हरी भरी’, ‘जुबैदा’, ‘तेरे बिन लादेन’, ‘फरारी की सवारी’, ‘औल इज वैल’ और ‘वजीर’ के किरदार आज उन्हें नंबर एक की चरित्र अभिनेत्री के तौर पर स्थापित करते हैं.
मशहूर किरदार
बड़की (टीवी सीरियल ‘हम लोग’): भारत के पहले सोप ओपेरा में उन का किरदार बड़की उन के कैरियर का आगाज था. इसी ने उन के फिल्मी कैरियर में जान फूंकी.
बब्बू दीदी (फरारी की सवारी) : बब्बू दीदी, नेता के बेटे की बरात फरारी में ही आएगी, की जिद पूरी करने के लिए किस तरह हेराफेरी करती है, यही अंदाज दर्शकों को लुभा गया और सीमा पाहवा कौमेडी में लोगों को जंच गईं.
अम्मा (आंखों देखी) : बाबूजी को सच को ले कर एक बड़ा ज्ञान मिल गया है और लोग उन्हें पागल तक बता रहे हैं. ऐसे में घर की जिम्मेदारी अम्मा के सिर आ पड़ी है. अम्मा सीधीसादी घरेलू औरत है, लेकिन हमेशा बड़बड़ाती रहती है क्योंकि पति नौकरी छोड़ कर घर बैठा है और देवरानी का पति सफल है. मध्यवर्गीय परिवार की दशा को दर्शाता अम्माजी का किरदार कई अवार्ड ले गया.
दीपक डोबरियाल
फिल्म ‘तनु वैड्स मनु’ के पप्पी भैया का हंसोड़ किरदार आज इतना लोकप्रिय है कि दीपक डोबरियाल को कई सालों से इसी तरह के किरदार औफर हो रहे हैं, और वे बाकायदा इन औफर्स को रिजैक्ट कर रहे हैं.
कौमिक भूमिकाओं के अलावा उन के फिल्म ‘ओमकारा’, ‘गुलाल’, ‘नौट अ लव स्टोरी’, ‘दबंग’, ‘दाएं या बाएं’, ‘मुंबई कटिंग’, ‘प्रेम रतन धन पायो’ व ‘शौर्य’ जैसे किरदार उन्हें एक मंझा व टिकाऊ चरित्र अभिनेता का दर्जा देते हैं. वे कई फिल्मों में लीड रोल भी बखूबी कर चुके हैं.
मशहूर किरदार
राजन उर्फ रज्जू तिवारी (ओमकारा) : विशाल भारद्वाज के इस शेक्सपियर एडिशन में रज्जू सब से पेचीदा व अहम किरदार है.
कैप्टन जावेद खान (शौर्य): आर्मी में व्याप्त कट्टरता पर बनी इस फिल्म के किरदार में दीपक ने काफी तारीफें बटोरीं.
पप्पी भैया (तनु वैड्स मनु सीरीज): फिल्म का सब से हंसोड़ और मजेदार पप्पी भैया मनु के साथ अपनी भी शादी की जुगाड़ में लगा रहता है और समयसमय पर अपनी नसीहतों से मनु को ऊटपटांग तरीके से फंसाता भी है.
कन्हैया (प्रेम रतन धन पायो) : प्रेम दिलवाले का भाई कहें या साइड किक, कन्हैया पूरी फिल्म में अपने वन लाइनर से दर्शकों को हंसाते हैं. रामलीला के सीन में उन का सीता का किरदार बहुत मजेदार बनता है तो इस के पीछे दीपक की प्रतिभा है.
श्याम प्रकाश (हिंदी मीडियम) : स्लम में रहने वाला श्याम प्रकाश पैसों से भले ही गरीब हो लेकिन दिल से बड़ा अमीर है. ऐडमिशन के नाम पर कोटा में सेंध लगाने वालों को सबक सिखाता यह किरदार मुख्य किरदार सरीखा लगता है. यही दीपक के अभिनय की खूबी भी है.
