मक्खी को तो अपने आसपास मंडराते आप ने देखा ही होगा. यह एक ऐसा जीव है, जिस से हर कोई नफरत करता है. पास आते ही उसे भगाने का मन करता है लेकिन मक्खी लाख भगाने के बावजूद लगातार आसपास भिनभिनाती रहती है. मक्खी ढीठ होती है. उसे कितना भी भगाओ, फिर वापस आ जाती है. मक्खी में गजब की फुरती होती है. आप उसे मारने या भगाने के लिए जैसे ही हाथ उठाएंगे, उस से पहले ही वह छूमंतर हो जाएगी और आप हाथ मलते रह जाएंगे. छोटी सी मक्खी के दरअसल कईर् जटिल और विचित्र अंग होते हैं. मक्खी का शरीर मुख्यतया 3 भागों में बंटा होता है, सिर, छाती और पेट. मक्खी की छाती से दोनों तरफ 3-3 टांगें निकली होती हैं. प्रत्येक टांग 5 हिस्सों में बंटी होती है. टांग का आखिरी हिस्सा पैर होते हैं, जिन पर नीचे की तरफ 2 पंजे होते हैं. इन पंजों के नीचे छोटीछोटी गद्दियां होती हैं जिन से हमेशा लार जैसा चिपचिपा द्रव निकलता रहता है. इस चिपचिपे द्रव के कारण मक्खी कांच जैसी सतह पर उलटी लटकी रह सकती है और आसानी से टंगीटंगी ही चल भी सकती है.
मक्खी उलटीसीधी, आड़ीतिरछी भी उड़ लेती है. वह हवा के वेग और दिशा के बारे में अत्यधिक सतर्क रहती है. उस के सिर पर 2 ऐंटेना होते हैं जो उसे हवा की स्थिति से अवगत कराते हैं. इन से संकेत मिलते ही वह अनुकूल दिशा की ओर अपना रुख कर लेती है ताकि विपरीत परिस्थितियों का सामना करने से बचा जा सके. मक्खी में सूंघने की क्षमता भी जबरदस्त होती है. कोई चीज बनी नहीं कि वह हाजिर, मानो उस वस्तु के बनने का ही इंतजार कर रही थी. आप सोचते होंगे कि उस की नाक तो है नहीं, फिर उसे गंध का एहसास कैसे होता है उस के ऐंटेना ही नाक का कम करते हैं. ऐंटेना से गंध पा कर वह अपने भोजन की तलाश में चल देती है.
मक्खी में एक और विचित्र बात होती है, उस की देखने की शक्ति. उस की आंखें सिर पर 2 बड़ीबड़ी आकृतियों के रूप में दिखती हैं. इन में से हर आंख हजारों छोटेछोटे लैंसों से मिल कर बनी होती है और प्रत्येक लैंस सामने दिखाई देने वाली वस्तु का अलगअलग थोड़ा सा चित्र ग्रहण करता है, सभी लैंसों के अलगअलग मिले दृश्यों को मिला कर ही मक्खी पूरा दृश्य देख पाती है. मक्खी में सिर्फ 2 आंखें ही नहीं होतीं. सूक्ष्मदर्शी से देखा जाए तो उस के सिर पर सीधे ऊपर की तरफ देखने वाले 3 साधारण नेत्र भी दिखाई देते हैं. मक्खी का शरीर अत्यधिक लोचदार होता है. शायद इस की वजह काइटिन और प्रोटीन तत्त्व हैं, जिन से उस का शरीर बना होता है. मक्खी एक घंटे में 6 हजार बार अपने पंख फड़फड़ाती है.
