बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ व ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के द्वारा देश की महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिनेतारिकाएं माधुरी दीक्षित व विद्या बालन को इन कार्यक्रमों का ब्रैंड ऐंबैसेडर बना कर ब्रैंडिंग के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं.
भारतीय खेल व खिलाडि़यों की दशा सुधारने के लिए केंद्रीय खेल मंत्रालय के द्वारा लगातार नएनए कार्यक्रमों की घोषणाएं की जा रही हैं. पर देश की एक ऐसी भी बेटी है, जिस ने कौमनवैल्थ गेम्स 2010 व श्रीलंका में हुई विश्व नैटबौल चैंपियनशिप 2011 में रजत पदक जीतने वाली भारतीय नैटबौल टीम का नेतृत्व किया और देश का मान बढ़ाया, आज बदहाली में जी रही है.
नैटबौल, बास्केटबौल से ही मिलताजुलता एक अलग प्रकार का खेल है, जिसे सिर्फ महिलाएं ही खेलती हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर करने के लिए इस खेल की शुरुआत की गई थी. करीब 70 देशों में यह खेल खेला जाता है. 2010 में भारत में आयोजित कौमनवैल्थ गेम्स में खेलने के लिए पहली बार अलगअलग खेलों की प्रतिभाशाली महिला खिलाडि़यों का चयन कर के नैटबौल टीम बनाई गई थी. तत्कालीन यूपीए सरकार व भारतीय नैटबौल फैडरेशन के द्वारा 22 प्रतिभाशाली महिला खिलाडि़यों को नैटबौल खेल का बेहतर प्रशिक्षण दिलावाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर आस्ट्रेलिया भेजा गया था.
3 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद तैयार हुईं भारतीय नैटबौल की महिला खिलाड़ी आज सरकार व फैडरेशन के अधिकारियों के बदल जाने के कारण अपने खेल से दूर हो कर निजी कंपनियों में नौकरियां कर रही हैं या शादी कर के अपना घर बसा चुकी हैं. नैटबौल टीम की खिलाडि़यों की समस्या व नैटबौल खेल क्या है और इसे कैसे खेला जाता है, विषय पर अधिक जानकारी के लिए पूर्व भारतीय नैटबौल टीम की कप्तान रहीं प्राची तहलान से बातचीत की, जिन की कप्तानी में भारतीय नैटबौल टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खेल में सफलता के नए आयाम स्थापित किए. प्रस्तुत हैं, बातचीत के मुख्य अंश:
आप अपने नाम के आगे ‘टीम प्राची तहलान’ क्यों लिखती हैं?
कोई खिलाड़ी अकेले अपने दम पर सफलता के शिखर तक नहीं पहुंचता है. परदे के पीछे से उस खिलाड़ी की कई लोग सपोर्ट करते हैं.
आप ने नैटबौल के खेल में ही अपना कैरियर बनाने की क्यों सोची जबकि आज महिला खिलाडि़यों का रुझान बैडमिंटन व टैनिस जैसे खेलों में है?
मैं लंबे कद की थी. जब मैं दिल्ली के सचदेवा पब्लिक स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ रही थी तब वहां के बास्केटबौल कोच ने मेरी अच्छी कदकाठी व छोटी उम्र को देखते हुए मुझे बास्केटबौल खेलने के लिए प्रेरित किया. बास्केटबौल खेल में लंबे कद के खिलाडि़यों को ज्यादा तरजीह मिलती है. 8वीं क्लास में जब मैं ने पहली बार ‘राष्ट्रीय खेलों’ में अपने स्कूल के लिए बास्केटबौल खेल में प्रतिनिधित्व किया तो मेरे अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए मुझे दिल्ली के प्रसिद्ध मोंटफोर्ट स्कूल से उन की बास्केटबौल टीम की ओर से खेलने का प्रस्ताव मिला, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, क्योंकि मोंटफोर्ट स्कूल में बास्केटबौल खिलाडि़यों को अच्छी ट्रेनिंग दी जाती थी.
बास्केटबौल खेलतेखेलते आप भारतीय नैटबौल टीम की कप्तान कैसे बन गईं?
जब मैं ने दिल्ली के जीसस ऐंड मैरी कालेज में दाखिला लिया तब उस समय कालेज में कौमनवैल्थ गेम्स 2010 में हिस्सा लेने के लिए अलगअलग खेलों की प्रतिभाशाली लड़कियों का नैटबौल के लिए चयन किया जा रहा था. इस खेल के लिए 5 फुट 9 इंच से ले कर 6 फुट या इस से अधिक लंबी महिला खिलाडि़यों का ही चयन होना था. मेरी लंबाई की वजह से मेरा चयन इस खेल के लिए हो गया. प्रशिक्षण के दौरान मेरे अच्छे प्रदर्शन व बास्केटबौल खेल में मेरे 10 वर्ष के अनुभव को देखते हुए मुझे भारतीय नैटबौल टीम के कप्तान की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई.
