मध्य प्रेदेश ही वह राज्य है जहां से दलित उत्थान के नए नए लेकिन खुराफाती फार्मूले निकल रहे हैं इनमे से एक ताजातरीन  है कि सरकार अब दलित युवतियों को पंडित पुरोहित बनाएगी इस बाबत राज्य के अनुसूचित कल्याण विभाग ने नक्शा बनाकर उसे पास भी कर दिया है । इस हैरतअंगेज योजना के तहत दलित युवतियों को चयनित कर उन्हे बाकायदा कर्मकांडो का प्रशिक्षण दिया जाएगा उम्मेदवार को बस दो मामूली शर्तों पर खरा उतरना है पहली यह कि वह दसवी पास हो और दूसरी उसका मध्य प्रदेश का मूल निवासी जरूरी होना है ।

विभाग द्वारा इस की वजहें भी बड़ी दिलचस्प बताईं जा रही हैं कि सूबे मे पंडित कम हो चले हैं और जो हैं वो जातिगत भेदभाव के चलते छोटी जाति बालों के यहाँ शादी विवाह मुंडन सहित दूसरे कर्म कांड कराने नहीं जाते शूद्र ब्राह्मणो के मोहताज ना रहें इसलिए उनकी ही जातियों की लड़कियों को पंडिताई सिखाई जाएगी और प्रशिक्षण के दौरान उन्हे एक हजार रु महीना प्रोत्साहन राशि दी जाएगी । इन दिनो राज्य में सामाजिक समरसता का बड़ा हल्ला है जिसके तहत दलितों को सवर्णों जैसी फीलिंग कराने तमाम टोटके अपनाए जा रहे हैं ।

हकीकत कितनी साजिश भरी है इस पर विचार करें तो सरकार और उसे हांक रहे संघ और संघों पर तरस ही आता है । पंडितों की कमी का कोई आंकड़ा सामाजिक कल्याण विभाग या सरकार ने पेश नहीं किया है क्योंकि यह सरकारी पद नहीं है ना ही यह कोई बता रहा न ही बता पाएगा कि क्या अब तक ब्राह्मण पंडित कर्मकांडो के लिए दलितों के यहाँ जाते ही थे और जैसा कि यह विभाग खुलेआम मान रहा है कि कई जगह पंडित  जातिगत भेदभाव के कारण दलितों के यहाँ नहीं जाते तो उनके खिलाफ क्यों काररवाई नहीं की गई , इस सवाल का जबाब बेहद साफ है कि कर्मकांड कोई संवैधानिक या कानूनी बाध्यता नहीं है ।

अब इसे बतौर बाध्यता लादने दलित लड़कियों को पंडित सरकारी तौर पर बनाया जा रहा है जिससे एक बात और स्पष्ट हो जाए कि बड़ी और छोटी जाति बालों के पंडे भी उनकी जाति के हिसाब से होंगे यानि शूद्र को शूद्र ही दिखाने यह षड्यंत्र रचा जा रहा है ,क्या प्रशिक्षित दलित जाति की पंडताइन को बड़ी जाति बाले अपने घर बुलाकर उसके पैर छुएंगे आदर सत्कार करेंगे जाहिर है नहीं तो ये स्वांग क्यों ? यह है असल वजहें – दरअसल मे भगवा खेमा एक तीर से 2 शिकार कर रहा है जिनमे तात्कालिक यह है कि दलित तबका कर्मकांडों मे उलझा रहे जब ओरिजनल पंडित नहीं जाते तो उसकी ही जाति मे पंडित पैदा कर दिये जाएँ हालांकि हर एक जाति का अपना अलग पंडा है यह बात सामाजिक कल्याण , अनुसूचित जाति कल्याण या दूसरे तमाम कल्याण विभाग जानते हैं पर मंशा चूंकि  दलितों को हिन्दू कर्मकांडों मे फसाये रखने की है इसलिए उन्हे तिलक धारी पंडितों के जरिये ट्रेनिंग दिलबाने सरकारी तौर पर इंतजाम किए जा रहे हैं जिसमे कल के ( और आज के भी ) इन अछूतो मे  उनकी छोटी जाति के होने का   एहसास धार्मिक रूप से और बढ़े ।

दीर्घकालिक वजह जो ज्यादा अहम है वह यह है कि कैसे दलितों को खुद अपनी मर्जी से आरक्षण छोडने राजी या मजबूर किया जाए । साजिश पहले धीरे धीरे यह बताने जताने की है कि देखो तुम्हारे खपरैलों छपरेलों से भी यज्ञ हवन का धुआँ निकलने लगा है तुम्हारे यहाँ गौरी शंकर विराज गए हैं और मंत्रोच्चार होने लगा है तो फिर क्यों आरक्षण की आंबेडकर की पहनाई माला गले में लटकाए घूम रहे हो इसी के चलते तुम्हारे बड़े भाई यानि अनारक्षित जाति बाले तुम्हें लतियाते रहते हैं इसलिए बराबरी पर आने आरक्षण त्याग दो । पंडावाद सालों पहले दलितों को दबा कुचला रखने उन्हे जानवर समझता था अब मानव मात्र मानने तैयार हो रहा है क्योंकि इस समुदाय के पास भी पैसा दिखने लगा है और इस समुदाय के लोग भी जब तक ब्राह्मण पंडित के पैर नहीं छु लेते ,उसे दक्षिणा नहीं चढ़ा देते उन्हे भी चैन नहीं पड़ता वजह हिन्दू धर्म ग्रन्थों मे निर्देश बहुत स्पष्ट हैं कि ब्राह्मण ही तुम्हें तार सकता है ।

इस गुलाम मानसिकता को भुनाने मध्य प्रदेश की यह अनूठी पहल जल्द ही सरकारी उपलब्धियों में भी शुमार होगी कि देखो  देश का पहला राज्य जिसमे सामाजिक समरसता के तहत इतनी दलित पंडिताइन दीं ।मुख्य धारा में शामिल होते दलितों को दूर रखने के इस नायाब तरीके से पिछड़े भी खुश होंगे कि वे अब घोषित तौर पर दलित नहीं रहे क्योंकि उनके यहाँ पुजा पाठ और कर्म कांड ब्राह्मण पंडित ही कराएगा यह वह दबंग वर्ग है जो तबीयत से दान दक्षिणा देता नहीं बल्कि लुटाता है ।

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