सख्त कानून के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या जहां सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है, तो वहीं देश में एक गांव ऐसा भी है जहां बेटी होने पर न सिर्फ खुशियां मनाई जाती हैं, 111 फलदार पेड़ भी इस खुशी में लगाए जाते हैं.
पूरे गांव की बेटी
राजस्थान का एक गांव पिपलंत्री में बेटी मानो एक वरदान बन कर पैदा लेती है. इस मौके पर 111 फलदार पेड़ तो लगाए ही जाते हैं, साथ ही गांव वाले 21,000 रूपए इकट्ठा कर के उस के नाम से बैंक अकाउंट भी खुलवा देते हैं. इतना ही नहीं बेटी की सुरक्षित भविष्य के लिए उस के माता पिता को एक ऐफीडेविट भी देनी होती है, जिस में लिखा होता है कि-
*बेटी की शादी कानूनी उम्र यानी 18 साल से पहले नहीं करेंगे.
*वे बेटी को नियमित स्कूल भेजेंगे.
*वे उन 111 फलदार पेड़ों की जिम्मेदारी भी उठाएंगे, वगैरह.
अब तक ढाई लाख पेड़
गांव के लोग अब तक ढाई लाख पेड़ लगा चुके हैं और हर पेड़ गांव वालों के लिए बेटी के बराबर है. दरअसल, यह परंपरा गांव के एक सरपंच द्वारा अपनी बेटी की कम उम्र में गुजर जाने की याद में शुरू की गई थी, जिसे अब गांव वाले बखूबी निभा रहे हैं.
कब खुलेगी समाज की आंखें
यह वाकेआ दिलचस्प होने के साथसाथ समाज की आंखें खोलने के लिए भी पर्याप्त हैं कि जिस समाज में बेटियां लिंग भेद, वर्ण, धर्म आदि की भेंट चढ़ कर गर्भ में ही मार दी जाती हैं, वहीं एक ऐसा भी समाज है, जिन के लिए बेटियां वरदान से कम नहीं हैं.
सिर्फ कहने को बुद्धिजीवी
बेटियों के प्रति यह प्रेम उन शहरी आबादी को भी मुंह चिढ़ाता है, जहां के पढ़ेलिखे, टाईकोट लगाए, लग्जरी गाङियों में घूमने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा आज भी बेटियों को बोझ ही समझा जाता है और इन आबादी में भी बेटियां पैदा होने से पहले ही मार दी जाती हैं.