आप की सरकार से क्या शिकायतें हैं?
भारतीय खेलों में फैडरेशन के द्वारा प्रतिभाशाली व अनुभवी खिलाडि़यों की अनदेखी कर के अपनी पहचान की खिलाडि़यों को खेलने का मौका दिया जा रहा है. 3 साल की मेहनत के बाद भारतीय नैटबौल टीम को अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले खेलने के लायक बनाया गया था. भारत सरकार के द्वारा पैसा खर्च कर के करीब 70 लड़कियों को नैटबौल खेलने के लिए प्रशिक्षित किया गया था. कौमनवैल्थ गेम्स खत्म होते ही फैडरेशन बदल गई और नए पदाधिकारी आ गए. नए पदाधिकारियों के द्वारा अपनी पहचान की खिलाडि़यों को मौका देने से पुरानी खिलाड़ी, जिन्होंने इस खेल में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सफलता दिलवाई थी, इस खेल से बाहर हो गईं. अब उन में आधी से ज्यादा लड़कियों की शादी हो चुकी है.
एक स्टेज पर आने के बाद लोगों को पैसे की भी आवश्यकता होती है. कौमनवैल्थ के समय हम से यह कहा गया था कि जीवनयापन के लिए हमें रेलवे या अन्य सरकारी विभागों में नौकरी दी जाएगी, पर फैडरेशन के बदलते ही हम खेल से बाहर हो गईं. मैं स्वयं एक निजी कंपनी में काम करने को मजबूर हूं. नौकरी करने के कारण हमारा ध्यान खेल से दूर हो गया. हम ने अभाव में रह कर इस खेल की तैयारी की थी. नैटबौल एक इनडोर गेम है, जबकि हम ने चिलचिलाती धूप में आउटडोर प्रैक्टिस कर के अंतर्राष्ट्रीय मैच भारत के लिए खेले हैं.
हौंगकौंग में हम 3 लड़कियां पैसे के अभाव के कारण 6×4 के छोटे से कमरे में रही हैं. आप सोच सकते हैं कि हम वहां कैसे रही होंगी. खाना खिलाने के लिए फैडरेशन के पास पैसे नहीं होते. दूसरी तरफ आज क्रिकेट, फुटबौल और कबड्डी लीग आ रही हैं, जिन से फिल्मी सितारों का नाम जुड़ा हुआ है. किसी फिल्मी सितारे के किसी खेल से जुड़ने के कारण उस खेल में पैसे की बहार आ जाती है. फैडरेशन के पास भी खिलाडि़यों की बेहतर देखभाल के लिए बजट का आवंटन होना चाहिए. बजट का आवंटन होता भी है तो वह खिलाडि़यों तक नहीं पहुंच पाता है.
अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए आप नौकरी कर रही हैं. नौकरी के अलावा क्या किसी अन्य क्षेत्र से भी जुड़ी हुई हैं?
नौकरी करने के कारण मैं अपना समय खेल में नहीं दे पा रह हूं. अगर सरकार मेरी मदद करे तो मैं फिर से खेलना चाहूंगी. अभी मैं नैटबौल डैवलपमैंट ट्रस्ट जोकि यूनाइटेड किंगडम की संस्था है, से जुड़ी हुई हूं. मैं इस ट्रस्ट की भारत की ब्रैंड ऐंबैसेडर हूं. यह ट्रस्ट भारत में नेटबौल खिलाडि़यों की बेहतरी के लिए काम करती है.
आप की लंबाई अच्छी है. आप ने मौडलिंग के लिए कभी प्रयास किया?
मैं ने मौडलिंग के लिए कभी प्रयास नहीं किया है. मैं अपने नैटबौल के कैरियर से ही खुश हूं.
नैटबौल में आने वाली नई लड़कियों को आप से क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं संदेश लड़कियों को नहीं, आप की पत्रिका के माध्यम से सरकार व फैडरेशन से यह अपील करना चाहती हूं कि जिन खिलाडि़यों ने देश के लिए खेला है उन के बेहतर जीवनयापन के लिए सरकारी नौकरियों में अलग से नियुक्तियां हों. अगर नौकरियों में महिला खिलाडि़यों को तवज्जो मिलेगी तो नई लड़कियां खेलों की तरफ स्वयं आकर्षित होंगी और भविष्य की चिंता से मुक्त हो कर वे अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन कर दुनिया में भारत का नाम रोशन करेंगी.