मक्खी को जहां एक ओर मीठे और स्वादिष्ठ व्यंजन पसंद हैं, वहीं उसे गंदगी से भी कोई परहेज नहीं है. जीवित जीव हों या मरे हुए, वह उन के जिस्म पर बैठ कर समानरूप से आनंदित होती है. उसे परहेज है तो साफसुथरी जगह से. साफसुथरा वातावरण उसे रास नहीं आता. मक्खी अन्य उड़ने वाले कीटपंतगों की तुलना में बहुत धीमे उड़ती है. उस के उड़ने की अधिकतम गति 7-8 किलोमीटर प्रति घंटा होती है, लेकिन आमतौर पर उसे अधिक लंबी दूरी की यात्रा करने की जरूरत नहीं होती. मक्खी किसी भी वस्तु को चटखारे ले कर खाती है. प्रकृति ने उस के पैरों में स्वाद कलिकाएं प्रदान की हैं. किसी भी वस्तु पर बैठते ही उसे यह पता चल जाता है कि वह खट्टीमीठी, बासीताजी या जीवितमृत है वस्तु के तरल, ठोस या लिसलिसे होने का पता भी स्वाद कलिकाएं लगा लेती हैं. मक्खी के दांत नहीं होते. इसलिए वह अपना भोजन चबाती नहीं, केवल चूसती है. चूसने का काम ‘रोस्ट्रम’ करता है. यह ऐंटेना के नीचे की ओर ट्यूब के आकार का होता है. मक्खी विशिष्ट तरीके से भोजन ग्रहण करती है. वह भोजन को सीधे मुंह में नहीं भरती. भोजन करने से पूर्व अपने शरीर से लार और पाचक रस उस पर टपकाती है. लार और पाचक रस मिल कर भोजन को घोल देते हैं. जब भोजन घुल जाता है तो वह उसे चूस लेती है.
मक्खी हर समय अपनी टांगें आपस में रगड़ती रहती है. इस प्रकार वह अपने शरीर को साफ करने का प्रयास करती है. मच्छर की भांति मक्खी काट नहीं सकती, मुंह से तो कदापि नहीं. मक्खी अपने अंडे देने के लिए गंदी जगह तलाशती है. कूड़ेकचरे के ढेर उस के रहने के स्थल हैं और वहीं वह अपने अंडे भी देती है. एक बार में मक्खी सौ अंडे देती है, यह अपने जीवन में 10 बार अंडे देती है. अंडे से लारवा बनने में आधे दिन से एक दिन तक का समय लगता है. कुछ दिन में ये लारवा ‘प्यूपा’ बन जाते हैं, जिन में से मक्खी बन कर निकलती है. मक्खी अपनेआप में निर्दोष होती है. उस के शरीर में कोई रोगाणु नहीं पनपता. वह तो केवल इधरउधर के रोगाणुओं की संवाहक मात्र होती है. उदाहरण के लिए, किसी गंदगी से उठ कर जब वह किसी खाद्य सामग्री पर बैठती है तो गंदगी में व्याप्त रोगाणु स्वच्छ खाद्य सामग्री को भी दूषित कर देते हैं. मक्खी दिखने में छोटी भले ही हो, पर वह बड़ी खतरनाक होती है. वह कई जानलेवा बीमारियां फैलाती है. टाइफाइड, तपेदिक, हैजा, दस्त जैसे घातक रोगों के रोगाणु मक्खी ही अपने साथ लाती है.
मक्खी से बचने का एकमात्र उपाय घर और भीतर दोनों जगह साफसफाई रखना है. घर की खिड़कियों और रोशनदानों में बारीक जाली लगवानी चाहिए ताकि मक्खी घर में प्रवेश न कर सके. मक्खी से पेय पदार्थों और खाद्य सामग्रियों को बचाना नितांत आवश्यक है. दूध को जाली से ढक कर रखें. खाद्य सामग्री को भी कपड़े से ढक कर रखें ताकि मक्खियां रोगाणु न फैला सकें. जिन ठेलों पर कटे फल, चाटपकौड़ी या अन्य खानेपीने का सामान खुला बिकता हो, वहां से कोई चीज न खरीदें. मनुष्य मक्खियों से काफी परेशान है. मक्खियों को दूर रखने के लिए उस ने कुछ साधन, उपकरण और रसायन आदि भी बनाए हैं. ‘प्लाई पेपर’ में मक्खियां आ कर चिपक जाती हैं, फिर उड़ नहीं पातीं. कुछ ट्यूबलाइटें भी बाजार में मिलती हैं, जिन की विशिष्ट किरणों के कारण मक्खियां वहां नहीं फटकतीं. वैसे फिनाइल डाल कर घर में पोंछा लगाने से भी काफी हद तक मक्खियों से बचा जा सकता है.
पहले डीडीटी का छिड़काव मक्खियों का सफाया करने का कारगर उपाय था लेकिन मक्खियां भी कोई कम नहीं थीं, उन्होंने डीडीटी के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता प्राप्त कर ली. परिणामस्वरूप तरहतरह के नए रसायनों का आविष्कार मक्खियों का खात्मा करने के लिए हुआ लेकिन अभी भी मक्खियों का सफाया करना इतना आसान नहीं है.