अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 25 फरवरी को 41वें संस्करण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर के उन छात्रों से रूबरू थे जिन्हें इस साल 10वीं और 12वीं कक्षाओं की बोर्ड की परीक्षाएं देनी थीं. इस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने बोर्ड परीक्षा से संबंधित कई सुझाव देते हुए छात्रों को यह कहते आश्वस्त भी किया था कि वे परीक्षा को ले कर किसी तरह की चिंता न करें, रातरातभर जाग कर उन्होंने जो पढ़ाई की है वह बेकार नहीं जाएगी.  नरेंद्र मोदी ने अपने युवा मित्रों को संबोधित करते यह भी कहा था कि वे परीक्षा का ज्यादा तनाव न पालें और इसे बोझ की तरह न लें.

कुछकुछ आदतन दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कार्यक्रम के उत्तरार्ध में हलके लहजे में यह भी कहा था कि महात्मा बुद्ध कहा करते थे, ‘अत्यादीपो भव’ यानी आप अपने मार्गदर्शक बन जाइए. बहैसियत प्रधानमंत्री उन्हें संतोष होगा कि युवा दोस्तों के जीवन के महत्त्वपूर्ण पल पर वे उन के साथ थे और मन की बातें  उन के साथ गुनगुना रहे थे.

क्रंदन बनी गुनगुनाहट

उबाऊ प्रवचन की तरह के कार्यक्रम ‘मन की बात’ का यह एपिसोड थोड़ाबहुत पसंद किया गया था, क्योंकि यह बोर्ड के छात्रों की कड़ी परीक्षा से संबंधित था. लेकिन देश के शीर्ष पद पर बैठे नरेंद्र मोदी की बातें कितनी खोखली साबित हुईं, यह एक महीने बाद ही 25 मार्च को उजागर हो गया जब यह खबर आई कि केंद्र सरकार के अधीन सीबीएसई (सैंट्रल बोर्ड औफ सैकंडरी एजुकेशन) द्वारा आयोजित 10वीं की परीक्षा का गणित का और 12वीं की परीक्षा का अर्थशास्त्र का परचा दिल्ली में लीक हो गया है. अर्थशास्त्र का पेपर 26 मार्च को और गणित का 28 मार्च को हुआ था.

26 मार्च को अर्थशास्त्र का परचा सोशल मीडिया पर लीक हुआ था तो किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. वजह सिर्फ इतनी नहीं थी कि आम लोग सीबीएसई को वैसे ही बहुत विश्वसनीय संस्था मानते हैं बल्कि यह भी थी कि आएदिन देशभर में अब ऐसा कुछ न कुछ होता रहता है जिस में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां और पेपर लीक हो रहे होते हैं. लिहाजा, 12वीं का एक परचा लीक हो गया तो कौन सा पहाड़ टूट गया.

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लेकिन पहाड़ टूटा ही था खासतौर से उन छात्रों और अभिभावकों के सिर पर जो सालभर इस कड़ी परीक्षा के लिए दिनरात एक करते हैं. बोर्ड के इम्तिहान जिंदगी के सब से कड़े इम्तिहान से भी ज्यादा अहम होते हैं. अभिभावक बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च करते हैं इस उम्मीद के साथ कि बच्चा अच्छे नंबरों से पास हो जाएगा और उस का कैरियर व जिंदगी दोनों संवर जाएंगे. पूरी जिंदगी इस परीक्षा में प्राप्त अंकों पर निर्भर रहती है.

12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर वाकई लीक हुआ था या यह बात आईगई हो जाती, लेकिन जब 28 मार्च को 10वीं के गणित के पेपर लीक होने की खबर जंगल की आग की तरह फैली तो किसी के असमंजस में रहने की कोई वजह नहीं रह गई थी. यह पेपर भी सोशल मीडिया के जरिए लीक और वायरल हुआ था.  व्हाट्सऐप पर लिए गए स्क्रीनशौट बता रहे थे कि नामुमकिन कुछ नहीं है. सीबीएसई अपनी विश्वसनीयता और गोपनीयता खोते अपनी साख पर बट्टा लगवा चुका है.

