भारतीय बैंकिंग जगत में देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक यानि पंजाब नेशनल बैंक पर डिफाल्टर होने का खतरा मंडरा रहा है. भारतीय बैकिंग के इतिहास में इस अभूतपूर्व घटना से बचने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक औफ इंडिया को दखल देना पड़ सकता है. बता दें कि पंजाब नैशनल बैंक की ओर से जारी लेटर औफ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) के आधार पर यूनियन बैंक औफ इंडिया ने करीब 1000 करोड़ रुपये के लोन दिए थे, जिनकी अदायगी उसे अगले कुछ ही दिनों में करनी होगी, यानी कि अगर पीएनबी 31 मार्च तक वह रकम नहीं लौटाता है तो यूनियन बैंक औफ इंडिया उसे डिफाल्टर घोषित कर देगा. यही नहीं यूनियन बैंक के अनुसार पंजाब नेशनल बैंक को दिए लोन को एनपीए भी घोषित किया जा सकता है.
जानकारों के मुताबिक अगर सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा इस मामलें में जल्द हस्तक्षेप कर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो बैकिंग इतिहास में यह पहला मामला होगा जब कोई एक बैंक देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक को डिफाल्टर की सूची में डालेगा.
यूनियन बैंक के एमडी राजकिरण राय ने कहा, 'हमारे लिए तो यह पीएनबी के सपौर्ट वाले डौक्युमेंट्स पर वैध दावा है. यह हमारे बही-खाते में फ्रौड नहीं है. हम औडिटर्स से राय लेंगे. हालांकि हम नहीं चाहते हैं कि पीएनबी को डिफाल्टर के रूप में लिस्ट किया जाए. हमें सरकार या आरबीआई की ओर से दखल दिए जाने की उम्मीद है क्योंकि 31 मार्च तक रिजौल्यूशन होना है.'
लेटर औफ अंडरटेकिंग्स (एलओयू)
एलओयू आमतौर पर व्यापार के लिए आसान और सस्ता साधन माना जाता है. कुछ बैंकों ने आरबीआई के अधिकारियों के साथ इस पर चर्चा भी की है. हाल में एलओयू से धोखाधड़ी के मामलों का खुलासा होने के बाद रिजर्व बैंक ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. एक बैंकर के मुताबिक इंडस्ट्री को जल्द एलओयू का विकल्प मिलेगा. बता दें कि एलओयू के जरिए 20 से 40 बिलियन डालर का व्यापार होता रहा है. अमेरिकी फेडरर की आसान मनी पौलिसी से डालर की तरलता के बीच इसमें पिछले सात से आठ वर्षों में बढ़ोत्तरी हुई थी.
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