वह बीमार थीं. अकेली भी. सप्ताह में दो बार डायलिसिस होती थी. खुद अस्पताल भी आ-जा नहीं सकती थीं. पति से तलाक के बाद इकलौते बेटे का सहारा था, जो दो साल पहले बेंगलुरु में नौकरी करने चला गया था. 25 दिन पहले तबीयत ज्यादा खराब हुई तो बेटे को फोन किया. रोती हुई नोएडा आने की मिन्नतें कीं, लेकिन वह नहीं पसीजा. शनिवार को उनके फ्लैट से बदबू आने लगी. पड़ोसियों की सूचना पर रविवार को अभागा बेटा फ्लाइट से पहुंचा भी, लेकिन तब तक मां का शरीर गल चुका था.

मूलत: पश्चिम बंगाल की रहने वालीं बबीता बसु (52) की मौत रिश्तों में खत्म होती संवेदना और दम तोड़ते मूल्यों की दर्दनाक कहानी है. एक मीडिया संस्थान में काम करने वालीं बबीता सेक्टर-99 स्थित सुप्रीम अपार्टमेंट में दो साल से किराये पर रह रही थीं. पति मधुसूदन पाल से 10 साल पहले तलाक हो चुका था. इकलौता बेटा सिद्धार्थ दो साल से बेंगलुरु में रह रहा है. वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. बबीता की दोनों किडनी खराब थी और एक साल से डायलिसिस चल रहा था. देखभाल के लिए कोई नहीं था और वह अकेले ही डॉक्टर के पास जाती थीं. दो महीने से तबीयत ज्यादा बिगड़ने से सप्ताह में दो बार डायलिसिस हो रही थी.

शव के पास टेबलेट, पानी की बोतल व फल मिले

शनिवार देर रात फ्लैट से बदबू आने पर पड़ोसियों ने उनके फ्लैट का दरवाजा खुलवाना चाहा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब उन्होंने फोन कर उनके बेटे को जानकारी दी. सिद्धार्थ बेंगलुरु से फ्लाइट से सुबह करीब 9 बजे घर पहुंचा. इसके बाद मकान मालिक से डुप्लीकेट चाबी लेकर फ्लैट खोला. अंदर देखा तो बबीता का सड़ा गला शव बिस्तर पर पड़ा था. उस पर मक्खियां और चिटियां रेंग रही थीं. पास ही दवा, पानी की बोतल व फल आदि पड़े थे.

मां बहुत काम है

पुलिस को बबीता के फोन की ऑडियो रिकॉर्डिग मिली है. 19 सितंबर को वह बेटे से फोन पर कह रही हैं, अब सप्ताह में दो बार डायलिसिस होने लगी है, आ जाओ. सिद्धार्थ ने काम अधिक होने का हवाला देते हुए दिवाली में आने की बात कही थी. इसके बाद एक बार भी मां से बात नहीं की.

आखिरी बार 28 को दिखी थीं

सुप्रीम टावर के आरडब्ल्यूए के सदस्य भानू प्रताप गुप्ता ने बताया कि बबीता लोगों से कम मिलती थीं. वह आखिरी बार 28 सितंबर को देखी गई थीं. पुलिस के मुताबिक मौत दस दिन के अंदर हुई है, हालांकि सच्चाई पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलेगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...