28 मार्च को ही जब परीक्षा पेपर लीक मामले को ले कर इन परीक्षाओं में शामिल हुए कोई 28 लाख छात्रों के भविष्य को ले कर आशंकाएं जताई जाने लगीं तो एक और खबर ने पेपर लीक होने की पूरी तरह पुष्टि कर दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को डांट लगाई है और इस मामले में सख्त कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं.

अब तक इस गंभीर मसले पर ऊंघ रहे प्रकाश जावड़ेकर को होश आया कि सीबीएसई उन के मंत्रालय के अधीन आता है, लिहाजा, उन्होंने पहली दफा सामने आ कर कहा कि पेपर लीक होने का उन्हें खेद है, पुलिस मामले की जांच कर रही है. प्रकाश जावडे़कर ने यह आश्वासन भी दिया कि आगे की परीक्षा लीकप्रूफ होगी यानी कोई पेपर लीक नहीं होगा. इस तरह का दावा 20 घंटों में उन्होंने कैसे कर दिया, यह उन से किसी ने नहीं पूछा. आजकल मीडिया मंत्रियों से जिरह नहीं करता.

दोबारा पर बिगड़ी बात

28 मार्च को ही दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पेपर लीक मामले की रिपोर्ट धारा 420, 468 और 471 के तहत दर्ज करते गजब की फुरती दिखाई और कुछ कर दिखाने के लिए जगहजगह ताबड़तोड़ छापे मारे. अब तक बात काफी हद तक बिगड़ने लगी थी क्योंकि छात्र व अभिभावक सीबीएसई के कार्यालय के बाहर इकट्ठा हो कर विरोधप्रदर्शन करने लगे थे.

यह विरोध परचों के लीक होने के चलते था जो प्रकाश जावडे़कर की इस घोषणा से और बढ़ा कि लीक हुए परचों की दोबारा परीक्षा कराई जाएगी. देखते ही देखते देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगे.

दिल्ली पुलिस ने कार्यवाही के नाम पर जो किया, वह हास्यास्पद था. चूंकि कुछ करना था, इसलिए छापे कोचिंग सैंटरों पर मारे गए. इस पर भी विरोध कर रहे लोग शांत नहीं हुए तो एक एसआईटी (स्पैशल इंवैस्टिगेशन टीम) का गठन कर दिया गया जिस का मुखिया आर पी उपाध्याय को बनाया गया.

अभिभावकों की इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया कि सीबीएसई के अध्यक्ष को पकड़ा जाए. मामले को तूल पकड़ते देख प्रकाश जावड़ेकर ने यह कहते उस पर लीपापोती करने की कोशिश की कि वे खुद एक अभिभावक होने के नाते छात्रों और अभिभावकों का दर्द समझते हैं. उधर, एसआईटी जांच करतेकरते एक प्राइवेट ट्यूटर तक पहुंच गई और यह जताने की बचकानी कोशिश करती रही कि पेपर सिर्फ दिल्ली में ही लीक हुए थे.

सीबीएसई की चेयरपर्सन अनीता करवाल भी पहली बार सामने आ कर बोलीं कि पुलिस ऐक्शन में आ गई है और यह शक जाहिर किया है कि इस में कुछ कोचिंग सैंटरों का हाथ हो सकता है. अपना दोष दूसरों पर मढ़ने की यह पौराणिक परंपरा है.

पुलिस और उस की जांचों पर भरोसा लोग क्यों नहीं करते हैं, यह बात इन बयानों से साफतौर पर उजागर हुई. मामूली सा दिमाग रखने वाला भी समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो कोचिंग सैंटर वाले उसे कैसे लीक कर सकते हैं.

जाहिर है लीक का सोर्स यानी जरिया सीबीएसई ही है जिस की चेयरपर्सन और मुलाजिमों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुमकिन ही नहीं. ऐसे में कोचिंग वालों को जिम्मेदार ठहराना अपना दागदार दामन छिपाना है. सीधेसीधे यह बात किसी ने नहीं मानी कि सीबीएसई के अधिकारियों ने ही पेपर बेचे होंगे, जिन्हें कोचिंग वालों ने खरीदा.

प्रकाश जावड़ेकर के इस दावे की भी हवा निकल गई कि पेपर लीक मामले में पैसों के लेनदेन की बात सामने नहीं आई है, जबकि दिल्ली सहित पूरे देश में चर्चा यह थी कि 10वीं और 12वीं के पेपर 200 रुपए तक में बिके थे.