अन्नू कपूर
फिल्म ‘तेजाब’, ‘घायल’ में संक्षिप्त भूमिकाओं से चर्चा में आए अन्नू कपूर ने 24 साल की उम्र में ही बासु चटर्जी की फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ में 80 साल के वृद्ध की भूमिका निभा कर चौंका दिया था. लेकिन तब से अब तक उन्हें पहचान चरित्र किरदारों से ही मिली है. फिर चाहे वह टीवी पर ‘अंताक्षरी’ का संचालन हो या ‘विकी डोनर’ के डाक्टर खुराना, ‘शौकीन’ के ठरकी अंकल या फिर ‘जौली एलएलबी-2’ के जिद्दी वकील का किरदार. उन्हें फिल्म में पूरी पहचान मिली.
मशहूर किरदार
मैसूर (उत्सव) : एक गंभीर और रोमानी प्ले पर आधारित इस फिल्म में हास्य का तड़का लगाता मैसूर का किरदार इतना पसंद किया गया कि उस साल इसे सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकारों की श्रेणी में नामांकन मिला. रंगीन और ठग मिजाज का मैसूर हर तरह का उलटासीधा काम कर के तपस्वी बनने की फिराक में रहता है.
जूरर न. 9 (एक रुका हुआ फैसला) : इस कल्ट क्लासिक फिल्म में 30 साल के अन्नू कपूर ने 80 साल के बुजुर्ग के किरदार की भावभंगिमा और बौडी लैंग्वेज को जिस तरह से परदे पर उतारा था वह इस किरदार को आज भी सर्वश्रेष्ठ किरदारों में खड़ा करता है.
डा. बलदेव खुराना (विकी डोनर): इस किरदार ने अन्नू कपूर को मेनस्ट्रीम फिल्मों में एक बार फिर से स्थापित करने का काम किया. डा. खुराना फर्टिलिटी सैंटर चलाता है जहां स्पर्म को ले कर इतना ओवर कंपल्सिव है कि फिल्म की सारी हास्य सिचुएशन उन्हीं की वजह से आती है.
एडवोकेट प्रमोद माथुर (जौली एलएलबी-2) : पेशे से वकील प्रमोद माथुर लखनऊ के एलीट वकील हैं और अपने रेटकार्ड हमेशा तैयार रखते हैं. मिलने आए मुवक्किलों से चायबिस्कुट के साथ एसी का चार्ज भी वसूलते हैं. जौली के साथ एक केस के लिए उन का एड़ीचोटी का जोर लगाना, अदब वाले लखनवी अंदाज में संवाद अदायगी करना इस किरदार को फिल्म की जान बना देता है.
और भी हैं बड़े नाम इन तमाम बड़े नामों के अलावा और भी कई अभिनेता ऐसे हैं जो अपने शानदार और जानदार किरदारों की बदौलत न सिर्फ फिल्म में जान फूंकते हैं, बल्कि वे अपनी अलग पहचान भी बना चुके हैं.
मोहम्मद जीशान अय्यूब : युवा व चरित्र अभिनेताओं की पौध में मोहम्मद जीशान अय्यूब में सर्वाधिक संभावनाएं देखी जा रही हैं. साल 2011 में ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में मुख्य आरोपी के किरदार में जान डालने वाले जीशान को फिल्म ‘रांझणा’ में धनुष के किरदार के नजदीकी दोस्त, फिल्म ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’ के अरुण ‘चिंटू’ कुमार सिंह, ‘मेरे ब्रदर की दुलहन’, ‘फैंटम’, ‘डौली की डोली’, ‘शाहिद’, ‘रईस’ आदि के चरित्र किरदारों से पहचान मिली है.
विक्रांत मेसी : इन की उम्र पर मत जाइए, देखने में बेहद युवा विक्रांत मेसी, बतौर सहायक कलाकार, फिल्मों व वैब सीरीज में अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा रहे हैं. ‘डैथ ऐट गंज’, ‘लुटेरा’, ‘दिल धड़कने दो’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’, ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरका’ जैसी फिल्मों व ‘राइज’, ‘बेस्ट गर्लफ्रैंड’, ‘35 एमएम’ सरीखे डिजिटल कंटैंट ने आज उन्हें घरघर तक पहुंचा दिया है.
