प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही देशप्रदेश में भारत की धर्मनिरपेक्ष इमेज की मार्केटिंग करते फिर रहे हों और अपने देश के सामाजिक माहौल को अच्छा करार दे रहे हों, लेकिन देश में कट्टर और हिंसक सांप्रदायिक ताकतों के हमले उन के इस दावे की कलई खोल देते हैं.
हाल के दिनों में देश के जिन राज्यों में उग्र हिंदुत्व का उभार दिखा है, उन में से एक राजस्थान में पिछले दिनों गौरक्षकों ने एक और शख्स की हत्या कर दी. तथाकथित गौरक्षकों ने अलवर जिले के गोपालगढ़ गांव के 35 साला उमर खान को पीटपीट कर मार डाला और उस के साथ ताहिर खान व जावेद को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया.
तकरीबन 6-7 महीने पहले भी राजस्थान में इसी तरह गौरक्षकों ने अपने साथ गाय ले जा रहे पहलू खान की हत्या कर दी थी और उन के बेटों को बुरी तरह घायल कर दिया था.
उमर खान की हत्या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मेवात दौरे के ठीक एक दिन बाद हुई. इस मामले में गोविंदगढ़ थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर के मुताबिक, उमर खान और ताहिर खान ड्राइवर जावेद के साथ एक पिकअप वैन में 6 गाएं और बछड़े ले कर गहेनकर गांव से आ रहे थे. लेकिन रास्ते में गोपालगढ़ के पास उन्हें 8 लोगों ने घेर लिया और उन पर बंदूकों और धारदार हथियारों से हमला कर दिया.
हमले में उमर खान की तुरंत मौत हो गई जबकि ताहिर और जावेद को हरियाणा के एक अस्पताल में गंभीर हालत में इलाज के लिए भरती कराया गया. हमलावरों ने उमर खान की लाश 12 किलोमीटर दूर रेलवे ट्रैक पर फेंक दी थी.
पहलू खान की हत्या की पूरे देश में हुई फजीहत के बाद ऐसा लगा था कि यह सिलसिला थमेगा, ऐसी वारदातें कम होंगी. बीचबीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की अच्छी इमेज पेश करने के लिए गौरक्षकों की बुराई भी करते रहे. उन के रुख से ऐसा लगा था कि गौरक्षक बन कर उग्र भीड़ के तौर पर हमले रुकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री हिंसा रोकने की दिखावटी अपील कर रहे थे. उन की मंसा गौरक्षा के नाम पर हिंसा रोकने की नहीं है. उलटे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए कट्टर हिंदुत्व की इमेज को और भी धारदार बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं.
केंद्र और वसुंधरा सरकार दोनों ही इस तरह की वारदातों के लिए जिम्मेदार हैं. अल्पसंख्यकों की हिफाजत में नाकाम रहने के घातक नतीजे भी हो सकते हैं. सरकार इस के गंभीर खतरों को जानते हुए भी चुप्पी साधे हुए है और गौरक्षकों का हिंसक खेल जारी है.
खुलेआम घूम रहे हत्यारे
गौरक्षकों के हमले के शिकार पहलू खान ने मरते वक्त जिन 6 लोगों के नाम लिए थे, उन्हें राजस्थान पुलिस ने क्लीन चिट दे दी है.
मामले की जानकारी के मुताबिक, राजस्थान पुलिस ने दूध का कारोबार करने वाले गौरक्षकों के शिकार किसान पहलू खान द्वारा जिन 6 लोगों के नाम बताए गए थे, उस से संबंधित जांच को बंद कर दिया गया है, क्योंकि इन 6 आरोपियों में से 3 का संबंध हिंदू संगठन से है.
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस वालों समेत गवाहों ने कहा कि आरोपियों में से कोई भी घटना के समय मौजूद नहीं था.
मालूम हो कि लोगों की भीड़ ने पहलू खान पर हमला किया था जिस से उस की मौत हो गई थी.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे आरोप सामने आए हैं कि संदिग्ध गौरक्षकों को बचाने के लिए सरकार का अफसरों पर दबाव है. गौशाला के मुलाजिम के बयान और मोबाइल फोन के रिकौर्ड के आधार पर पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट दी है.
गौशाला के कर्मचारी के बयान के मुताबिक, आरोपी नवीन शर्मा, राहुल सैनी, ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव और जगमल यादव उस की गौशाला में थे, जो वारदात वाली जगह से तकरीबन 6 किलोमीटर दूर है.
मालूम हो कि 6-7 महीने पहले पहलू खान जयपुर के हटवाड़ा पशु बाजार से कुछ गायों को हरियाणा के नूह इलाके में ले जा रहा था. इसी दौरान अलवर के नजदीक गौरक्षकों ने पहलू खान पर हमला कर दिया जिस से उस की मौत हो गई.
पहलू खान के पास गाय को ले जाने के दस्तावेज भी थे, फिर भी गौरक्षकों ने उस पर हमला कर दिया.
इस मामले की जांच कर रही अपराध शाखा ने पहलू खान की हत्या की जांच रिपोर्ट अलवर पुलिस को भेज दी है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हत्याकांड के मामले में आरोपियों की लिस्ट में से 6 लोगों के नाम हटाए जाएं. इस के बाद अलवर पुलिस ने 6 आरोपियों को पकड़ने के लिए किए गए इनाम को भी रद्द कर दिया.
6 लोगों के नाम हटाए जाने पर पहलू खान के परिवार वालों में बेहद नाराजगी है. उन का कहना है कि वारदात के समय जब आरोपियों का नाम ले कर बुलाया जा रहा था, तो फिर आखिर कैसे उन के नाम हटा दिए गए?
इरशाद के बेटे ने इस मसले पर कहा, ‘‘मैं ने हमले के समय ओम, हुकुम, सुधीर और राहुल का नाम पुकारते सुना था. पुलिस दबाव में
ऐसा कह रही है. लेकिन हमारी लड़ाई यहां खत्म नहीं होगी. हम आगे भी लड़ेंगे और उन 6 लोगों को कुसूरवार साबित करेंगे.’’
दलित भी हैं गौरक्षकों के शिकार
गाय के नाम पर अब तक तो ज्यादातर मुसलमानों के साथ ही मारपीट होती रही है, लेकिन अब राजस्थान के आदिवासी व दलित समुदाय के लोग भी गौरक्षकों की गुंडागर्दी के शिकार बनने लगे हैं.
डूंगरपुर से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर जिले के नारेडा गांव में एक दलित नानूराम की कहानी भी काफी दुखद है. यहां एक हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं ने नानूराम पर गाय का गोश्त बेचने के आरोप में उसे बुरी तरह पीट दिया जबकि नानूराम एक मजदूर है.
नानूराम बताता है कि वह मजदूरों को जागरूक करता है. गांव के कुछ दबंग लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी. उसे तरहतरह से धमकी दी जाने लगी. 28 नवंबर को गांव में हिंदू संगठन के लोगों ने उस के घर को घेर लिया. उस के साथ मारपीट की और जान से मारने की धमकी दी गई.
उन्होंने नानूराम पर झूठा आरोप लगाया कि वह गाय का गोश्त बेचता है. उस ने जब इस बारे में पुलिस थाने में शिकायत की तो थानेदार ने उलटा उसे ही धमका दिया.
नानूराम का आरोप है कि इस हिंदू संगठन के लोग चाहते हैं कि मजदूर गांव छोड़ दें ताकि वे उन की जमीनों पर कब्जा कर सकें.