सौदेबाजी का खेल

ऐसे घोटालों में लेनदेन का फार्मूला बहुत साफ होता है कि पहले जो लाखों रुपए में परचा खरीदता है वह अपनी लागत वसूलने के लिए उसे कई लोगों को बेच देता है और फिर ये लोग भी अपना पैसा वसूलने उसे और सस्ते में बेच देते हैं. ऐसा होतेहोते एक समय ऐसा भी आता है कि परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भाजीतरकारी के भाव में बिकने लगते हैं.

सौदेबाजी के इस खेल में यह बात उजागर हुई कि शुरू में लोगों ने ये पेपर 35 हजार रुपए में खरीदे थे और फिर आखिर में उन का भाव 200 रुपए तक गिर गया था. सीबीएसई के जिस अधिकारी ने भी ये पेपर बेचे होंगे उस ने जाहिर है एक झटके में करोड़ों की चांदी काटी और फिर लोगों ने इसे धंधा बनाते खूब पैसा कमाया.

ऐसे में नरेंद्र मोदी के मन की बात फरेब साबित हुई कि छात्र परीक्षा को ले कर चिंता न करें. अब तक कई चिंताएं छात्र और अभिभावक करने को मजबूर हो गए थे और कई नईनई बातें उधड़ कर सामने आने लगी थीं. जिन में साफ जाहिर हो रहा था कि गड़बड़झाला बहुत बडे़ पैमाने पर हुआ है और इस में बोर्ड के परीक्षा अधिकारियों की मिलीभगत है.  जिन में से जांच के आखिर में एकाध को बलि चढ़ने के लिए तैयार कर लिया जाएगा. सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी की तरह परचे को लीक होना और जनता का दुख उठाना देश के विकास के लिए तय मान लिया. कष्ट होगा तो पुण्य मिलेगा न.

लापरवाही की हद

छात्रों के भविष्य की सौदेबाजी किस तरह की गई, यह भी जल्द सामने आ गया यानी छिपाए नहीं छिपा कि 12वीं के अर्थशास्त्र के लीक परचे की जानकारी तो एक दिन पहले ही सीबीएसई को मिल गई थी.

मजाक की बात यह रही कि खुद सीबीएसई ने पुलिस को जानकारी दी थी कि 26 मार्च की शाम 6 बजे किसी अज्ञात शख्स ने हाथ से लिखी 4 पेज की आंसर शीट सीबीएसई की प्रशासनिक इकाई को भेजी थी. इतना ही नहीं, सीबीएसई ने यह भी माना कि 23 मार्च को फैक्स के जरिए उसे खबर मिल गई थी कि पेपर लीक होने जा रहे हैं जिस में एक कोचिंग संचालक और 2 स्कूल संचालक शामिल हैं. यह अज्ञात शख्स, जिसे व्हिसलब्लोअर कहा जा रहा है, ने तो हर माध्यम से पेपर लीक होने की जानकारी प्रमाणों सहित सीबीएसई को भेजी थी.

इन शिकायतों या खबरों पर सीबीएसई ने कान देने की जरूरत क्यों नहीं समझी, इस बात का जवाब शायद ही कभी मिले पर इस की वजह साफ है कि प्रश्नपपत्रों का धंधा जम कर हो, इसलिए इन शिकायतों पर कार्यवाही नहीं की गई. जब एक दिन पहले ही दफ्तर तक आंसर शीट पहुंच गई और इस पर भी सभी खामोश रहे, तो यह माना जा रहा है कि सीबीएसई चाहता है कि जिन्होंने उस से पेपर खरीदे हैं वे अपनी लागत  वसूल लें और वाजिब मुनाफा भी कमा लें. अगर 26 मार्च को ही परचा रद्द करने का ऐलान कर दिया जाता तो खरीदने वाले सीबीएसई के उन अधिकारियों को तुरंत बेनकाब कर देते जिन्होंने उन्हें परचा बेचा था.

