अगर सरकार मैप को रेग्युलराइज करने और उसके लिए लाइसेंस जारी करने में अपनी मर्जी चलाती है तो बेंगलुरु के कब्बॉन पार्क के रनर्स, हिमालय की तलहटी में ट्रैक करने वाले रोमांचपसंद लोगों और कस्टमर्स की तलाश में लगे रहने वाले गुड़गांव की स्टार्टअप्स मुसीबत में आ सकते हैं. इससे गूगल या ऊबर जैसी दिग्गज टेक्नॉलजी कंपनियों के साथ पिज्जा ऑर्डर करने या कैब बुलाने के लिए रोज मैप यूज करने वाले करोड़ों भारतीय मुश्किल में पड़ जाएंगे.
पिछले हफ्ते पब्लिक कमेंट्स के लिए जारी जियोस्पेशल इन्फर्मेशन रेग्युलेशन बिल के मसौदे के मुताबिक, अगर कोई सैटलाइट या एरियल प्लैटफॉर्म के जरिए इंडिया की मैपिंग करना चाहता है तो उसको सरकारी सिक्यॉरिटी वेटिंग अथॉरिटी (SVA) से लाइसेंस लेना होगा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्रस्तावित बिल के दायरे में प्रफेशनल ही नहीं, जीपीएस वाले स्मार्टफोन यूजर्स के लिए भी मैप यूज करने वाली कंपनियां और एजेंसियां भी आ जाएंगी.
आईबेक्स एक्सपीडिशंस के फाउंडर मंदीप सिंह कहते हैं कि बिल का मसौदा बेतुका लगता है. यह हजारों अडवेंचर क्लाइंबर्स, ट्रैकर्स और रेस्क्यू मिशन वालों पर भी नेगेटिव असर डाल सकता है. इन लोगों की मैप पर बहुत ज्यादा निर्भरता हो गई है. रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी के फेलो सिंह कहते हैं, 'रूट, ट्रैक वगैरह बनाने का काम गूगल जैसी कंपनियों के मैप के हिसाब से किया जाता है. हमें इसके बारे में अपने कस्टमर्स और गाइड्स को बताना होगा.'
इससे अडवेंचर टूरिज्म इंडस्ट्री की चुनौतियां बढ़ जाएंगी क्योंकि मौजूदा कानून के चलते लोगों को पहाड़ी इलाकों के फिजिकल मैप एक्सेस नहीं है. इसलिए ऑपरेटर्स और उनके क्लाइंट्स गूगल के डिजिटल मैप पर निर्भर रहते हैं.
बिल के खिलाफ “सेव द मैप (http://savethemap.in)” अभियान चला रहे GIS एक्सपर्ट सज्जाद अनवर का कहना है कि बिल का दायरा इतना व्यापक है कि उसमें बड़ी इमेजिंग कंपनियों से लेकर डिलिवरी स्टार्टअप तक आ जाएंगी. उन्होंने कहा, 'बड़ी विडंबना है कि इंडिया में बहुत सारे ऐंड्रॉयड और स्मार्टफोन यूजर्स हैं, जो जाने-अनजाने में जीपीएस के जरिए रियल टाइम बेसिस पर अपनी लोकेशन शेयर करते हैं. वे दौड़ते या टहलते वक्त वॉट्सऐप या किसी डिलीवरी एप के जरिए दोस्तों से लोकेशन शेयर कर रहे हो सकते हैं. कानून बनने के बाद इन सब पर पाबंदी लग जाएगी.'
अनवर ने कहा कि हर स्मार्टफोन यूजर के लिए लाइसेंस लेना एकदम अजीब है. उन्होंने कहा, 'यह भी साफ नहीं है कि यह किस हद तक दंडनीय है. इसको लागू करना बहुत मुश्किल लगता है.' कुछ लोगों को यह गूगल मैप्स से पहले के जमाने की याद दिला सकता है.