जम्मूकश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाने को मजबूर होना पड़ना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असफलताओं की सूची में एक और क्रमांक है. जैसे नोटबंदी, जीएसटी, स्वच्छ भारत, कालाधन, अच्छे दिन, सब का साथ सब का विकास आदि कर्मों व नारों से कुछ नहीं हुआ वैसे ही पीपल्स डैमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी के साथ मिल कर जम्मूकश्मीर में बनाई गई सरकार से नरेंद्र मोदी कुछ हासिल न कर पाए. साझा सरकार के दौरान राज्य में अशांति रही और विघटनवादी बढ़ते रहे. मोदी सरकार ने राष्ट्रपति से संस्तुति ले कर वहां राष्ट्रपति शासन लगवा दिया है. पर इस से कुछ होगा नहीं क्योंकि अब सेना ज्यादतियां करेगी तो अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां बनेंगी.

जम्मूकश्मीर कमजोर नींव पर खड़ा है. 1947 से सरकारों ने इस को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है. भाजपा जब सत्ता में न थी तब उस ने काफी होहल्ला मचाया था कि कांग्रेस सरकार कमजोर दिल की है. पर जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के साथ मिल कर वहां सरकार बनाई तो भी कश्मीर की जनता को भरोसा नहीं दिलाया जा सका कि पूरा भारत उस को बराबर का महत्त्व देता है और वह इस में सब के साथ रह कर ही खुशहाल रह सकती है. अगर धर्म के नाम पर कश्मीरियों को बहकाया जा रहा है तो इस का दोष भी भाजपा को दिया जाएगा क्योंकि वही पूरे देश में हिंदू पौराणिक धर्म लाने की बात करती रहती है. जब केंद्र की सरकार धर्म के इशारे पर चलेगी तो कश्मीर की जनता कैसे धर्म को त्याग कर आर्थिक विकास की खातिर विरोध करना छोड़ दे.

कश्मीर का इतिहास बहुत ही उलझा हुआ है. हो सकता है उसे सुलझाने में सदियां बीत जाएं और वहां की जनता न दिल्ली के और न ही किसी और के साथ चलना चाहे. यूरोप के कितने ही देशों में आज तमाम तकनीक, आर्थिक विकास, बराबरी के सिद्धांतों के रातदिन के रागों के बावजूद इतिहास की कब्रें खोद कर अपनी अलग राष्ट्रीयता की मांग की जा रही है. भारत में तो धर्म के अनुसार ही देश का विभाजन हुआ और उसी आधार पर हम पाकिस्तान को शत्रु

मान रहे हैं. कश्मीरियों को समझाना कि धर्म से विकास संभव नहीं, बहुत मुश्किल है. राष्ट्रपति शासन लगाने का लाभ भाजपा ने यदि देश के अन्य हिस्सों के चुनावों में उठाया तो बात और बिगड़ेगी. देश की रगों में वैसे भी विषैले कीटाणु भरे हैं और यदि ऐसे वायरस ज्यादा इंजैक्ट किए गए तो देश की रहीसही इज्जत भी धूल में मिल जाएगी.

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