राजनीतिक दल जाति आधारित राजनीति का विरोध तो करते हैं पर जब टिकट देने का मौका आता है तो जातिगत समीकरण सबसे पहले देखे जाते हैं. केवल लोकसभा ही नहीं राज्यसभा में भी यह देखने को मिलता है.

भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा चुनावों के लिये अपने जिन 8 नेताओं के नाम चुने उनमें से ब्राहमण चेहरे सबसे अधिक हैं. भाजपा उत्तर प्रदेश में ब्राहमणों को सबसे मजबूत मान कर अपनी रणनीति तैयार कर रही है. जिससे राज्यसभा के जरीये वह लोकसभा के लिये बेहतर मैदान तैयार कर सके. राज्यसभा के लिये उत्तर प्रदेश से भाजपा ने जिन 8 नेताओं के नाम चुने उनमें से 3 नाम ब्राहमण बिरादरी से आते हैं. इनमें केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हाराव और समाजवादी पार्टी से भाजपा में आये अशोक वाजपेई का नाम प्रमुख है. ब्राहमण बिरादरी के यह तीन बड़े और महत्वपूर्ण नाम हैं.

भाजपा ने ब्राहमण जातियों के मुकाबले दूसरी जातियों के जिन नामों का चुनाव किया है वह पार्टी की राजनीति को प्रभावित करने वाले नाम नहीं है. सकलदीप राजभर और हरनाथ यादव पिछडी जाति से हैं. कांता कर्दम दलित वर्ग से हैं. वह मेरठ से मेयर का चुनाव हार चुकी हैं. विजय पाल सिंह तोमर क्षत्रिय और डाक्टर अनिल जैन वैश्य बिरादरी से हैं.

वैसे तो भाजपा यह दिखाने की कोशिश में है कि उनकी पार्टी में हर जाति का ध्यान रखा जाता है. पार्टी जाति के आधार पर राजनीति नहीं करती है. राज्यसभा के टिकट देने में जाति समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया. भाजपा भले ही दलित और पिछडों की अगुवाई बढ़ाने की बात कर रही हो पर पार्टी की अगड़ी छवि बरकरार है.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह आरोप सरकार पर लगने लगे थे कि सरकार में क्षत्रिय बिरादरी को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है. इस कारण राज्यसभा के चुनावों में भाजपा से सबसे अधिक 3 ब्राहमण जाति के नेताओं को टिकट दिया. भाजपा ने दलबदल को प्रोत्साहन देने के नाम पर सपा से आये अशोक वाजपेई और हरनाथ सिंह यादव को टिकट दिया. अशोक वाजपेई समाजवादी पार्टी में एमएलसी थे. उनको मुलायम सिह यादव का बेहद करीबी माना जाता है.

जब भाजपा को अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डाक्टर दिनेश शर्मा और केशव मौर्य सहित मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह और मोहसिन रजा के लिये उपचुनाव कराने की जरूरत थी, अशोक वाजपेई और कुछ दूसरे लोगों ने विधान परिषद से इस्तीफा देकर भाजपा के नेताओं को विधान परिषद के रास्ता सदन में पहुंचाने के लिये अपनी सीट छोड़ी थी. अपनी विधान परिषद सीट छोड़ने वालों में से केवल अशोक वाजपेई को ही राज्यसभा के लिये चुना गया है. इससे ब्राहमण नेताओं के महत्व का साफ पता चल जाता है.

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