‘‘सीधेसीधे कहो न कि चंदन तो आ गया, अब चांदनी चाहिए,’’ उदय ने हंस कर इरा से कहा.
उस का मन एक स्वच्छ और निर्मल आकाश था, एक कोरा कैनवस, जिस पर वह जब चाहे, जो भी रंग भर लेती थी. ‘लेकिन यथार्थ के धरातल पर ऐसे कोई रह सकता है क्या?’ उस का मन कभीकभी उसे यह समझाता, पर ठहर कर इस आवाज को सुनने की न तो उसे फुरसत थी, न ही चाह.
फिर उसे अचानक दिखा था, उदय, उस के जीवन के सागर के पास से उगता हुआ. उस ने चाहा था, काश, वह इतनी दूर न होता. काश, इस सागर को वह आंखें मूंद कर पार कर पाती. उस ने आंखें मूंदी थीं और आंखें खुलने पर उस ने देखा, उदय सागर को पार कर उस के पास खड़ा है, बहुत पास. सच तो यह था कि उदय उस का हाथ थामे चल पड़ा था.
दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. संसार का मायाजाल अपने भंवर की भयानक गहराइयों में उन्हें निगलने को धीरेधीरे बढ़ने लगा था. उन के प्यार की खुशबू चंदन बन कर इरा की गोद में आ गिरी तो वह चौंक उठी. बंद आंखों, अधखुली मुट्ठियों, रुई के ढेर से नर्म शरीर के साथ एक खूबसूरत और प्यारी सी हकीकत, लेकिन इरा के लिए एक चुनौती.
इरा की सुबह और शाम, दिन और रात चंदन की परवरिश में बीतने लगे. घड़ी के कांटे के साथसाथ उस की हर जरूरत को पूरा करतेकरते वह स्वयं एक घड़ी बन चुकी थी. लेकिन उदय जबतब एक सदाबहार झोंके की तरह उस के पास आ कर उसे सहला जाता. तब उसे एहसास होता कि वह भी एक इंसान है, मशीन नहीं.
चंदन बड़ा होता गया. इरा अब फिर से आजाद थी, लेकिन चंदन का एक तूफान की तरह आ कर जाना उसे उदय की परछाईं से जुदा सा कर गया. अब वह फिर से सालों पहले वाली इरा थी. उसे लगता, ‘क्या उस के जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया? क्या अब वह निरुद्देश्य है?’
एक बार उदय रात में देर से घर आया था, थका सा आंखें बंद कर लेट गया. इरा की आंखों में नींद नहीं थी. थोड़ी देर वह सोचती रही, फिर धीरे से पूछा, ‘‘सो गए क्या?’’
‘‘नहीं, क्या बात है?’’ आंखें बंद किए ही वह बोला.
‘‘मुझे नींद नहीं आती.’’
उदय परेशान हो गया, ‘‘क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न?’’ अपनी बांह का सिरहाना बना कर वह उस के बालों में उंगलियां फेरने लगा.
इरा ने धीरे से अलग होने की कोशिश की, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे अभी नींद आ जाएगी, तुम सो जाओ.’’ थोड़ी देर तब उदय उलझा सा जागा रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख कर गहरी नींद सो गया.
कुछ दिनों बाद एक सुबह नाश्ते की मेज पर इरा ने उदय से कहा, ‘‘तुम और चंदन दिनभर बाहर रहते हो, मेरा मन नहीं लगता, अकेले मैं क्या करूं?’’
उदय ने हंस कर कहा, ‘‘सीधेसीधे कहो न कि चंदन तो आ गया, अब चांदनी चाहिए.’’
‘‘जी नहीं, मेरा यह मतलब हरगिज नहीं था. मैं भी कुछ काम करना चाहती हूं.’’
‘‘अच्छा, मैं तो सोचता था, तुम्हें घर के सुख से अलग कर बाहर की धूप में क्यों झुलसाऊं? मेरे मन में कई बार आया था कि पूछूं, तुम अकेली घर में उदास तो नहीं हो जाती हो?’’
‘‘तो पूछा क्यों नहीं?’’ इरा के स्वर में मान था.
‘‘तुम क्या करना चाहती हो?’’
‘‘कुछ भी, जिस में मैं अपना योगदान दे सकूं.’’
‘‘मेरे पास बहुत काम है, मुझ से अकेले नहीं संभलता. तुम वक्त निकाल सकती हो तो इस से अच्छा क्या होगा?’’ इरा खुशी से झूम उठी.
दूसरे दिन जल्दीजल्दी सब काम निबटा कर चंदन को स्कूल भेज कर दोनों जब घर से बाहर निकले तो इरा की आंखों में दुनिया को जीत लेने की उम्मीद चमक रही थी. सारा दिन औफिस में दोनों ने गंभीरता से काम किया. इरा ने जल्दी ही काफी काम समझ लिया. उदय बारबार उस का हौसला बढ़ाता.
जीवन अपनी गति से चल पड़ा. सुबह कब शाम हो जाती और शाम कब रात, पता ही न चलता था.
एक दिन औफिस में दोनों चाय पी रहे थे कि एकाएक इरा ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं?’’
‘‘हांहां, कहो.’’
‘‘यह बताओ, हम जो यह सब कर रहे हैं, इस से क्या होगा?’’
उदय हैरानी से उस का चेहरा देखने लगा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’
‘‘यही कि रोज सुबह यहां आ कर वही काम करकर के हमें क्या मिलेगा?’’
‘‘क्या पाना चाहती हो?’’ उदय ने हंस कर पूछा.
