मध्य प्रदेश का सब से छोटा जनपद है दतिया. यह झांसीग्वालियर राष्ट्रीय मार्ग पर झांसी से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दतिया में एक सातमंजिला महल है जिसे ‘पुराना महल’ के नाम से जाना जाता है. इस महल को ओरछा के विख्यात बुंदेला राजा वीर सिंह जू देव बुंदेला ने आज से लगभग 4सौ वर्ष पूर्व बनवाया था. इस महल के दरवाजों पर न  तो पट हैं, न पानी व प्रकाश  की कोई व्यवस्था. कहते हैं, निर्माण के बाद इस में राजपरिवार का या अन्य कोई भी व्यक्ति नहीं रह सका. पुराने महल के संबंध में आज भी अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं. एक किंवदंती के अनुसार, इस महल में भूमि के नीचे 7 मंजिलें हैं. पूरा महल 9 खंडों का है. 7 खंड भूमि के ऊपर और 2 खंड भूमि के नीचे हैं.

महल के भूतल से नीचे की मंजिलों में जाने के लिए सीढि़यां बनी हैं. किंतु नीचे जाने का रास्ता अब बंद कर दिया गया है. जब खुला था, तब भी किसी ने नीचे जाने का साहस नहीं किया. वीर सिंह विख्यात बुंदेला नरेश मधुकर शाह के चौथे पुत्र थे. 1592 में मधुकर शाह की मृत्यु के बाद उन के सब से बडे़ बेटे रामशाह ने मुगलों से संधि कर ओरछा राजगद्दी प्राप्त की थी और वीर सिंह ने दतिया के निकट बड़ौनी की छोटी सी जागीर. वीर सिंह बड़ा महत्त्वाकांक्षी था. वह बड़ौनी की छोटी सी जागीर से संतुष्ट नहीं था. उस ने सेना एकत्र की और अपनी बहादुरी और चतुराई से एक बड़े साम्राज्य का स्वामी बन बैठा. मुगल सम्राट ने उसे परास्त करने के अनेक प्रयास किए, किंतु हमेशा असफल रहे. महाराजा वीर सिंह अकबर का शत्रु था, किंतु उस के बेटे सलीम का अच्छा मित्र था. अकबर और सलीम के मतभेद बढ़ने के साथ ही महाराजा वीर सिंह और सलीम की मित्रता भी बढ़ी.

सलीम बादशाह अकबर के सेनापति अबुलफजल का कट्टर विरोधी था तथा उस की हत्या करा देना चाहता था. यह कार्य महाराजा वीर सिंह ने किया. अबुलफजल दक्षिण के विजय अभियान के बाद अपनी विशाल सेना के साथ लौट रहा था. उस ने रास्ते में नरवर के पास पड़ाव डाला. वीर सिंह ने अबुलफजल पर आक्रमण कर दिया. अबुलफजल की हत्या कर उस का सिर शहजादे सलीम के पास भेज दिया. इस से सलीम और वीर सिंह के संबंध और भी प्रगाढ़ हो गए. अबुलफजल की हत्या से अकबर बौखला उठा. उस ने वीर सिंह को परास्त करने के लिए एक विशाल सेना भेजी. सेना ने वीर सिंह को बुरी तरह हराया. किंतु वीर सिंह ने साहस नहीं छोड़ा व कुछ ही समय में उन सभी स्थानों पर पुन: कब्जा कर लिया.

इसी बीच शहजादा सलीम दतिया आया. उस ने वीर सिंह से भेंट की. 1605 में अकबर की मृत्यु के पश्चात सलीम जहांगीर के नाम से दिल्ली का बादशाह बना तो उस ने वीर सिंह से मित्रता निभाई और मुगल दरबार में उसे तीन हजारी मनसब प्रदान किया. वीर सिंह जू देव महल का निर्माण महाराजा वीर सिंह तथा शहजादे सलीम की मित्रता की एक यादगार के रूप में किया गया. यही कारण था कि इस महल के निर्माण के लिए दतिया के पश्चिमी भाग के उसी टीले को चुना गया, जहां कभी दोनों मित्र एकदूसरे से बुंदेलखंड की धरती पर पहली बार मिले थे. इस महल के निर्माण के बाद दतिया में अनेक इमारतों का निर्माण हुआ. अत: आगे चल कर यह पुराने महल के नाम से प्रसिद्ध हुआ. दतिया का पुराना महल मध्यकाल की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. यह बुंदेलखंड मध्य प्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरे भारत का गौरव है. एक इतिहासकार ने तो इसे मध्यकाल की सर्वोत्तम इमारत कहा है.

इस के निर्माण में लगभग 9 वर्ष का समय लगा तथा 33 लाख रुपए खर्च किए गए. इस महल का एक भाग अपूर्ण है, जिस से महसूस होता है कि महाराजा वीर सिंह ने इस का निर्माण अपने अंतिम समय में कराया था. फलत: उन की मृत्यु के बाद यह महल पूरा नहीं हो सका. इस महल का निर्माण आसपास के पत्थरों और चूने से कराया गया था. यह एक आश्चर्य का विषय है कि इस महल में कहीं भी लकड़ी या लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है. स्वस्तिक के आकार के इस सतखंडे महल में प्रत्येक खंड पर 4 चौक हैं तथा बीच में एक मंडप. महल की सभी छतों पर चित्रकला तथा पत्थर पर उकेरी गई कलाकृतियां मनमोहक हैं. महल का पूर्वी भाग सर्वाधिक भव्य तथा आकर्षक है. महल का प्रवेशद्वार भी इसी भाग में स्थित है. महल का पश्चिमी भाग महल का पिछला भाग कहा जा सकता है. इस भाग में लगी पत्थर की जालियों की नक्काशी अत्यंत आकर्षक है.

इस महल की एक विशेषता यह है कि यह चारों तरफ से एकजैसा है. इस में एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए अनेक रास्ते हैं. अत: पर्यटक अकसर यहां रास्ता भटक जाते हैं. वर्तमान में वीर सिंह जू देव महल को पुरातत्त्व विभाग का संरक्षण प्राप्त है. इस विभाग द्वारा इस के कुछ स्थानों की मरम्मत भी कराई गई है. 1925 में ऊपरी मंजिल का एक भाग बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त हो गया था जिसे ठीक करा दिया गया है परंतु पत्थर को तराश कर लगाए गए शहतीरों में वह सफाई नहीं आ पाई है जो मूल शहतीरों में थी. महल की वास्तविकता जो भी हो, किंतु यह सत्य है कि यह महल मध्यकाल की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. इसे भारत की श्रेष्ठ इमारतों में गिना जाता है.

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