धंधा कितने खुले तौर पर हुआ था, इस की पुष्टि के लिए प्रमाण सामने आ गए थे. लुधियाना की बसंत सिटी में रहने वाली 12वीं कक्षा की एक छात्रा जाह्नवी बहल ने 17 मार्च को ही इस घोटाले से ताल्लुक रखते तमाम सुबूत न केवल सीबीएसई, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजे थे. दरअसल,  जाह्नवी के पास उस सौदेबाजी का ब्योरा था जो व्हाट्सऐप पर हुई थी.

सीबीएसई और प्रधानमंत्री कार्यालय से जाह्नवी को ज्यादा उम्मीद नहीं थी, इसलिए उस ने सजगता दिखाते पुलिस आयुक्त आर एन ढोके से भी शिकायत की थी और जो शख्स पेपर बेच रहा था उस का मोबाइल नंबर भी मुहैया कराया था.  यह वही जाह्नवी है जिसे पिछले साल 15 अगस्त पर पुलिस ने गिरफ्तार किया था इसलिए कि वह श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराने जा रही थी. वह उस वक्त भी सुर्खियों में आई थी जब उस ने साल 2016 में चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार को ललकारा था.

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ऐसा लगता नहीं कि पुलिस प्रशासन और सरकार पेपर लीक को ले कर गंभीर थे जबकि ये पेपर काफी पहले बिकने के लिए बाजार में आ चुके थे.

हर्जाना क्यों नहीं

जाह्नवी का कहना यह है कि अगर वक्त रहते पुलिस या कोई और यानी सीबीएसई या प्रधानमंत्री कार्यालय उस की शिकायत पर कार्यवाही करते तो पेपर लीक नहीं होते और सीबीएसई को लाखों का नुकसान नहीं होता.

जाह्नवी या किसी और का यह सोचना ही गलत है कि बोर्ड को किसी तरह का नुकसान हुआ है. असल नुकसान तो परीक्षा में शामिल हुए छात्रों और अभिभावकों का हुआ है. इस में आर्थिक और मानसिक दोनों शामिल हैं. चूंकि परीक्षा की गोपनीयता और विश्वसनीयता की जिम्मेदारी सीबीएसई की होती है, इसलिए इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी उसे ही उठानी चाहिए.

पर हुआ उलटा, बवाल बढ़ता देख सीबीएसई ने फैसला यह लिया कि अब ये परीक्षाएं दोबारा आयोजित की जाएंगी.  30 मार्च को यह घोषणा की गई कि अब 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर 25 अप्रैल को और जरूरत पड़ी तो 10वीं का गणित का पेपर भी दोबारा सिर्फ दिल्ली, एनसीआर और हरियाणा में होगा. हालांकि 3 अप्रैल को सीबीएसई ने साफ कर दिया कि 10वीं की गणित की परीक्षा दोबारा नहीं होगी.

हैरत की बात यह भी रही कि मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड से परचे लीक होने के सुबूत सामने आए पर सीबीएसई इस बात पर अड़ा रहा कि परचे दिल्ली में ही लीक हुए हैं. छात्रों और अभिभावकों की इस मांग या बात का ध्यान नहीं दिया गया कि एक या दो नहीं, बल्कि सभी विषयों के परचे लीक हुए हैं.

दोबारा परीक्षा करवाना कोई हल नहीं था जिस से छात्रों और अभिभावकों के नुकसान की भरपाई होना संभव हो.  होना तो यह चाहिए था कि सरकार हरेक छात्र को हर्जाना देती जो किसी भी हाल में 1 लाख रुपए प्रतिछात्र से कम नहीं होता.

इस संबंध में जब कुछ अभिभावकों से बात की गई तो उन्होंने इसे कारगर बताया. भोपाल की एक गृहिणी सबीना खान कहती हैं, ‘‘उन का पूरा घरसालभर बेटे सऊद की परीक्षा की तैयारी में जुटा रहा था, लग ऐसा रहा था कि इम्तिहान सऊद का नहीं, बल्कि हम सब का है. सऊद 12वीं के साथसाथ कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी कर रहा था, पर अब सबकुछ खटाई में पड़ गया है.’’

सबीना बताती हैं,’’ एक अनिश्चितता मंडरा रही है कि अब दोबारा परीक्षा होगी. हमें मलाल इस बात का नहीं कि गरमी की छुट्टियों में नैनीताल जा कर घूमनेफिरने का प्रोग्राम रद्द हो गया है, बल्कि डर इस बात का ज्यादा है कि अब फिर हाड़तोड़ मेहनत वाले टाइमटेबल पर अमल करना पड़ेगा.’’