‘‘देखो, मेरी बात मजाक में न उड़ाना. मैं बहुत दिनों से सोच रही हूं, हमें एक ही जीवन मिला है, जो बहुत कीमती है. इस दुनिया में देखने को, जानने को बहुत कुछ है. क्या घर से औफिस और औफिस से घर के चक्कर काट कर ही हमारी जिंदगी खत्म हो जाएगी?’’
‘‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम जो कुछ कर रही हो, वह काफी नहीं है?’’ उदय गंभीर था.
इरा को न जाने क्यों गुस्सा आ गया. वह रोष से बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है, जो तुम कर रहे हो, वही सबकुछ है और कुछ नहीं बचा करने को?’’
उदय ने मेज पर रखे उस के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘देखो, अपने छोटे से दिमाग को इतनी बड़ी फिलौसफी से थकाया न करो. शाम को घर चल कर बात करेंगे.’’
शाम को उदय ने कहा, ‘‘हां, अब बोलो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’
इरा ने आंखें बंद किएकिए ही कहना शुरू किया, ‘‘मैं जानना चाहती हूं कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए, आदर्श जीवन किसे कहना चाहिए, इंसान का सही कर्तव्य क्या है?’’
‘‘अरे, इस में क्या है? इतने सारे विद्वान इस दुनिया में हुए हैं. तुम्हारे पास तो किताबों का भंडार है, चाहो तो और मंगवा लो. सबकुछ तो उन में लिखा है, पढ़ लो और जान लो.’’
‘‘मैं ने पढ़ा है, लेकिन उन में कुछ नहीं मिला. छोटा सा उदाहरण है, बुद्ध ने कहा कि ‘जीवहत्या पाप है’ लेकिन दूसरे धर्मों में लोग जीवों को स्वाद के लिए मार कर भी धार्मिक होने का दावा करते हैं और लोगों को जीने की राह सिखाते हैं. दोनों पक्ष एकसाथ सही तो नहीं हो सकते. बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से देशों में तो लोगों ने कोई भी जानवर नहीं छोड़ा, जिसे वे खाते न हों. तुम्हीं बताओ, इस दुनिया में एक इंसान को कैसे रहना चाहिए?’’
‘‘देखो, तुम ऐसा करो, इन सब को अपनी अलग परिभाषा दे दो,’’ उदय ने हंस कर कहा.
इरा ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं बहुतकुछ जानना चाहती हूं. देखना चाहती हूं कि जब पेड़पौधे, जमीन, नदियां सब बर्फ से ढक जाते हैं तो कैसा लगता है? जब उजाड़ रेगिस्तान में धूल भरी आंधियां चलती हैं तो कैसा महसूस होता है? पहाड़ की ऊंची चोटी पर पहुंच कर कैसा अुनभव होता है? सागर के बीचोंबीच पहुंचने पर चारों ओर कैसा दृश्य दिखाई देता है? ये सब रोमांच मैं स्वयं महसूस करना चाहती हूं.’’
उदय असहाय सा उसे देख रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इरा को कैसे शांत करे. फिर भी उस ने कहा, ‘‘अच्छा उठो, हाथमुंह धो लो, थोड़ा बाहर घूम कर आते हैं,’’ फिर उस ने चंदन को आवाज दी, ‘‘चलो बेटे, हम बाहर जा रहे हैं.’’
उन लोगों ने पहले एक रैस्तरां में कौफी पी. चंदन ने अपनी पसंद की आइसक्रीम खाई. फिर एक थिएटर में पुरानी फिल्म देखी. रात हो चुकी थी तो उदय ने बाहर ही खाना खाने का प्रस्ताव रखा. काफी रात में वे घर लौटे.
कुछ दिनों बाद उदय ने इरा से कहा, ‘‘इस बार चंदन की सर्दी की छुट्टियों में हम शिमला जा रहे हैं.’’
इरा चौंक पड़ी, ‘‘लेकिन उस वक्त तो वहां बर्फ गिर रही होगी.’’
‘‘अरे भई, इसीलिए तो जाएंगे.’’
‘‘लेकिन चंदन को तो ठंड नुकसान पहुंचाएगी.’’
‘‘वह अपने दादाजी के पास रहेगा.’’
शिमला पहुंच कर इरा बहुत खुश थी. हाथों में हाथ डाल कर वे दूर तक घूमने निकल जाते. एक दिन सर्दी की पहली बर्फ गिरी थी. इरा दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गई. बरामदे में बैठे बर्फ गिरने के दृश्य को बहुत देर तक देखती रही.
फिर मौसम कुछ खराब हो गया था. वे दोनों 2 दिनों तक बाहर न निकल सके.
3-4 दिनों बाद ही इरा ने घर वापस चलने की जिद मचा दी. उदय उसे समझाता रह गया, ‘‘इतनी दूर इतने दिनों बाद आई हो, 2-4 दिन और रुको, फिर चलेंगे.’’
लेकिन उस ने एक न सुनी और उन्हें वापस आना पड़ा.
एक बार चंदन ने कहा, ‘‘मां, जब कभी आप को बाहर जाना हो तो मुझे दादाजी के पास छोड़ जाना, मैं उन के साथ खूब खेलता हूं. वे मुझे बहुत अच्छीअच्छी कहानियां सुनाते हैं और दादी ने मेरी पसंद की बहुत सारी चीजें बना कर मुझे खिलाईं.’’
इरा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और सोचने लगी, ‘शिमला में उसे चंदन का एक बार भी खयाल नहीं आया. क्या वह अच्छी मां नहीं? अब वह चंदन को एक दिन के लिए भी छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी.’