तृषा मलय के बेरुखी भरे व्यवहार से बहुत अचंभित थी. जब देखो तब बस एक ही रट लगाए रहता कि तृषा मैं तलाक चाहता हूं, आपसी सहमति से. ‘तलाक,’ वह सोचने को मजबूर हो जाती थी कि आखिर मलय को हो क्या गया है, जो हर समय तलाकतलाक की ही रट लगाए रहता है. मगर मलय से कभी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की. सोचती खुद ही बताएंगे कारण और फिर चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाती थी. ‘‘मलय, आ जाओ खाना लग गया है,’’ डाइनिंग टेबल सैट करते हुए तृषा ने मलय को पुकारा तो वह जल्दी से तैयार हो कर आ गया.
तृषा ने उस की प्लेट लगा दी और फिर बड़े ही चाव से उस की ओर देखने लगी. शायद वह उस के मुंह से खाने की तारीफ सुनना चाहती थी, क्योंकि उस ने बड़े ही प्यार से मलय की पसंद का खाना बनाया था. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वह किसी प्रकार खाने को निगल रहा हो. चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे वह अंदर ही अंदर घुट सा रहा हो. किसी प्रकार खाना खत्म कर के उस ने जल्दी से अपने हाथ धोए. तभी तृषा ने उस का पर्स व रूमाल ला कर उसे दे दिए.
‘‘तुम सोच लेना, जो मैं ने कहा है उस के विषय में… और हां समय पर मोहक को लेने स्कूल चली जाना. मैं गाड़ी भेज दूंगा. आज उस की बस नहीं आएगी,’’ कहता हुआ वह गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. ‘आजकल यह कैसा विरोधाभास है मलय के व्यवहार में… एक तरफ तलाक की बातें करता है तो दूसरी ओर घरपरिवार की भी चिंता लगी रहती है… न जाने क्या हो गया है उसे,’ सोचते हुए तृषा अपने बचे कामों को निबटाने लगी. लेकिन उस का मन किसी और काम में नहीं लग रहा था. क्या जरा भी प्यार नहीं रहा है उस के मन में मेरे लिए जो तलाक लेने पर आमादा है? क्या करूं… पिछले 12 वर्षों से हम एकदूसरे के साथ हंसीखुशी रह रहे थे… कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे मुझ से कोई शिकायत है या वह मुझ से ऊब गया है.
हर समय तो उसे मेरी ही चिंता लगी रहती थी. कभी कहता कि लगता है आजकल तुम अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रख रही हो… कितनी दुबली हो गई हो, यह सुन कर खुशी से उस का मन झूमने लगता और इस खुशी में और वृद्धि तब हो गई जब विवाह के 3 वर्ष बाद उसे अपने शरीर में एक और जीव के आने की आहट महसूस होने लगी. उस ने बडे़ ही शरमाते हुए मलय को यह बात बताई, तो उस ने खुशी से उसे गोद में उठा लिया और फिर गोलगोल घुमाने लगा.
मोहक के जन्म पर मलय की खुशी का ठिकाना न था. जब तब उसे आगाह करता था कि देखो तृषा मेरा बेटा रोए नहीं, मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. तब उसे हंसी आने लगती कि अब भला बच्चा रोए नहीं ऐसा कैसे हो सकता है. वह मोहक के लिए मलय का एकाधिकार देख कर खुश भी होती थी तथा चिंतित भी रहती थी और फिर तन्मयता से अपने काम में लग जाती थी. ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मलय अब मुझ से मुक्ति पाना चाहता है. तो क्या अब मेरे साथ उस का दम घुट रहा है? अरे, अभी तो विवाह के केवल 12 वर्ष ही बीते हैं. अभी तो जीवन की लंबी डगर हमें साथसाथ चलते हुए तय करनी है. फिर क्यों वह म्यूच्युअल तलाक की बात करता रहता है? क्यों उसे मेरे साथ रहना असहनीय हो रहा है? मेरे प्यार में तो कोई भी कमी नहीं है… मैं तो आज भी उस की वही पहले वाली तृषा हूं, जिस की 1-1 मुसकान पर मलय फिदा रहता था. ‘कभी मेरी लहराती काली जुल्फों में अपना मुंह छिपा लेता था… अकसर कहता था कि तुम्हारी झील सी गहरी नीली आंखों में डूबने को जी चाहता है, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा यह नाजुक बदन मुझे अपने आगोश में लपेटे लिए जा रहा है… तुम्हारे जिस्म की मादक खुशबू में मैं अपने होशोहवास खोने लगता हूं.
इतना टूट कर प्यार करने वाला पति आखिर तलाक क्यों चाहता हैं? नहींनहीं मैं तलाक के लिए कभी राजी नहीं होऊंगी, आखिर मैं ने भी तो उसे शिद्दत से प्यार किया है. घर वालों के तमाम विरोधों के बावजूद जातिपांति की ऊंचीऊंची दीवारों को फांद कर ही तो हम दोनों ने एकदूसरे को अपनाया है,’ तृषा सोच रही थी. अतीत तृषा की आंखों के सामने किसी चलचित्र की भांति चलायमान हो उठा…
‘‘पापा, मैं मलय से विवाह करना चाहती हूं.’’ ‘‘मलय, कौन मलय?’’ पापा थोड़ा चौंक उठे.
‘‘अपना मलय और कौन? आप उसे बचपन से जानते हैं… यहीं तो भैया के साथ खेलकूद कर बड़ा हुआ है. अब इंजीनियर बन चुका है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और एकसाथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं,’’ तृषा ने दृढ़ता से कहा.
पिता मनोज क्रोध से तिलमिला उठे. वे अपने क्रोध के लिए सर्वविदित थे. कनपटी की नसें फटने को आ गईं, चेहरा लाल हो गया. चीख कर बोले, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतनी बड़ी बात कहने की.. कभी सोचा है कि उस की औकात ही क्या है हमारी बराबरी करने की? अरे, कहां हम ब्राह्मण और वह कुर्मी क्षत्रिय.