सबीना ही नहीं, बल्कि लाखों अभिभावक संतानों को ले कर चिंता व तनाव में हैं कि दोबारा परीक्षा करवाने के फैसले से उन्हें क्या हासिल हुआ, सिवा इस के कि दुश्वारियां बढ़ गईं.

एक और अभिभावक प्रशांत शुक्ला का कहना है, ‘‘नुकसान तो हमारा हुआ है, जिस की भरपाई नकदी में होना हर्ज की बात नहीं. यह एक हादसा ही है जब सरकार रेल हादसे पर मुआवजा देती है, किसानों को आर्थिक सहायता देती है तो उसे इन छात्रों को भी देना चाहिए और यह पैसा सीबीएसई से ही वसूलना चाहिए.

दोषी कोई भी हो लेकिन पैसा सीबीएसई के अधिकारियों की पगार से काटा जाना चाहिए जिस से उन्हें सबक मिले कि भविष्य में अगर पेपर लीक हुए तो आखिरकार जिम्मेदारी उन की ही बनती है.’’

कोई भी जांच हो, छापे पड़ें, कोई भी पकड़ा जाए इस से परीक्षार्थियों को कुछ नहीं मिलना जिन का डर और नुकसान अब दोगुना हो गया है. भविष्य और कैरियर के लिए बनाई गई छात्रों की योजनाएं और तैयारियां चौपट हो गई हैं.  उन का दर्द न तो सीबीएसई समझ सकता और न ही सरकार महसूस कर सकती है.

खूब गरमाई राजनीति

उम्मीद के मुताबिक, पेपर लीक कांड पर राजनीति खूब गरमाई जिस में दिलचस्प बात यह है कि सत्तारूढ़ दल भाजपा के पास कहने को कुछ नहीं था.  कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौका भुनाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जम कर तंज कसे कि कितने लीक, डाटा लीक – आधार लीक, एसएससी परीक्षा लीक, चुनाव की तारीख लीक, सीबीएसई पेपर लीक, हर चीज में लीक है, चौकीदार वीक है.

दिल्ली के जंतरमंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र व अभिभावक प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल को हटाए जाने की मांग कर रहे थे, तब मुंबई से मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे अभिभावकों को सलाह दे रहे थे कि वे अपने बच्चों को दोबारा परीक्षा में शामिल न होने दें क्योंकि पेपर लीक होना सरकार की असफलता है.

कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री से माफी मांगने की बात कही तो तमाम विपक्षी नेता सरकार, भाजपा, नरेंद्र मोदी, प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल को कठघरे में खड़ा करते नजर आए.

इस संवेदनशील मुद्दे को भुनाने के लिए विपक्ष कोई कसर आगे भी छोड़ेगा, ऐसा लग नहीं रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस बाबत नरेंद्र मोदी को वह बख्शेगा नहीं कि भ्रष्टाचारमुक्त भारत की यह कैसी पहल थी जिस में लाखों छात्रों के सपनों और भविष्य से खिलवाड़ किया गया. गौरतलब है कि कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में हुई धांधलियों पर छात्रों ने लंबा धरना दिल्ली में दिया था पर तब इतना बवाल नहीं मचा था.

सीबीएसई पेपर लीक कांड के असली गुनाहगार कभी पकड़े जाएंगे, इस में सभी को शक है तो इस की एक बड़ी वजह मध्य प्रदेश का व्यापमं महाघोटाला है जिस की सीबीआई जांच और अदालती कार्यवाही अभी तक चल रही हैं. कर्मचारी चयन आयोग के लीक पेपर्स के दोषी भी अभी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए हैं.

जांचों और पुलिस सहित सरकारी एजेंसियों की कार्यवाहियों से कुछ खास नहीं होता, यही इस पेपर लीक कांड में होना तय दिख रहा है. दोचार लोगों को निलंबित कर सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान लेती है और लोग भी भूल जाते हैं कि किस तरह उन का नुकसान हुआ था.

