नामों की अपनी महिमा होती है तभी तो बच्चों के दुनिया में आते ही मातापिता अपने बच्चों का बैस्ट व यूनीक नाम रखने की जुगत में लग जाते हैं. कभी इस के लिए पंडितों के चक्कर लगाते हैं तो कभी शब्दकोष खंगालते हैं. यहां तक कि अब वे नैट से भी नामो को खोजने में पीछे नहीं रहते बावजूद इस के वे कभीकभी पसंदीदा नाम नहीं रख पाते.
पुराने जमाने के दकियानूसी कट्टरपंथी लोग अपने बच्चों के नाम देवीदेवताओं के नाम पर यह सोच कर रखते थे कि मरते समय भी उन्हें बुलाने पर भगवान का नाम ले लिया जाएगा इसलिए राम, सीता, वैष्णो, पार्वती जैसे नाम रखने में भी नहीं शर्माते थे.
लेकिन बदलती धारणाओं और जागरूकता के बाद भी अब जहां चलन मौडर्न नामों का हो गया है वही अब अपने पेशे से जुड़े दिनों में से भी लोग नाम निकलवाने लगे हैं. इस की जीतीजागती मिसाल मुन्नालाल झा है, जो मध्यप्रदेश से जुड़े होने के साथसाथ समाजसेवा भी करते हैं. उन्होंने अपने जीवन में शुरू से ही संघर्ष किया है तभी तो उन्होंने अपने जीवन से मिले तजुरबे को देखकर अपने बच्चों का नाम क्रांति, आंदोलन, संघर्ष, भूख, हड़ताल और नेता रखा.
कहानी कुछ ऐसी है जब मुन्नालाल की शादी नहीं हुई थी तब उन्होंने अपने लहार कस्बे, किसे वे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते और वहां की समस्याएं देखकर उन की आंखों से आंसू निकल जाते थे के लिए अनशन किया और लोगों में भी इस के प्रति जागरूकता पैदा की कि सिर्फ सहने से नहीं बल्कि समस्या का समाधान निकालने से निकलता है इसलिए तुम भी आगे आओ. भले ही कोई आगे आया या नहीं आया लेकिन फिर भी उन्होंने अपना अनशन जारी रखा.
कहते है न कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. मुन्नालाल की मेहनत भी रंग लाई और उन्होंने अपनी इसी मेहनत में सफलता पाकर समाजसेवा की राह पकड़ ली समाजसेवा के रास्ते में भी कई अड़चनें थीं लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बढ़ चले आगे की राह पर. जैसेजैसे समय बीतता गया समस्याएं भी बढ़ती गईं लेकिन हार मानना तो जैसे मुन्नालाल ने सीखा ही नहीं था ओर यही हिम्मत और जज्बा वे अपने बच्चों में भी पैदा करना चाहते थे तभी तो जब उन के घर पहला पु़त्र जन्मा तो उस का नाम क्रांति रखा, 2 साल बाद जन्मे बेटे का नाम आंदोलन, तीसरे का संघर्ष, चैथे का हड़ताल और पांचवें का नेता. और साथ ही बेटों को भी यही शिक्षा दी कि जिस तरह तुम्हारे नाम अनोखे है उसी तरह काम भी ऐसे करना कि दुनिया तुम्हें याद करें.
अगर कभी लोगों को हक दिलवाने के लिए विरोध, आंदोलन, हड़ताल करनी पड़े और जाहिर सी बात है कि इस के लिए संघर्ष जो करना ही पड़ेगा तो कभी पीछे मत रहना बल्कि आगे बढ़ना. अगर कोई आगे आने को तैयार न हो जो खुद नेता की तरह सब की ढाल बन कर खड़े रहना. तुम्हारी हिम्मत देखकर लोग खुद तुम्हारा हाथ थामेंगे. लेकिन कभी भी अपने नामों के अर्थ को शर्मशार न करना.
नामों का इफैक्ट
जिस तरह मुन्नालाल ने अपने बच्चों का अनोखा नाम रखा ठीक उसी तरह आज अधिकांश लोग अपने बच्चों के नाम वैज्ञानिकों, साहित्याकारों, नेताओं आदि के नामों पर रखना पसंद करते हैं ताकि उन का बच्चा भी उस जैसा बने यानी उन का मानना है कि नामों का पर्सनैलिटी पर सीधा असर पड़ता है. भले ही लोगों की ऐसी धारणा है लेकिन हमेशा ऐसा हो जरूरी नहीं. अगर किसी ने अपने बच्चे का नाम होशियार सिंह रखा है जो जरूरी नहीं कि वो होशियार ही हो.
होशियार बनने के लिए आप को मन लगाकर पढ़ाई करनी होगी. इसलिए कोशिश करें कि अपने नाम के अर्थ को सार्थक बनाने की.