साल 2019 में आम लोकसभा चुनाव हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबतें चारों ओर से सूनामी की तरह आ गयीं हैं. जहां एक ओर देश में अराजकता का माहौल है, जातिवाद और धर्मांधता अपनी हद पर हैं. वहीं दूसरी ओर दुनिया में तेल की बढ़ती कीमतों से भारतीय रुपया न थमने वाली ढलान पर बिना नकेल के सांड़ की बेतहाशा दौड़ता जा रहा है.

पिछले कुछ समय से अमेरिकी डौलर के मुकाबले भारतीय रुपया गिर कर 73.77 के अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा है. यह मौजूदा सरकार और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकेत हैं. नतीजतन, भारतीय रिजर्व बैंक अब सुधार के विकल्पों पर विचार कर रहा है. इसी के मद्देनजर आरबीआई ने तेल कंपनियों को अपने वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को पूरा करने के लिए फौरेन करंसी लोन लेने की अनुमति दे दी है. यह फैसला उस समय लिया गया है जब ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा था कि वह सीधे तेल कंपनियों को डौलर बेचेगा, पर ऐसा करने से उसका खजाना कमजोर पड़ जाता. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ने तेल कंपनियों को ही उधार लेने की अनुमति दे दी ताकि उस के पास फौरेन रिजर्व बचा रहे.

शेयर हुए धड़ाम

कच्चा तेल महंगा होने और रुपए में आई गिरावट के चलते शेयर बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ा. 4 अक्टूबर को कारोबार के दौरान सेंसेक्स 900 अंक लुढ़क गया. निफ्टी में भी 300 अंक की गिरावट आई. इस से निवेशकों को 3.21 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. सेंसेक्स में शामिल 30 में से 28 कंपनियों के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई.

इस अफरा तफरी का कांग्रेस ने फायदा उठाया और भाजपा सरकार पर निशाना साधा. उस का कहना है कि मोदी राज में रुपए में ऐतिहासिक गिरावट का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग इस समस्या पर बोलने से बच रहे हैं.

इस से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें आ गई हैं. समस्या से बचने के लिए सरकार प्रवासी भारतीयों के लिए कोई आकर्षक जमा योजना ला सकती है ताकि भारी मात्रा में डौलर जुटा कर रुपए पर दबाव कम किया जा सके. पर यह जब होगा तब होगा. फिलहाल तो रुपया डौलर के मुकाबले बहुत कमजोर है जो देश की तरक्की की राह में बहुत बड़ा रोड़ा लग रहा है.

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