हताशा की वजह

विद्यार्थी और अभिभावक हताशा के शिकार हैं. वे सिर्फ विरोध कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं. पेपर लीक पर यही हुआ कि लोग न्यूज चैनल्स से ले कर चौराहों पर तक, बस, बहस ही करते रहे जिस का सार यह था कि खामी सिस्टम में है.

सिस्टम में खामी, सरकार की भूमिका और सीबीएसई की संदिग्धता जैसी बातों से परे कम ही लोगों ने घटना पर अपना ध्यान फोकस किया. हर किसी के पास नोटबंदी के वक्त की तरह एक सुझाव था, परीक्षाओं को ले कर एक नया आइडिया था. लेकिन यह हर कभी लीक होते पेपर्स की समस्या का हल नहीं है.  समस्या का इकलौता हल है तुरंत कार्यवाही. जांचें बेमानी साबित होती हैं और वे सरकार की मंशा के अनुरूप होती हैं, इसलिए जिम्मेदार लोगों को ही दोषी मान कर सजा देने की मंशा पर लोग अड़ें तो ही ऐसी करतूतों में कमी आएगी.

नकदी हर्जाना इस का बेहतर विकल्प है जिसे उन लोगों की जेब से निकाला जाए जो इस जिम्मेदारीभरे काम को अंजाम देने के लिए सरकार से पगार लेते हैं. दोबारा परीक्षा करवाना कोई राहत वाला काम नहीं है, बल्कि छात्रों व अभिभावकों की मुसीबतें बढ़ाने वाली बात है.

मुट्ठीभर हाथों में लाखों का भविष्य

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में शामिल लाखों छात्रों का भविष्य दरअसल, उन 9 से ले कर 17 लोगों के हाथों में रहता है जो प्रश्नपत्र बनाते हैं. आमतौर पर प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया स्कूल सत्र शुरू होने के तुरंत बाद अगस्त के महीने से चरणबद्ध तरीके से शुरू हो जाती है.

पहले चरण में देशभर से 9 से 17 शिक्षकों को छांटा जाता है जिन की काबिलीयत के बाबत सीबीएसई के अपने पैमाने हैं. इन शिक्षकों को एकदूसरे के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती. और न ही ये एकदूसरे से मिल सकते.

सीबीएसई अपने स्तर पर इस बात की भी तसल्ली करता है कि पेपर सैट करने वाले ये शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन या कोचिंग न पढ़ाते हों.  देखा यह भी जाता है कि इन के नजदीकी रिश्तेदारों में से कोई इस परीक्षा में शामिल न हो रहा हो. आमतौर पर एक शिक्षक 2 महीने में प्रश्नपत्र बना कर सीलबंद लिफाफे में उसे सीबीएसई को भेज देता है.

इस बार यह रिवाज जरूर तोड़ा गया था कि हर दफा की तरह प्रश्नपत्रों के 3 सैट नहीं बनवाए गए थे. ऐसा क्यों नहीं किया गया, इसे ले कर सीबीएसई और सरकार दोनों कठघरे में हैं. 3 सैट बनवाने का एक बड़ा मकसद यह भी होता था कि कभी पेपर लीक होने की शिकायत मिले तो छात्रों को दूसरा सैट दिया जा सके. तीनों सैट में कोई खास या बड़ा फर्क नहीं होता था, बस प्रश्नों के क्रमांक ऊपरनीचे कर दिए जाते थे और एकाध सैट में कोई नया या दूसरा सवाल पूछ लिया जाता था. इस व्यवस्था का मकसद नकल रोकना भी था.

प्रश्नपत्र तैयार करने वाले को भी नहीं पता होता था कि उस का तैयार किया गया सैट वितरित होगा या नहीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं था.  जिन 17 लोगों ने अपनेअपने विषय के प्रश्नपत्र बनाए थे उन्हें शायद पता था कि इस बार उन का ही सैट परीक्षा भवन में बंटेगा. अगर ऐसा है तो यह गहरे शक व बड़ी चिंता की बात है.

