दुनिया की सब से ऊंची पर्वत चोटी तक पहुंचने का सपना देखने की हिम्मत तंदुरुस्त लोगों की भी नहीं होती, पर यह सपना देखा एक पैर से विकलांग मगर बुलंद हौसलों वाली अरुणिमा सिन्हा ने. उस ने अपने शरीर की इस कमजोरी को अपने मजबूत इरादों के मार्ग में आड़े नहीं आने दिया. उस ने अपने आंसुओं को अपनी ताकत बनाया और एक छोटे से शहर से उठ कर माउंट ऐवरैस्ट पर फतह हासिल की नकली पैर के साथ.

अरुणिमा सिन्हा माउंट ऐवरैस्ट पर पहुंचने वाली पहली विकलांग लड़की है. महज 26 साल की उम्र में वह पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित की जा चुकी है. यहां तक पहुंचने का सफर उस के लिए आसान नहीं रहा है.

सुलतानपुर के अंबेडकर नगर में रहने वाली अरुणिमा तब केवल 4 साल की थी, जब उस के पिता की मौत हो गई थी, जो आर्मी में थे. बड़ी मुश्किल से उस की मां को स्वास्थ्य विभाग में सुपरवाइजर की नौकरी मिली. अपनी बड़ी बहन के साथ अरुणिमा स्कूल जाने लगी. मगर उस का पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में मन लगता था. उसे फुटबौल और वौलीबौल खेलना पसंद था. वह खिलाड़ी बनना चाहती थी. इसलिए दुनिया की परवाह न कर अपने पैशन को कायम रखा और फिर एक दिन नैशनल प्लेयर बन गई.

अरुणिमा के टेलैंट को पूरा सम्मान नहीं मिला, तो उस ने नौकरी करने की सोची. मगर जनरल कैटेगरी में नौकरी पाना भी आसान नहीं होता. अब तक वह कानून की पढ़ाई कर चुकी थी. उस के जीजा आर्मी में थे. अत: उन की सलाह पर अरुणिमा ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की परीक्षा दी.

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