लगातार कई फिल्मों की असफलता के बाद बौक्स आफिस पर फिल्म ‘‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’’ ने सोनाक्षी सिन्हा के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. वैसे सोनाक्षी सिन्हा का दावा है कि उन्हें फिल्म की सफलता असफलता से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो ईमानदारी के साथ अपने बेहतरीन काम करती रहती हैं. इन दिनों बौलीवुड में महिला सशक्तिकरण की ही बातें ज्यादा की जा रही हैं. लोग उसी के इर्द गिर्द अपनी फिल्म की कहानियां भी गढ़ने लगे हैं. हाल ही में उनसे महिला सशक्तिकरण को लेकर हुई बातचीत इस प्रकार रही..
बौलीवुड में ‘महिला सशक्तिकरण’ को लेकर कुछ हो रहा है?
हो रहा है, पर गति बहुत धीमी है. कई फिल्में बन रही हैं, जहां नारी केंद्रीय पात्र होती है. यह एक छोटा सा कदम है. पर कुछ तो कदम बढ़ाया गया है. पिछले दो तीन वर्षो में कई नारी प्रधान फिल्में बनी हैं और दर्शकों ने इन फिल्मों को स्वीकारा भी है. मेरा मानना है कि जब तक आप दर्शकों को विविधतापूर्ण सिनेमा नहीं देंगे, तब तक उनकी रूचि कैसे पता चलेगी? यदि आप बच्चे को लौलीपौप और केक दें, तो उसे समझ में आएगा कि उसे क्या अच्छा लगा. जब तक आप उसे लौलीपौप नहीं देंगें, तब तक वह केक ही खाता रहेगा. जब आप उसे केक के अलावा लौलीपौप भी देंगे, तब उसे पता चलेगा कि उसे लौलीपौप भी पसंद है.
आपके अनुसार महिला सशक्तिकरण के लिए क्या होना चाहिए?
समानता बहुत जरूरी है. जब ईश्वर ने पुरुष और औरत को समान रूप से इस संसार में भेजा है, तो हम क्यों भेदभाव करें.
पर बौलीवुड में तो भेदभाव बहुत होता है. हीरो के मुकाबले हीरोइन को बहुत कम पारिश्रमिक राशि मिलती है?
आपने एकदम सही कहा. पर इस दिशा में भी कुछ कदम आगे बढ़े हैं. अब हमारी पारिश्रमिक राशि बढ़ी है. लेकिन हीरोइन को अच्छे पैसे तभी मिलेंगें, जब दर्शक हीरोईन की फिल्मों को ज्यादा पसंद करेंगे. जिस तरह से हीरो की फिल्मों को दर्शक स्वीकार करते हैं, उस तरह से जब तक वह हीरोइन की फिल्मों को स्वीकार नही करेंगे, तब तक हीरोइन के पैसे नहीं बढ़ेंगे.
‘राजी’ जैसी महिला प्रधान फिल्म को स्वीकार किया गया?
जी हां! दर्शक धीरे धीरे बदल रहे हैं. पर इसकी गति बहुत धीमी है. मैं उम्मीद करती हूं कि वह दिन बहुत जल्द आएगा, जब हीरो व हीरोइन दोनों को समान रूप से पारिश्रमिक राशि मिलेगी. वैसे यदि आप देखेंगे तो यह भेदभाव हर जगह है. फिर चाहे वह स्पोर्ट्स हो या कोई दूसरा क्षेत्र हो.
फेमीनिज्म को लेकर आपकी क्या सोच है?
मेरे लिए फेमीनिज्म काम तलब समान अधिकार है. मेरे लिए फेमीनिज्म का मतलब पुरुषों के खिलाफ बकबक करना, उनके खिलाफ आंदोलन करना नही है. पुरुषों की बुरायी करना या नीचा दिखाना मेरे लिए फेमीनिज्म नहीं है. जब तक आप समानता की लड़ाई सभ्य तरीके से लड़ रहे हैं, तब तक हम आपके साथ हैं. फेमीनिज्म या नारी स्वतंत्रता के नाम पर आंदोलन चलाते हुए पुरुषों के खिलाफ गालियां बकने के मैं खिलाफ हूं. मेरी राय में गाली गलौज करने से कोई बदलाव नहीं आएगा. बदलाव तभी आएगा, जब आप अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकें.
आप बायोपिक फिल्मों से दूरी बनाए हुए हैं?
आपने एकदम सही कहा. इन दिनों बायोपिक फिल्में काफी बन रही हैं. मगर मुझे अभी तक किसी बेहतरीन बायोपिक फिल्म का हिस्सा बनने का मौका नहीं मिला. मगर मैं करना चाहती हूं. बशर्ते बहुत अच्छी कहानी हो, जो कि पूरे विश्व तक पहुंचे.
आपके दिमाग में ऐसी कोई कहानी है?
मैं एक स्पोर्टस बायोपिक करना चाहती हूं. मैं तो खेल के मैदान पर कई खेल खेलते हुए बड़ी हुई हूं. मैं खुद स्पोर्ट्स वुमन रह चुकी हूं. मैं बौलीबाल खेलती थी. फुटबाल, बास्केटबाल, टेनिस, स्वीमिंग सब कुछ खेल चुकी हूं. इसके अलावा ऐसी कहानियों का हिस्सा बनना चाहती हूं, जो कि बहुत कम लोगों तक पहुंच पाती हैं. पर काफी प्रेरणा दायक होती हैं. मसलन- दशरथ मांझी की कहानी को लीजिए. उन्होंने अपनी मेहनत से एक पहाड़ को तोड़कर गांव वालों के लिए रास्ता बनाया था.
इसके अलावा कौन सी फिल्में कर रही हैं?
करण जोहर की फिल्म ‘कलंक’ की शूटिंग चल रही है. इसके बाद सलमान खान के साथ ‘दबंग 3’ की शूटिंग शुरू होगी. शायद मुदस्सर अजीज की अगली फिल्म भी करुं.