तैयार प्रश्नपत्र सीधे स्कूल या परीक्षा केंद्र को नहीं दिए जाते, बल्कि इन्हें बैंक में रखा जाता है. ऐसे बैंक को कस्टोडियन बैंक या कलैक्शन सैंटर भी कहा जाता है. यह कस्टोडियन बैंक कौन सा होगा, इस का चयन भी सीबीएसई ही करता है,  लेकिन उस की कोशिश यह रहती है कि कस्टोडियन बैंक परीक्षा केंद्र के नजदीक ही हो. जहां बैंक नहीं होते वहां पोस्टऔफिस को कलैक्शन सैंटर बनाया जाता है.

जिस तारीख को जिस विषय की परीक्षा होती है, उस दिन प्रश्नपत्र बैंक से स्कूल यानी परीक्षा केंद्र तक ले जाए जाते हैं. बैंक लौकर से प्रश्नपत्र निकालते वक्त एक बैंक प्रतिनिधि, एक स्कूल प्रतिनिधि और एक प्रतिनिधि सीबीएसई का मौजूद रहता है. ये तीनों मिल कर सुनिश्चित करते हैं कि प्रश्नपत्र वाले लिफाफे से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. यानी वह सीलबंद है.  ये तीनों परीक्षा केंद्र तक गाड़ी में आते हैं, जिस में एक सुरक्षा गार्ड भी रहता है.

परीक्षा शुरू होने के आधा घंटा पहले स्कूल प्रिंसिपल, सीबीएसई का एग्जामिनर और परीक्षा में ड्यूटी देने वाले शिक्षकों की मौजदूगी मेें प्रश्नपत्र वाले लिफाफे खोले जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कर सीबीएसई को भेजी जाती है. इस के बाद शिक्षक परीक्षार्थियों की संख्या के हिसाब से क्लासरूम में जा कर प्रश्नपत्र बांटते हैं.

देखा जाए तो फुलप्रूफ मानी जाने वाली इस प्रक्रिया में कुछ पेंच भी हैं जिन के चलते सेंधमारी असंभव काम नहीं. जब प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे होते हैं तब इन से छेड़खानी की जा सकती है. दूसरी गड़बड़ रास्ते में संभव है बशर्ते इस में मौजूद चारों लोग मिल जाएं. परीक्षा केंद्र में गड़बड़ी या लीक की आशंकाएं न के बराबर होती हैं क्योंकि वहां कई शिक्षक मौजूद रहते हैं और उन के पास वक्त भी कम रहता है.

गड़बड़ी या लीक की आशंका बैंक में ज्यादा रहती है क्योंकि यहां प्रश्नपत्र कई दिनों तक रहते हैं. 26 और 28 मार्च के लीक हुए प्रश्नपत्रों की खबर अगर जाह्नवी को थी तो साफ दिख रहा है कि पेपर रास्ते में या किसी परीक्षा केंद्र में लीक नहीं हुए. कस्टोडियन बैंक में ऐसा होना संभव है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस दिशा में जांच शुरू नहीं हुई थी, यह कम हैरानी की बात नहीं.

प्रश्नपत्र लीक होने की एक आसान और सुविधाजनक जगह प्रिंटिंग प्रैस है जहां ये पेपर छपते हैं. यह जानकारी भी अति गोपनीय होती है जिसे इनेगिने अधिकारी ही जानते हैं. दिल्ली की क्राइम ब्रांच ने सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक से भी 30 मार्च को 4 घंटे पूछताछ की थी जिस में पता चला था कि पेपर छपवाने के लिए सीबीएसई नोटिफाइड प्रिंटिंग प्रैसों के लिए टैंडर जारी करता है.

जिन प्रिंटिंग प्रैसों को छपाई का ठेका मिलता है उन की प्रैसों की बाकायदा सीसीटीवी कैमरों से निगरानी होती है. इस बाबत एक कमेटी गठित होती है जो पहले प्रश्नपत्र के ब्लूप्रिंट का मुआयना करती है.  यानी सांठगांठ या मिलीभगत हो तो प्रिंटिंग प्रैस से भी पेपर लीक हो सकते हैं.

यह तकनीकी बात है पर व्यावहारिक बात अब यह समझ आ रही है कि चंद शिक्षक लाखों छात्रों का भविष्य तय करें, यह भी एक कमी है. बेहतर तो यह होगा कि हर स्कूल को अपना प्रश्नपत्र बनाने का अधिकार दिया जाए. इस से अगर पेपर लीक भी हुआ तो नुकसान सीमित होगा.

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