गाँव, देहातों और कस्बों में आज भी मृत्यु भोज, शादियों और धार्मिक समारोहों के भोज में दलित समुदाय के लोगों की पंगत या पंक्ति अलग लगती है यानि उन्हे ऊंची जाति बालों से दूर बैठाल कर खाना खिलाया जाता है जातिगत भेदभाव बाला यह नजारा जल स्थलों के अलावा शमशान घाट तक में दिखना आम है । ठीक यही दृश्य 11 मई को बड़े दिलचस्प और शर्मनाक तरीके से उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुम्भ में दिखा फर्क इतना था कि इसमे कुछ ऊंची जाति बालों ने छोटी जाति बालों के साथ डुबकी क्षिप्रा नदी में लगाई और बाद में उनके साथ बैठकर खाना भी खाया । समरसता स्नान की घोषणा भाजपा काफी पहले कर चुकी थी जिसके तहत प्रचारित यह किया गया था कि इसमे दलित और सवर्ण साथ साथ नहायेंगे इस घोषणा का दूसरा पहलू यह स्वीकारोक्ति थी कि हाँ अभी खाने पीने और नहाने बगेरह में दलितों के साथ भेदभाव होता है ।

इस संवेदनशील और जोखिम भरे मसले को लेकर भगवा खेमे में मीटिंगों के कई दौर चले और हर मीटिंग के बाद तरह तरह की चर्चाए हुईं मसलन पहले यह अफवाह उडी कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दलितों के साथ स्नान करेंगे इसके बाद गर्द आर आर एस प्रमुख मोहन भागवद के नाम की उडी पर आखिर में दलितों के साथ डुबकी लगाई भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जो इस पूरे ड्रामे मे बेहद असहज साफ साफ दिखे । गौरतलब है कि इस समरसता स्नान का जम कर विरोध भी हुआ था कांग्रेस का विरोध नाकाफी और भाजपा की मंशा की  ही तरह वोटों की राजनीति करार देते दरकिनार हो गया था लेकिन साधू संतों के खुले और अंदरूनी विरोध से भाजपा इतना घबरा गई थी कि 10 मई को एक तरह से इस आयोजन को रद्द मान लिया गया था ।

समरसता स्नान का विरोध करने बालों में से एक थे शंक्राचार्य स्वरूपानन्द स्वामी जिनका आरोप था कि इससे संतों मे जातिगत भेदभाव फैलेगा और नदी किसी डुबकी लगाने बाले से उसकी जाति नहीं पूछती यही बात जब दूसरे लफ्जों में आर आर एस में ऊंचा कद रखने बाले और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात केलकर ने दोहराई तो भगवा खेमे में खलबली मच गई यह खलबली उस वक्त और बढ़ गई जब भाजपा का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने भी इस पर एतराज जताते यह कह डाला कि साधु की कोई जाति नहीं होती और कुम्भ में कोई भी स्नान करने के लिए स्वतंत्र है । छोटे स्तर पर हो रहे अंदरूनी विरोध की इन बड़ी आवाजों से भाजपा की हालत समरसता स्नान को  न निगलते और न उगलते बनने बाली हो गई तो बीच का रास्ता अमित शाह को डुबकी लगवाने का निकाला गया ।

अमित शाह दलितों पर तो नहीं पर पीले अक्षत भेज कर आमंत्रित किए गए दलित संतों के साथ नहाये और बहुत पुराना भाषण दे डाला कि भाजपा ही एकलौती संस्था है जो देश की संस्कृति को मजबूत करना चाहती है । यह आयोजन पहले रामघाट पर होना था पर हुआ वाल्मीकि घाट पर इसकी वजह भले ही भीड़ भाड़ बताई गई पर हकीकत यह थी कि सवर्णों के लिए अघोषित रूप से आरक्षित रहने बाले इस घाट पर दलितों को घोषित तौर पर पूरे तामझाम से नहलाना एक जोखिम भरा काम होता जिसका विरोध भाजपा और संघ की और छीछलेदार कराने बाला होता ।

बहरहाल अब यह सभी को सर झुकाकर मान लेना चाहिए कि चूंकि अमित शाह ने नरेंद्र गिरी और  अवधेशानन्द जैसे नामी संतों को साथ लेकर नामालूम से दलित संतों के संग डुबकी लगाकर ऐलान कर दिया है कि आज चारों कुम्भ हो गए तो देश और हिन्दू धर्म से छुआ छूत खत्म हो गई है, दलितों को गले लगाकर उन्हे बराबरी से खाना खिलाया जा रहा है , नलों , नदियों और कुओं से पानी भरने उन्हे बाइज्जत जगह दी जा रही है , दलित दूल्हों को घोड़ी पर बैठकर बारात निकालने से नहीं रोका जा रहा है , उन्हे बालों की कटिंग और दाढ़ी बनाने से मना नहीं किया जा रहा है , सवर्ण पंडित उनके यहाँ शादी ब्याह या दूसरे धार्मिक आयोजनो से इंकार नहीं कर रहा है, मिड डे मील मे ऊंची जाति बाले बच्चे दलित बच्चों को हिकारत से नहीं देख रहे हैं और इतना ही नहीं मास्टर साहब ने खुद दलित बच्चों को पीछे से बुलाकर आगे बैठाल दिया है और दलित एक ही शमशान में सवर्णों के साथ अंतिम संस्कार कर पा रहे हैं अलावा इसके दबंगों ने महाकाल की सौगंध खाकर तय कर लिया है कि अब वे छोटी जाति बाली औरतों की इज्जत नहीं लूटेंगे।  इस स्वप्निल क्रांति की वजह इतनी भर है कि उज्जैन सिंहस्थ में समरसता स्नान सम्पन्न  हुआ है ।      

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