एक साल पहले उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसलें में कहा कि जन प्रतिनिध्यिों और सरकारी वेतन और मानदेय पाने वालों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढना चाहिये. कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि अगले शिक्षा सत्रा से यह लागू किया जाये. कोर्ट ने बहुत सख्त लहजे में कहा था जो सरकारी नौकर ऐसा न करे उसके खिलाफ दंडात्मक कदम उठाये जाये. कोर्ट ने कहा जिनके बच्चें कान्वेंट स्कूल में पढे वहां की फीस के बराबर रकम उनके वेतन से काट ली जाये. ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट और प्रमोशन कुछ समय के लिये रोक लिया जाये. कोर्ट ने सरकार को 6 माह का वक्त देते कारवाही रिपोर्ट पेश करने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि जब तक सरकारी नौकरों और जन प्रतिनिध्यिो के बच्चें सरकारी स्कूलों में नहीं पढेगे वहां के हालात नहीं सुधरेगे. उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने इस मामलें में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई. दूसरा शिक्षा सत्रा शुरू होने वाला है इस मामलें में सरकार ने कुछ भी नहीं किया है.
उत्तर प्रदेश में सभी विरोधी दल भी इस मसले पर मौन है. क्योकि यह आदेश उन पर भी लागू हो सकता है. सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के नेता और मैगसैसे पुरस्कार विजेता समाजसेवी डाक्टर संदीप पांडेय ने इस मुददे को 2017 के विधनसभा चुनावों में उठाने का संकल्प लिया है. वह कहते है ‘चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिये यह जरूरी हो कि वह खुद सरकारी स्कूल में पढा हो और उसके बच्चे भी वहां पढते हो. इस तरह के बदलाव से ही चेतना जगेगी. दूसरी बात केवल सरकारी स्कूल ही नहीं जनप्रतिनिध्यिों और सरकारी वेतन पाने वाले के लिये यह भी जरूरी हो कि वह अपना इलाज भी सरकारी अस्पताल में कराये. लखनउ में गांधी प्रतिमा पर फ्यूचर औफ इंडिया मंच के मजहर आजाद ने 6 दिन का धरना दिया. इसके बाद भी सरकार ने मामले का किसी तरह से कोई संज्ञान नहीं लिया तब औल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के एसआर दारापुरी ने उनका अनशन तुडवा दिया.
सोशलिस्ट पार्टी इंडिया विधनसभा चुनावों में इस मुददे तो चुनावी मुददा बनाने की तैयारी में लगी है. दरअसल इंटर यानि 12 वीं कक्षा तक की सरकारी शिक्षा व्यवस्था बहुत खराब हो गई है. सरकार ने बहुत सारे काम इसको सुधरने के लिये किये उसके बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड रहा है. आज प्राइमरी स्कूलों में बच्चों और टीचरों को हर तरह की सुविध हासिल है. उनको सम्मानजनक वेतन और दुसरी सुविधयें मिल रही है. हालात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढाने वाले टीचर तक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढाना नहीं चाहते. सरकार और सरकारी नौकर कोई भी दावा करे पर उनको इन स्कूलों की योग्यता पर भरोसा नहीं है इस वजह से वह अपने बच्चों को यहां पढाना नहीं चाहते. केवल एक पार्टी की बात नहीं है सभी पार्टियों को इस मुददे का खतरा पता है. जिस वजह से ही सत्ता पक्ष के साथ ही साथ विपक्ष भी चुप है.