आदिल हुसैन : बंगला, तमिल, मराठी, मलयालम, फ्रैंच, असमिया, अंगरेजी तथा हिंदी तमाम भाषाओं की फिल्मों में यादगार किरदारों में नजर आया यह अभिनेता आज पौपुलर स्टार्स से कम नहीं है. उन को फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में श्रीदेवी के पति की भूमिका में सराहना मिली तो वहीं औस्कर विजेता ‘लाइफ औफ पाई’ में इरफान खान/सूरज शर्मा के किरदार से अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली.
विनय पाठक : ‘भेजा फ्राई’ के भारत भूषण को कौन नहीं जानता, लेकिन 1997 में एक सीरियल ‘भार्गरीटा’ से अभिनय के मैदान में उतरे चरित्र अभिनेता विनय पाठक को कई दशकों बाद नाम मिला. फिल्म ‘पाप’ से थोड़ा नोटिस मिलने के बाद उन्हें प्रौपर्टी डीलर्स के फर्जीवाड़ों पर आधारित फिल्म ‘खोसला का घोसला’ से इतनी पहचान मिली कि उसी चरित्र के जरिए उन्हें फिल्म ‘भेजा फ्राई’, ‘दसविधान्या’, ‘ओह माई गौड’, ‘बदलापुर’, ‘उलटासीधा’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी बड़ी फिल्में मिलीं.
इन के मजबूत किरदारों व सशक्त अभिनय की बदौलत दर्शक भी पूछ बैठते हैं कि इस किरदार को निभाने वाले ऐक्टर का नाम क्या है. आज इंटरनैट आने से इन से संबंधित जानकारी मिलने के चलते इन की भी अच्छीखासी फैन फौलोइंग बन चुकी है. यह अपनेआप में हिंदी फिल्मों में चरित्र रोल करने वाले ऐक्टर्स के बढ़ते कद का नमूना है. कन्हैया लाल, जीवन, ओमप्रकाश से अमरीशपुरी, अनुपम खेर, इरफान और ओमपुरी तक की लीगसी चरित्र भूमिकाएं हिंदी सिनेमा के शुरुआती दशक में भी उतनी ही मजबूत व अहम हुआ करती थीं, जितनी आज हैं. वह तो बीच के 80-90 के दशक में चरित्र किरदार इतने स्टीरियोटाइप हो गए कि इन की पहचान ही खत्म हो गई.
यही हाल जीवन, आई एस जौहर, महमूद, जौनी वौकर, ओम प्रकाश का हुआ. बाद में अमरीशपुरी, अनुपम खेर, ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, कुलभूषण खरबंदा, हरीश पटेल, उत्पल दत्त, संजीव कुमार, इरफान खान ने आर्ट फिल्मों और कमर्शियल सिनेमा में संतुलन साधते हुए चरित्र भूमिकाओं को अस्तित्व में रखा लेकिन धीरेधीरे फौर्मूला फिल्मों के नीचे सब दब सा गया. औसत को अव्वल बनाते
हिंदी सिनेमा में भले ही फिल्में स्टार्स के नाम पर रिलीज/डिस्ट्रीब्यूट होती हों लेकिन अभिनय के लिए बड़ा नाम, गौडफादर कनैक्शन, स्टार संस जैसी योग्यताओं का दौर अब कम हो चला है. अब फिल्में अपने अनोखे, नए, तार्किक कंटैंट व चरित्र कलाकारों के दमदार अभिनय के दम पर चल रही हैं. यहीं से कैरेक्टर आर्टिस्ट की भूमिका शुरू होती है. यह चरित्र कलाकार ही होता है जो एक औसत लिखावट के दृश्य, फिल्म या स्क्रिप्ट को अपनी इंप्रोवाइज्ड अदाकारी से रोचक व देखने लायक बना देता है. फिल्में अब कोरे ड्रामा कल्पनाओं के बजाय सामाजिक सरोकार या कहें चर्चित घटनाक्रमों, सत्यघटना, विवादास्पद मामलों पर बन रही हैं, जिस के चलते रियलिस्टिक किरदारों की डिमांड बढ़ी है. यह बदलाव ही सिनेमा को असली ग्रोथ दे रहा है और कैरेक्टर आर्टिस्ट्स को उन का लंबित ड्यू.